*पूर्व संकायाध्यक्ष को पुस्तक भेंट*
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने मानविकी संकाय के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार चौधरी को अपनी दो पुस्तकें सामाजिक न्याय : अंबेडकर-विचार और आधुनिक संदर्भ (2014) तथा गाँधी-विमर्श (2015) भेंट कीं। इस अवसर पर हिंदी विभाग, पीजी सेंटर, सहरसा के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप भी उपस्थित थे।
*लेखकीय सक्रियता बनाए रखने की अपेक्षा*
प्रो. चौधरी ने डॉ. शेखर को बधाई दीं और आगे भी लेखकीय सक्रियता बनाए रखने की अपेक्षा जताई। डॉ. शेखर ने बताया कि भेंट की गई दोनों पुस्तकों के अतिरिक्त भी उनकी दो अन्य पुस्तकें भूमंडलीकरण और मानवाधिकार (2017) तथा गाँधी, अंबेडकर और मानवाधिकार (2024) भी प्रकाशित है। आगे इसी वर्ष एक अन्य पुस्तक हिंद स्वराज का दर्शन (2025) प्रकाशित होने वाली हैं।
‘गाँधी-विमर्श’ : इस पुस्तक में ‘राष्ट्र’, ‘सभ्यता’, ‘धर्म’, ‘राजनीति’, ‘स्वराज’, ‘शिक्षा’, ‘स्त्री’, ‘दलित’, ‘स्वास्थ्य’, ‘पर्यावरण’, ‘विकास’ एवं ‘भूमंडलीकरण’ को गाँधी दृष्टि से देखने-समझने की कोशिश की गयी है। लेखक का कहना है कि सवाल चाहे धर्म राजनीति एवं शिक्षा का हो अथवा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं विकास का, सभी का जवाब गाँधी को केंद्र में रखकर ढूंढ़ा जा सकता है। ‘गाँधी का रास्ता’ पूरी तरह निरापद हो या नहीं हो, लेकिन यह एक विकल्प अवश्य है।
इस पुस्तक का आशीर्वचन एवं प्राक्कथन क्रमशः अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ जटाशंकर एवं महामंत्री प्रोफेसर डाॅ अम्बिकादत्त शर्मा ने लिखा है। यह न केवल गाँधी एवं समकालीन विमर्शों में रूचि रखने वाले शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों, वरन् आम लोगों के लिए भी उपयोगी है। गाँधी-विचार के विरोधियों को भी इसे पढ़ने से कोई नुकसान नहीं होगा।
*’सामाजिक न्याय : अंबेडकर-विचार और आधुनिक संदर्भ*’ : इस पुस्तक में सामाजिक न्याय को अंबेडकर की दृष्टि से समझने की कोशिश की गई है।
इस पुस्तक का प्रथम खंड भूमिका है। द्वितीय खंड में सामाजिक न्याय के अर्थ एवं साधन और इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय खंड में स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, धम्म एवं शिक्षा की व्याख्या की गई है। चतुर्थ खंड में ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद, सामाजिक जनतंत्र एवं राज्य समाजवाद पर विचार किया गया है। पंचम खंड में दलित मुक्ति, स्त्री सशक्तिकरण, राष्ट्र प्रेम आदि की चर्चा है। षष्ठ खंड में गाँधीवाद, मार्क्सवाद एवं मानववाद आदि की अंबेडकर की दृष्टि में समीक्षा की गई है। सप्तम खंड में आॅनर किलिंग, आरक्षण, जाति गणना, दलित साहित्य, दलित राजनीति, मानवाधिकार, भूमंडलीकरण एवं विश्व शांति पर संक्षिप्त टिप्पणी की गई है। अंतिम खंड निष्कर्ष है।
यह पुस्तक न केवल अंबेडकर एवं समकालीन विमर्शों में रूचि रखने वाले शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों, वरन् आम लोगों के लिए भी उपयोगी है।