विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन

विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन

डॉ. मो. इंतेखाबुर्रहमान

प्रोफेसर, स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, भू. ना. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार              [email protected],    

स्वस्तिका, शोधार्थी, भू. ना. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार              

कुमारी रंजीता                                                    शोधार्थी,  भू. ना. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार [email protected]

  • परिचय

विश्व का कोई भी विश्वविद्यालय शिक्षा के माध्यम से और अपने द्वारा कराए गए शोध के प्रभाव से अपने क्षेत्र के लोगों के जीवन शैली को बदलते हैं I यह भी अपने आप में सत्य है की विश्वविद्यालय के छात्रों के कौशल और ज्ञान की आवश्यकता को विकसित करने में मदद करते हैं I इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि विश्वविद्यालय के अनुसंधान से समाज के सभी वर्ग के लोगों को लाभ मिलता है I शोध के माध्यम से जहाँ एक ओर व्यवसाय और रोजगार सृजित करने में मदद मिलती है वहीँ समाज को समृद्ध करने और संस्कृति को प्रोत्साहित करने में सहयोग मिलता है I जब भी हम विश्वविद्यालय की बात करते हैं, तो इसके साथ ही साथ उसके कार्यों की कल्पना भी स्वयं हमारे मस्तिष्क में आने लगता है I अत: हम यहाँ कह सकते हैं कि विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यों में ज्ञान का भण्डार स्नातकों को ज्ञान से इस प्रकार लैस करना ही ताकि वह व्यवहार्य रोजगार पाने में सक्षम हो सकें I विश्वविद्यालय का दायित्व होता है कि वह सार्वजनिक नीति और सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के क्षेत्रों में तर्कसंगत और समय पर आलोचना की पेशकश करें I सिविल सोसायटी और राज्य में बड़े और प्रभावशाली निकायों के रूप में विश्वविद्यालय की उपस्थिति आवश्यक है I विश्वविद्यालय की भूमिका सामंजस्यपूर्ण और सहिष्णु समुदायों को बनाये रखने की भी है I

जब हम विश्वविद्यालय के कार्यों का अवलोकन करते हैं तो एक बात जो हमारे मन में रह-रह कर उत्सुकता पैदा करती है वह है युवाओं से संबंधित अनेकों प्रश्न , उनका भविष्य और उनका स्वस्थ मानसिक विकास I युवा हमारे देश के भविष्य हैं और उनका उज्जवल भविष्य उनके मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर है I अगर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो किशोरों के लिए 13 से 18 वर्ष की उम्र में मानसिक विकारों के जीवन काल की व्यापकता 20% तक रहती है I यह विशेष रूप से परेशान करने वाला तथ्य है क्योंकि मानसिक बिमारी भावनात्मक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं और अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं I मनोवैज्ञानिकों का मत है की युवाओं के शैक्षिक उपलब्धियों को बढ़ावा देने के लिए मानसिक स्वास्थ्य की शीघ्र पहचान की जाये और साथ ही साथ उनके उपचारों पर भी बल दिया जाए I

मनोविज्ञानिक अनुसन्धान हमें यह समझने में मदद करता है लोग अपने अपने तरीकों से क्या सोचते हैं, महसूस करते हैं और कार्य करते हैं I शोध व्यक्ति और समाज पर लक्षणों और प्रभाव को समझने के लिए हमें मनोविज्ञानिक विकारों को वर्गीकृत करने की अनुमति देता है I मनोविज्ञानिक अनुसन्धान हमें यह समझने में मदद करता है कि अन्तरंग सम्बन्ध विकास, स्कूल, परिवार, सहकर्मी और धर्म कैसे हमें प्रभावित करते हैं I इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञानिक अनुसन्धान द्वारा शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को परखने के लिए विभिन्न मनोविज्ञानिक आयामों का सहारा लेकर भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार के क्षेत्र के अंतर्गत स्नातकोत्तर विभाग के छात्र एवं छात्राओं द्वारा शोध प्रस्तुत किया गया है I प्रस्तुत शोधों के आधार पर शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के मानसिक तनाव, समायोजन, मानसिक स्वास्थ्य, असुरक्षा की भावना, अस्पष्टता की असहिष्णुता का भाव, हीन भावना, चिन्ता एवं कामकाजी महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को समझाने की कोशिश की गयी है I प्रस्तुत शोध निष्कर्ष स्नातकोत्तर चतुर्थ सेमेस्टर के अनुसंधान परियोजना पर आधारित है I

  • अनुसंधान समीक्षा 

राहुल विशाल, (2020) ने भूo नाo मंडल विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों में पढ़ रहे विद्यार्थियों के ऊपर “विश्वविद्यालय के छात्रों के समायोजन का एक सह-संबंधी अध्ययन “ शीर्षक से किया I इन्होंने अपने अनुसंधान में पचीस छात्रों और पचीस छात्राओं को सम्मिलित किया I कुल मिलाकर पचास विद्यार्थियों पर आधारित यह शोध कार्य किया गया I जहाँ उन्होंने विद्यार्थियों में समायोजन किन समस्या का तुलनात्मक अध्ययन किया I आज के युवाओं में समायोजन की समस्या अत्यधिक है ऐसा मनोवैज्ञानिकों के शोध से भी सिद्ध है I युवाओं के समायोजन को मापने के लिए एमo एसo विश्वविद्यालय, बड़ोदा, गुजरात के मनोविज्ञानिक द्वारा विकसित उपकरण को प्रयोग में लाया गया I संगृहीत दत्तों के आधार पर सांखिकीय विश्लेषण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विश्वविद्यालय के छात्र एवं छात्राओं में समायोजन की समस्या है I तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर यह पाया गया की छात्राओं में समायोजन की समस्या अधिक है, छात्रों के अनुपात में I यही कारण है कि छात्र एवं छात्राओं के समायोजन में कोई सहसंबंध नहीं है I अपने अनुसंधान के आधार पर इन्होंने इस बात पर जोर डाला है कि छात्राएं समायोजन की समस्या से अधिक ग्रस्त हैं I इसके कई मनोविज्ञानिक कारण हैं जिसमें भविष्य को लेकर अधिक चिन्ता मुख्य रूप से सामने आई है I छात्रों में भी यह समस्या है लेकिन तुलनात्मक कम है I इसकी एक वजह यह भी दर्शायी गयी है की छात्राएं अपने विवाह, वैवाहिक जीवन को लेकर अधिक मनोविज्ञानिक दबाव में हैं I इस शोध के द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन एवं अभिभावकों को सलाह दी गयी है कि विद्यार्थियों को समय-समय पर मनोविज्ञानिक परामर्शदाता से अवश्य संपर्क करते रहना चाहिए ताकि उनके मानसिक स्वास्थ्य की परख ससमय होती रहे और उन्हें मनोविज्ञानिक उपचार भी मिलता रहे I उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन को विश्वविद्यालय परिसर में मनोविज्ञानिक परामर्शदाता केंद्र खोलने की सलाह दी I

    निधि कुमारी, (2020) ने अपने प्रस्तुत शोध “विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का स्वास्थ्य: एक अध्ययन” के अंतर्गत विग एवं वर्मा द्वारा विकसित (आगरा साइकोलॉजिकल रिसर्च सेल ) मापनी पर आधारित शोध भूo नाo मंडल विश्वविद्यालय क्षेत्रान्तर्गत स्नातकोत्तर विभागों के छात्र एवं छात्राओं पर किया गया I इसमें इन्होने यह प्राप्त किया कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का स्वास्थय अच्छा है लेकिन छात्राओं के अनुपात में छात्रों का स्वास्थय उत्तम है I इन्होंने अपने शोध में इस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया है कि छात्राएं कुपोषण की शिकार हैं, जिस कारणवश उनमें खून की कमी आदि के लक्षण देखने को मिलते हैं I अपने सुझाव में उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष यह बिंदु रखते हुए विश्वविद्यालय परिसर में स्वास्थय केंद्र एवं उत्तम कैंटीन की व्यवस्था करने पर जोर दिया I

