Poem। कविता/तुम ही तो हो!/ डॉ. दीपा

ज़र्रे-ज़र्रे में तुम हो बसे,
धरती-आकाश,
तुम्ही तो हो।

पंछियों की चहचहाहट,
कोयल की मधुर आवाज़ से,
मिलती दिल को जो राहत,
तुम्ही तो हो।

मेरी आँखों,
मेरे दिल-ओ-दिमाग में जो बसा,
तुम्ही तो हो।

मैं जो सपना देखती हूँ,
उसकी सुंदर तस्वीर,
तुम्ही तो हो।

तुम्हे देखकर,
इन होंठो पर है जो आ जाती,
वो मधुर मुस्कान,
तुम्ही तो हो।

मेरा दोस्त, मेरा प्रिय,
कोई और नहीं,
तुम्ही तो हो।

मेरे गीतों की गुनगुनाहट,
उनकी लय और ताल,
अंदर तक जो छू जाए,
वो सुधबुधाहट,
वो बुदबुदाहट,
तुम्ही तो हो।

मेरे ज़ज़्बातों को पता,
मेरे जीवन की कथा,
वो सुंदर दास्तां,
जिसे मैं जीना चाहती हूँ,
वो कोई और नहीं,
तुम्ही तो हो!

मेरे दिल में जो मूरत है,
मैं जिसको पूजती हूँ,
वो सिर्फ और सिर्फ,
तुम्ही तो हो!

मेरी आँखों की चमक,
मेरे चेहरे की रंगत,
जिसकी संगत से आ जाती,
मेरे जीवन में रंगत,
वो कोई और नहीं,
सिर्फ और सिर्फ,
तुम ही तो हो।

मैं जिसको देख खो जाती,
जिसकी बातों में खो जाती,
वो तुम्ही तो है।

मेरे हाथों की लकीरों में न सही,
पर मेरे जीने की वज़ह,
तुम्ही तो हो।

मेरी आँखों की गहराई,
मेरी आत्मा की सच्चाई,
मेरे अन्तःस्थ में है जो बसी,
वो सूरत,
तुम्ही तो हो।

मेरी मन्ज़िल,
मेरा साहिल, मेरी पहचान,
मेरा सब कुछ,
और कोई नहीं,
तुम्ही तो हो।

डॉ. दीपा
सहायक प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय