Yoga। व्याधिकाल में योग : नियमों के अनुपालन का दर्शन/प्रो. इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी, अध्यक्षा, दर्शन विभाग, हे.न.ब.गढ़वाल [केंद्रीय]वि.वि.  श्रीनगर [गढ़वाल] उत्तराखण्ड                                                                                                         

व्याधिकाल में योग : नियमों के अनुपालन का दर्शन

आज सम्पूर्ण विश्व में कोरोनाजन्य व्याधि का कहर तेजी से प्रसारित होकर अनेक लोगों की मृत्यु का कारण बन रहा है या मृत्यु तुल्य कष्टकारी परिस्थितियों में ले जा रहा है एवं इससे बचाव के लिए अनेक उपचारात्मक प्रबंध भी किये जा रहे है| परन्तु इस महामारी से निपटने के लिए यह अत्यधिक संवेदनशील स्थिति अपेक्षित संसाधनों के समुचित प्रबन्ध के अतिरिक्त उपचारकों के संक्रमित होने की प्रबल संभावना भी भय उपजा रहा है| ऐसी दशा में सम्पूर्ण विश्व के साथ भारत भी रक्षात्मक उपाय के रूप में लॉक डाउन के अब चरणबद्ध ढंग से अनलॉक प्रक्रिया  की राह पर आगे बढ़  रहा है|

ऐसी दशा में  बचाव का मार्ग हमेशा ही उपचार से श्रेष्ठ माना गया है, इसलिए सरकारी तंत्र भी बचाव के निर्देशों के प्रचार-प्रसार कर रहा है| नियम निर्देशित किये जा रहे है| परन्तु अनेक लोगों की स्थिति ऐसी है जहाँ भूख का  भय मृत्यु के भय पर हावी हो जा रहा है, और क्षणिक भय की अवस्था में वे सरकारी नियमों-निर्देशों को तोड़कर एक अराजकता की स्थिति बना रहे है| ऐसा करके वे अपने और अपने स्वजनों के लिए संक्रमण, व्याधि और मृत्यु की संभावनाओं में वृद्धि कर रहे हैं| इस प्रकार के लोग शारीरिक संक्रमण के साथ मानसिक अवसाद की अवस्था से भी त्रस्त है| ऐसी दशा में योग दर्शन में मूल ग्रन्थ पातन्जलयोगसूत्र  के दूसरे पाद में उल्लिखित पाँच नियम समग्र स्वास्थ्य की दृष्टि वैश्विक स्तर पर उपयोगी हो सकते है|

योग दर्शन में निर्दिष्ट पहला नियम है-शौच यानि शारीरिक व मानसिक शुद्धता | कोरोना के संकट में हस्त-प्रक्षालन के तरीके तक समझाए जा रहे है| विकट परिस्थितियों में शुद्धता के अपने मापदंड हो सकते है| विषाणुओं के विनाश के अपने तरीके हो सकते है| परन्तु यदि व्यक्ति शुद्धता के महत्त्व से परिचित एवं प्रशिक्षित हो तो यह उसके लिए सामान्य होना चाहिए| लेकिन हम इस अनमोल धरोहर को भूलते जा रहे है, शायद इसीलिए एक जनजागरण की आवश्यकता पड़ रही है|

योग दर्शन में निर्दिष्ट दूसरा नियम है-संतोष| हम अपने स्थिति, अवस्थिति, पद, प्रतिष्ठा और सीमाओं में अक्सर असंतुष्ट रहते है, जबकि मूलभूत आवश्यकताएं अत्यंत कम है | लेकिन एक संतुष्ट व्यक्ति के लिए सभी आकर्षण व्यर्थ हैं| संतोष का धन इतना श्रेष्ठ होता है कि उसकी तुलना में किसी अन्य धन का कोई महत्त्व नहीं होता है|

योग दर्शन का तीसरा नियम है- तप अर्थात् सर्दी- गर्मी में समान रूप से अबाधित अपने लक्ष्य का अनुकरण| आज का तात्कालिक लक्ष्य है, कोरोना विषाणु के कारण उपजा जीवन संकट| घर की सीमाओं में सुरक्षित और संतुष्ट रहते हुए प्रबल प्रतिरोधक क्षमता आज भी अपेक्षित है और यही बचाव का उपाय भी है| जब तक कोरोना संक्रमण से बचाव की औषधि नहीं बनायी जाती, तब तक व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता ही एकमात्र कवच का काम करेंगी| तप की अवधारणा बाह्य प्रतिकूलताओं से अप्रभावित रहकर स्वस्थचित्त बने रहने के लिए ही है| 

योग का चौथा नियम है- स्वाध्याय | अगर गहन आध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन पर व्यावहारिकता की दृष्टि से कोई प्रश्न उठाये तो भी स्वाध्याय के महत्त्व को नकार नहीं सकता |  अतः आज जब लॉक डाउन की अवस्था में लोग घर की सीमाओं में रहने को विवश है, स्वाध्याय से ज्ञान वर्द्धन एक सुन्दर विकल्प बन सकता है|  समय व्यतीत करने का सकारात्मक और रचनात्मक उपाय स्वाध्याय से श्रेष्ठवाही  और कुछ हो ही नहीं सकता है| 

योग का अंतिम और पांचवा नियम है- ईश्वरप्रणिधान अर्थात ईश्वर के प्रति समर्पण भाव से अपने दायित्वों का निर्वहन| यदि प्रथम चार नियमों के अनुपालन में किसी प्रकार की आशंका हो, तो निष्ठा और समर्पण का एक आधार आवश्यक हो जाता है, जो मन के भटकाव को रोकता है| सर्वशक्तिमान सत्ता में विश्वास ऐसा आधार प्रदान करता है|

यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जब पूरा विश्व कोरोना के आतंकित और भयभीत है, ऐसे समय में योग एक सकारात्मक दिशा-निर्देश देने सक्षम है; शौच से शारीरिक स्वास्थ्य, संतोष से मानसिक अनुशासन, तप से विषम परिस्थिति के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, स्वाध्याय से ज्ञान-वर्द्धन और ईश्वरप्रणिधान से लक्ष्य के प्रति अटूट आस्था का आधार प्रस्तुत करने में अद्भुत है| आवश्यकता बस उस दृष्टि की है जो इन्हें प्रसंगानुकूल और परिस्थितिजन्य समस्यायों के समाधान के रूप में देखे और व्यवहार में लाये।

प्रो. इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी, अध्यक्ष,  दर्शन विभाग, हे.न.ब.गढ़वाल [केंद्रीय] वि.वि., श्रीनगर [गढ़वाल] उत्तराखण्ड