प्रियंका कुमारी, (2020) द्वारा किया गया शोध महत्वपूर्ण माना जा सकता है कि उन्होंने भूo नाo मंडल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के अन्दर असुरक्धा की भावना का मापन किया I अपने अनुसंधान में उन्होंने असुरक्षा के कारणों को भी उजागर किया है और सांवेगिक असुरक्षा पर बल दिया है I उन्होंने जीo सीo पति, जो कि मेंटल हेल्थ इंस्टिट्यूट, एंस सीo बीo मेडिकल कॉलेज, कटक, उड़ीसा में क्लिनिकल साईकोलोजिस्ट हैं, के द्वारा विकसित “इनसेक्यूरिटी स्केल” को उपयोग में लाकर अपने शोध को वैज्ञानिकता प्रदान की है I इन्होने अपने शोध परिणाम में यह पाया कि विश्वविद्यालय के 52% छात्र असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हैं, वहीँ 48% छात्राएं स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहीं हैं I अपने शोध के आधार पर इन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि छात्र के अंतर्गत सबसे अधिक अपने भविष्य को लेकर असुरक्षा देखने को मिली I इसका मुख्य कारण अकादमी सत्रों का देर होना, विश्वविद्यालय के नए परिसर में पुस्कालय का आभाव एवं यातायात की कमी को दर्शाया गया है I इन कारणों से विद्यार्थियों में हलके मनोविज्ञानिक असमान्यताएं जैसे मानसिक तनाव, समायोजन, अवसाद, असुरक्षा और आक्रामक व्यवहार पाए गए I

    खुशबु कुमारी, (2020) ने अपने शोध प्रोजेक्ट “युवाओं में अस्पष्टता की असहिष्णुता का प्रसार” में स्पष्टत: यह पाया की छात्रों की तुलना में छात्राओं में अस्पष्टता की असहिष्णुता अधिक है I छात्रों में स्पष्टता की असहिष्णुता केवल 45% पाई गयी जबकि छात्राओं में इसकी अधिकता देखि गयी जो कि 55% है I यह परिणाम दर्शाता है कि छात्राओं के व्यक्तित्व विकास की आवश्यकता है I

डम्पी कुमारी, (2020) ने भूo नाo मंडल विश्वविद्यालय के शोधार्थियों में हीनता की भावना पर अध्ययन किया I इन्होंने अपने अनुसंधान में पाया कि शोध करने वाले लड़कों में हीनता की भावना अधिक है I अर्थात शोधार्थी लड़के हीन भावना से अधिक ग्रस्त हैं, शोधार्थी लड़कियों की तुलना में I इसके मुख्य कारण की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि भविष्य के बारे में अनिश्चितता दोनों समूहों में है लेकिन लड़कों के पास अपने भविष्य के बारे में अनिश्चितता अधिक है I

निशान्त कुमार निशु, (2020) ने स्नातकोत्तर विभागों में नामांकित छात्र/ छात्राओं में चिन्ता का प्रसार पर अध्ययन कर यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि छात्र एवं छात्राएं दोनों हीं चिन्ता से ग्रस्त पाए गए हैं I लेकिन छात्राओं में चिन्ता की मात्रा अधिक है I उनके इस परिक्षण पर आधारित खोजों ने यह प्रदर्शित किया कि विद्यार्थियों में बेचैनी की अभिव्यक्तियों की व्यापकता अधिक देखी गयी I यह खोज मानसिक विकृति के लिए विस्तारित खतरे की घंटी है I

वंदना कुमारी, (2020) द्वारा किया गया अनुसंधान विक्षिप्त व्यक्तित्व पर आधारित था, उन्होंने अपने शोध में पाया कि छात्र एवं छात्राओं में विक्षिप्त व्यक्तित्व को लेकर कोई अंतर नहीं है I अर्थात छात्र एवं छात्राओं के व्यक्तित्व में विक्षिप्तता देखने को मिली I इन्होंने अपने सुझाव में यह बताया है कि यह अध्ययन शिक्षकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है I वे छात्रों के विक्षिप्त कारकों को समझने में इस शोध के निष्कर्षों का उपयोग कर सकते हैं I वे वैसे विद्यार्थियों का पता लगा सकते हैं जिनका व्यक्तित्व विक्षिप्त है और जिन्हें अपने व्यक्तिगत ध्यान और देखभाल की सबसे अधिक आवश्यकता है, ताकि छात्रों को उपयोगी और समय पर मदद मिल सके I

