BNMU : राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विविध आयाम विषयक सेमिनार का आयोजन

भारत में 34 साल पुरानी शिक्षा नीति चल रही थी जो कि बदलते परिदृश्य के साथ प्रभावहीन हो रही थी। यही कारण है कि बदलते वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत थी।
नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्‍टूबर, 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रह्मण्यन की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की कमिटी बनाई. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दी 27 मई, 2016 को। इसके बाद 24 जून, 2017 को आईएसआरओ के प्रमुख रहे वैज्ञानिक के कस्तूरीगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। 31 मई, 2019 को यह ड्राफ्ट एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया. ड्राफ्ट पर एचआरडी मंत्रालय ने लोगों के सुझाव मांगा थे। इस पर दो लाख से ज्यादा सुझाव आए. इसके बाद 29 जुलाई को केद्रीय कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी। इस इस तरह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी मिल गई है। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विविध आयामों पर विचार-विमर्श की जरूरत है। इसी उद्देश्य से 3 सितंबर, 2020 को राष्ट्रीय सेवा योजना, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा और दर्शन परिषद्, बिहार के संयुक्त तत्वावधान में सेमिनार/वेबिनार का आयोजन किया गया।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा (नई दिल्ली) ने कहा कि शिक्षा सिर्फ अक्षर ज्ञान नहीं है। शिक्षा के लिए सृजनशीलता आवश्यक है। मातृभाषा के माध्यम से सृजनशीलता का विकास होता है।उन्होंने कहा कि कोई भी शिक्षा नीति ऐसी नहीं है, जिसमें विरोधाभास नहीं हो। लेकिन हम पाते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई अच्छी बातें हैं। सबसे बड़ी बात है कि नई शिक्षा नीति भारतीय पर जोर देती है। इसमें विद्यार्थियों को विषय चयन की स्वतंत्रता दी गई है। यह सृजनशीलता को बढ़ावा देने वाली है। अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर (प्रयागराज) ने कहा कि जीवन में तीन चीजें प्रिंसिपल, पाॅलीसी एवं प्रोग्राम महत्वपूर्ण होती हैं। अच्छा प्रिंसिपल एवं अच्छी पाॅलीसी के साथ अच्छे प्रोग्राम की भी जरूरत होती है। अतः मूल्य शिक्षा सिर्फ पाठ्यक्रम में ही नहीं, बल्कि हमारे कार्यक्रम एवं जीवन में भी हो। हमारे माता-पिता, और शिक्षार्थी एवं शिक्षक को इसके लिए तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा वही है, जो विवेक उत्पन्न करे। जो उचित-अनुचित का भेद बताए। यदि शिक्षा विवेक उत्पन्न नहीं करे, तो शिक्षा फलवति नहीं है।

उन्होंने कहा कि हम नई शिक्षा नीति का न खुले मंच से ढ़ोल बजाकर प्रशंसा करें और न ही बिना सोचे-समझे आलोचना करें। हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि इसका सुसंगत क्रियान्वयन हो।

सिंघानिया विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) सोहनराज तातेड़ ने शिक्षा ही मनुष्य को पशु से अलग करती है। शिक्षा हमें देवत्व की ओर ले जाती है।

मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर की प्रति कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी ने कहा कि लाॅर्ड मैकाले ने भारत पर औपनिवेशिक शिक्षा नीति लादी। इसके जरिए भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर आघात किया गया। मैकाले का उद्देश्य था कि भारतीयों को मानसिक रूप से अपंग बना दिया जाए। भारतीय नस्ल एवं रंग से भारतीय रहे, लेकिन वे अपनी संस्कृति को भूल जाएँ और विचार एवं संस्कार से अंग्रेज बन जाएँ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मैकाले की इस दृष्टि का निषेध करती है।

दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. बी. एन. ओझा ने कहा कि समृद्ध एवं श्रेष्ठ भारत के निर्माण में शिक्षा नीति की महती भूमिका है। अब हम आशा कर सकते हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली विश्व के अन्य विकसित देशों के बराबर होगी और हमारे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी और रोजगार का अवसर भी मिलेगा। एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सपना साकार होगा।

