GDP बनाम अर्थव्यवस्था/आशीष कुमार माधव

आलेख/GDP बनाम अर्थव्यवस्था/आशीष कुमार माधव

ग्राॅस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) सकल घरेलू उत्पाद दूनियाँ के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के सेहत को मापने का यह एक जरिया होता है या यूं कहें यह एक तरीका है।
GDP=उपभोग+सकल निवेश + सरकारी खर्च (GDP= C+ I +G ₹+X-M ).. समीकरण का निर्यात- आयात वाला भाग घरेलू रूप से उत्पन्न नहीं होने वाले व्यय के भाग को घटाकर (आयात) और इसे फिर से घरेलू क्षेत्र मे जोङकर (निर्यात) समायोजित करता है। उपभोग के पद को दो भागों मे बांटा जाता है निजी उपभोग और सार्वजनिक क्षेत्र का खर्च।
यह आंकङा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों मे उत्पादन के वृद्धि दर पर आधारित होता है जीडीपी के तहत कृषि, उद्योग, सेवा तीन प्रमुख घटक आते है।
इसको राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा प्रत्येक तीन महीने पर एवं साल मे एक बार पूर्ण रूप से जारी किया जाता है। वास्तव मे एक निश्चित अवधि मे किसी देश मे उत्पादित, आधिकारिक तौर पर मान्यताप्राप्त अंतिम माल और सेवाओं का बाजार मूल्य ही सकल घरेलू उत्पाद (GDP) है . देश के प्रत्येक व्यक्ति और उद्योग द्वारा किया गया उत्पादन भी इसमे शामिल है। इसे ऐसा समझा जाये कि यह एक छात्र के मार्कसीट जैसा है जो साल भर के प्रदर्शन को एक पन्ने पर ला देता है एवं प्रदर्शन को दिखा देता है। भारत जैसे कम आमदनी वाले देश के लिए साल दर साल अधिक जीडीपी ग्रोथ हासिल करना जरूरी है ताकि बढती आबादी की जरूरतों को खपा सके। वर्तमान समय मे इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही का विकास दर जारी किया गया है जिसमें 23.9 फीसदी का गिरावट दर्ज किया गया है जो कि आजादी के बाद का सबसे खतरनाक स्थिति दर्शाता है। चार अहम घटकों के जरिए जीडीपी का आकलन किया जाता है
1, कंजम्पशन एक्सपेंडीचर है 2,सरकारी एक्सपेंडीचर 3, इन्वेस्टमेंट एक्सपेंडीचर 4, नेट एक्सपोर्टस।
जीडीपी का आकलन नोमिनल और रियल टर्म मे होता है
नोमिनल टर्म्स मे यह सभी वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा कीमतों पर वेल्यू है और जब बेस ईयर के संबंध मे इसे मंहगाई के सापेक्ष एडजस्ट किया जाता है तो हमे रियल जीडीपी मिलती है और रियल जीडीपी को ही हम आमतौर पर अर्थव्यवस्था की ग्रोथ के तौर पर मानते है जो सबसे निम्न स्तर पर आ चूका है। इसके डाटा को हम मुख्य रूप से निम्न सेक्टर से प्राप्त करते है जैसे-कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रीसिटी, गैस सप्लाई , माइनिंग, क्वैरिंग, वानिकी, मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, कम्युनिकेशन, फाइनेंनसिंग, रियल स्टेट,इंश्योरेंस, बिजनेस, सर्विसेज, कम्युनिटी, सोशल, और सार्वजनिक सेवाऐं शामिल हैं यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जीडीपी मे सभी क्षेत्र नहीं आ पाते है ? ये सच्चाई है लेकिन वर्तमान समय मे कृषि छोङकर सभी निगेटिव हैं जो चिंता का विषय है और यहा घटते क्रम 2017 से चले आ रहा है जो खतरनाक स्थिति को दर्शाता है। हालांकि यह आंकङा संगठित क्षेत्र के प्रदर्शन को दर्शाता है एवं पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र की उपेक्षा करता है जो देश के 94 फीसदी रोजगार का उत्तरदायित्व उठाता है. फिर भी यह चिंता का विषय जरूर है। आम जनता के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे मे जा रही है तो इसका मतलब है कि सरकार को अपने नीतियों पर अधिक गंभीर होकर काम करने की जरूरत है। जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से काम करने की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके । इसमे सबसे अहम पहलू यह है कि जब GDP कमजोर होता है तो हर कोई अपने पैसा को बचाने मे लग जाता है लोग कम पैसा खर्च करते है तथा कम निवेश करते है जिसका प्रभाव बैंकिंग सेक्टर पर पङता है रेपो रेट एवं रिवर्स रेपो रेट प्रभावित हो जाता है उसके बाद बैंक पर IMF का दबाव होता है दिवालिया घोषित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है ।
अतः समय रहते अगर इसे नहीं सुधारा गया तो काफी गंभीर परिणाम आने वाले समय मे देखने को मिल सकता है आज हम कोरोना का बहाना बना सकते है और कुछ हद् तक सही भी है मगर पिछले तीन साल से GDP दर का घटना इस बात का द्योतक है कि हमारे अर्थशास्त्री देश को गुमराह कर रहे है या सरकार का योजना व इसके क्रियान्वयन मे कहीं ना कहीं अंतर आ रहा है जो कि चिंता का विषय है इसलिए देश और समाज के लिए अभी कृषि, पशुपालन, स्वरोजगार जैसे तमाम छोटे और मझौले व्वसाय को बढ़ावा देना जरूरी बन गया है। इसे सार्वजनिक जिम्मेदारी के रूप मे लेकर चलना होगा यह केवल सरकार भरोसे संभव नहीं रहा अब? वक्त रहते इसपर प्राथमिकता से काम किया जाये, अन्यथा आने वाले समय काफी खतरनाक होंगे यह तय है।।

आशीष कुमार ‘माधव’
प्राचार्य, सरस्वती विद्या मंदिर
रोसड़ा, समस्तीपुर