अनिशा कुमारी, (2020) ने एक रोचक शोध कामकाजी महिला के प्रति छात्रों के दृष्टिकोण पर प्रस्तुत किया I अपनी शोध में उन्होंने पाया कि भूo नाo मंडल विश्वविद्यालय के छात्र एवं छात्राओं का दृष्टिकोण कामकाजी महिलाओं के प्रति सकारात्मक है I विशेष रूप से उन्होंने पाया कि छात्रों का दृष्टिकोण छात्राओं की तुलना में अधिक सकारात्मक है I उन्होंने स्पष्ट किया कि छात्रों ने अनुभव से प्राप्त अपने जीवन में व्यवहारिक दृष्टिकोण के कारण अपनी मानसिकता में सबसे अधिक बदलाव लाया है I

  • निष्कर्ष

स्नाकतोत्तर मनोविज्ञान विभाग के स्नातकोत्तर सेमेस्टर – IV के विद्यार्थियों द्वारा किया गया शोध आज के युवा पीढ़ी की दिशा और दशा को दर्शाता है I उपर्युक्त शोधों से यह बात स्पष्ट रूप से हमारे सामने आई है कि आज के आधुनिक युग में युवा पीढ़ी सबसे अधिक मानसिक दबाव में है और मनोविज्ञानिक विकारों से ग्रस्त है I एक ओर हम युवाओं को स्वस्थ समाज का स्तम्भ मानता हैं और उन्हें देश निर्माता की संज्ञा देते हैं और दूसरी ओर उन्हें मानसिक दबाव में जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर देते हैं I अब आवश्यकता है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को मनोविज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करें I विशेष रूप से हमें उन युवाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है जो अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर पढाई में लगे हुए हैं I वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं एवं शोध जैसे कार्यों में लीन हैं I अभिभावकों, शिक्षकों, विश्वविद्यालय प्रशासन एवं सरकार को इस ओर ध्यान देना आवश्यक है कि हमारे नौजवान सरल एवं सामान्य जीवन प्राप्त कर सकें I वह मानसिक निश्चिंतता के साथ अपने भविष्य के लिए सोच सकें और एक दृढ़ समाज एवं विकसित देश की कल्पना कर सकें I जब हम अपनी नयी नस्लों को मनोविज्ञानिक परिपेक्ष्य में देखने की कोशिश करेंगे तभी हम उन्हें मानसिक स्वास्थ्य उपलब्ध करवा पायेंगे I जब तक मानसिक रूप से हमारी युवा पीढ़ी स्वस्थ नहीं होगी हम स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं कर सकते हैं I

  • सुझाव

उपर्युक्त मनोविज्ञानिक शोधों और उससे प्राप्त निष्कषों के आधार पर हम कह सकते हैं कि विश्वविद्यालय जहाँ अपने विद्यार्थियों को उच्चस्तरीय पाठन- पाठन की सहूलियत देती है वहीँ वह अपने छात्र एवं छात्राओं के मनोविज्ञान को भी समझाने की चेष्टा करे I समय- समय पर विश्वविद्यालय को अपने विद्यार्थियों का मनोविज्ञानिक सर्वे कराते रहना चाहिए ताकि यदि उनके अन्दर किसी प्रकार की मनोविज्ञानिक कुंठता पल रही हो तो तुरंत उसका निदान किया जा सके I समय – समय पर मनोविज्ञानिक कार्यशाला का आयोजन भी अनिवार्यतः होना चाहिए I सभी विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह अपने परिसर में मनोविज्ञानिक परामर्शदाता केंद्र की स्थापना करे ताकि छात्र एवं छात्राओं का सही मार्गदर्शन हो सके I

सन्दर्भ

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Kumari, Vandana, 2020 (वंदना कुमारी) “Neurotic personality: An assessment”, M.A. Project submitted for the partial fulfillment of the requirement of M. A. in Psychology, B. N. Mandal University, Madhepura-Bihar

Nishu, Nishant Kumar, 2020 (निशान्त कुमार निशु) “Measuring prevalence of anxiety among Post-Graduate students of B. N. Mandal University”, M.A. Project submitted for the partial fulfillment of the requirement of M. A. in Psychology, B. N. Mandal University, Madhepura-Bihar

Vishal, Rahul, 2020 (राहुल विशाल) “A correlational study of adjustment of university students”, M.A. Project submitted for the partial fulfillment of the requirement of M. A. in Psychology, B. N. Mandal University, Madhepura-Bihar