महामंत्री डाॅ. श्यामल किशोर ने कहा कि ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ का गौरव दे दिया गया है। हमें आशा है कि यह नाम परिवर्तन विभाग के गुणधर्म में भी परिवर्तन करेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि नई शिक्षा नीति भारतीय सभ्यता-संस्कृति एवं दर्शन की मूलभूत अवधारणाओं पर आधारित है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों के व्यवहारिक मूल्यांकन पर जोर दिया गया है। मातृभाषा को माध्यम बनाने की बात की गयी है। संस्कृति पर, क्षेत्रीय भाषा पर जोर दिया गया है। वर्तमान नई शिक्षा नीति में आत्मनिर्भर और व्यावहारिक ज्ञान पर जोर दिया गया है।

नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय, झारखंड के प्रति कुलपति डॉ. डी. एन. यादव ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों पर किसी स्ट्रीम की श्रेष्ठता नहीं लादी जाएगी। विद्यार्थी एक विषय से दूसरे विषय में जा भी सकेंगे और अलग-अलग स्ट्रीम के विषय भी एक साथ पढ़ सकेंगे। इसमें लचीलापन रखा गया है। खास बात यह है कि विद्यार्थियों के लिए मल्टीपल इंट्री और एक्जिट सिस्टम की व्यवस्था है। विद्यार्थियों को एक वर्ष में सर्टिफिकेट कोर्स, दो वर्ष में डिप्लोमा और तीन वर्ष में डिग्री मिलेगी। साथ ही विद्यार्थियों के व्यावहारिक मूल्यांकन पर जोर देना भी सराहनीय है।

हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल में फेक्लटी डेवलपमेंट सेंटर की निदेशक प्रोफेसर डाॅ. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 एक महत्त्वाकांक्षी और सकारात्मक भविष्यदृष्टि लिए हुए है। इसके लिए शिक्षकों और छात्रों से इसकी बहुत अपेक्षाएं हैं।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति शिक्षकों से यह अपेक्षा रखती है कि वे ऐसी शिक्षा विधि प्रविधि और विषय वस्तु शिक्षा परिणाम शिक्षा पर बल दे। तकनीकी के प्रयोग में पारंगत हो। छात्रों में कौशल, ज्ञान और मूल्य सबका समग्र विकास करें। बहु विषयी शिक्षा के विकास, तकनीकि प्रयोग, स्थानीय भाषा मे शिक्षा और आधुनिक तकनीकि से मूल्य शिक्षा की अपनी चुनौतियां है।

उन्होंने कहा कि मातृ भाषा का सम्मान निश्चित रूप से सम्माननीय है परंतु वैश्विक पटल पर यदि हमें अपनी जगह बनानी है, तो एक वैश्विक भाषा पर भी अपनी पकड़ बनानी होगी। यदि नई शिक्षा नीति के अनुसरण में शैक्षणिक क्रिया कलाप को आगे बढ़ाना है और छात्रों को कौशल और ज्ञान के साथ एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है तो शिक्षकों को सकारात्मक रूप से इन चुनौतियों को स्वीकार करना होगा।

उन्होंने संस्था की स्वायत्तता के स्वरूप पर भी प्रश्न उठाये। उन्होंने शैक्षणिक नेतृत्त्व की दूरदर्शी दृष्टि और विशेष कार्ययोजना की आवश्यकता पर भी बल दिया।टीएमबीयू, भागलपुर में मानविकी संकाय के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. प्रभु नारायण मंडल ने कहा कि व्यक्ति और राष्ट्र के विकास में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राष्ट्र के विकास में इसकी भूमिका यह है। इसी के द्वारा राष्ट्र की भावी दिशा तय होती है और राष्ट्र अपना एक विशिष्ट स्वरूप ग्रहण करता है। यही व्यक्ति के अन्य निहित क्षमताओं और संभावनाओं के प्रकट होने की परिस्थितियां पैदा करने में सहायक होती है। व्यक्ति के एक योग्य और काबिल नागरिक बनने में मदद करती है।

