कविता/वतन से है जो मोहब्बत/डॉ. दीपा

वतन से है जो मोहब्बत,
वो किसी और से न हो पाएगी,
वही दिल, वही जान,
वही सुकून मेरा।

वतन की राह पर,
मर-मिटने का अपना है मज़ा,
अपनी अमानत पर,
मर-मिटने का अपना है मज़ा।

आखिरी सांस तक
मेरी है उसके ही लिए,
मैं जो ज़िंदा हूँ,
तो ये जिंदगी है,
बस उसके ही लिए।

मेरे चेहरे की रौनक़ का,
जब भी ज़िक्र आएगा,
मुझसे पहले तेरा ही,
ज़िक्र आएगा, ए मेरे वतन!

वतन से है जो मोहब्बत
वो किसी और से न हो पाएगी…

जय हिंद, जय भारत!

डॉ. दीपा
सहायक प्राध्यापिका
दिल्ली विश्वविद्यालय