स्काॅटिस्ट चर्च महाविद्यालय, कोलकाता में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डाॅ. गीता दूबे ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कई अंतर्विरोध हैं। अभी रेखाचित्र बना है, लेकिन रंग भरने में काफी समय लगेगा। इसमें काफी समय लगेगा। मूल्य शिक्षा को इसकी एक बड़ी विशेषता बताई जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या पहले मूल्य शिक्षा नहीं थी ? भाषा नीति भी स्पष्ट नहीं है। 5वीं तक मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा। इसके बाद क्या होगा ? सवाल यह भी है कि क्या सबों तक शिक्षा पहुंचे पाएगी ? क्या सिर्फ पैसे वाले ही पढ़ाई करेंगे ? यह तीन तरह के संस्थानों की बात कर एक नए तरह की श्रेणीगत असमानता को बढ़ावा देने वाली है।

दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली की डाॅ. जसपाली चौहान ने कहा कि शिक्षा नीति कोई भी हो देश के विकास में उसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। नई शिक्षा नीति रोजगार की गारंटी देती है। जैसे कि जो बी.एड. करेगा, उसको रोजगार मिलेगा ही मिलेगा। मुख्यत: तो हमें अर्थव्यवस्था मजबूत करनी है। नई शिक्षा नीति में इसी बात पर जोर दिया गया है। हमारे यहां का best talent हमारे यहां रहे हैं और विदेशों का बेस्ट टैलेंट हमारे यहां आएंगे। इससे हमारे यहां राजस्व आएगा। शिक्षक अपनी सोच खुद बदलेंगे, तो उनको छात्रों की सोच बदलने में आसानी होगी। वर्तमान शिक्षा नीति में विषयों की विविधता होगी।

शिक्षा संकाय, टीएमबीयू, भागलपुर के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि शिक्षा सुखद एवं सफल जीवन जीने की कला है। यह एक सतत प्रक्रिया है। यह गर्भाधान से ही शुरू होती है और मृत्युपर्यंत चलती रहती है।

उन्होंने कहा कि शिक्षण से अभिप्राय सामान्यता ज्ञान या कौशल प्रदान करना है। इसके माध्यम से शिक्षार्थियों को अनुदेश या उपदेश दिया जाता है तथा प्रभावित एवं प्रेरित किया जाता है। यह प्रयोग एवं उपयोग की गत्यात्मकता के लिए उत्प्रेरक का काम करता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा एक उद्देश्यपूर्ण सक्रिय प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य मानव एवं समाज का सर्वांगीण विकास है। यह समाज में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुता को बढ़ावा देती है और हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है।

इस अवसर पर डॉ. कामेश्वर झा, डॉ. वी. डी. त्रिपाठी, डॉ. पूजा शुक्ला, डॉ. किस्मत कुमार सिंह, डॉ. नरेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. विजय कुमार, डॉ. संजीव कुमार झा आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। https://youtu.be/UlJhDGTdzCk

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा नै किया।धन्यवाद ज्ञापन सिंडीकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को श्रद्धांजलि दी गई। खुशबू शुक्ला शांतिपाठ एवं मंगलाचरण प्रस्तुत किया। प्रांगण रंगमंच, मधेपुरा की शशिप्रभा जायसवाल एवं तनुजा सोनी ने प्रार्थना एवं देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। अंत में डाॅ. राहुल मनहर, असिस्टेंट प्रोफेसर, एलएनएमयू, दरभंगा द्वारा गिटार वादन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।इस अवसर पर एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार, एमएड विभागाध्यक्ष डॉ. बुद्धप्रिय,डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. मनोज कुमार, डाॅ. उदयकृष्ण, डाॅ. स्वर्णमणि, डाॅ. विजया, डाॅ. याशमीन रसीदी, रंजन यादव, सारंग तनय, माधव कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, अमरेश कुमार अमर, डेविड यादव, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे।

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