सेमिनार/वेबिनार : पैनल डिस्कशन का आयोजन : मनोवैज्ञानिकों की बढ़ी जिम्मेदारी

कोरोना का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव विषयक एक दिवसीय वेबिनार के अंतर्गत पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसके लिए ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिकों को आमंत्रित किया गया था।

विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक के रूप में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना के जाने-माने मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ. जयमंगल देव ने कोविड-19 का शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य का संबंध मस्तिष्क एवं शरीर के सहसंबंध से है। अगर स्वास्थ्य असामान्य होता है, तो इसका सीधा प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है। कोविड-19 महामारी ने मानव मस्तिष्क को आघात पहुंचाया है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से आम जनता आहत हुई है। अचानक कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उससे सीधे मानव मस्तिष्क पर प्रहार पड़ा है। पूरे विश्व में इस संक्रमण से मनोवैज्ञानिक विकार उभर कर सामने आने लगे हैं। बीमार मन का सीधा प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर साफ-साफ देखने में आ रहा है। मानसिक दबाव के कारण अनेकों प्रकार की मनोदैहिक रोगों से लोग ग्रस्त होने लगे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा के स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचार का वास होता है। अतः इस गंभीर मसले को निदान करना आवश्यक है और मनोविज्ञानीको को आगे बढ़ने की आवश्यकता है‌।पटना विश्वविद्यालय, पटना की सहायक प्राध्यापक एवं नैदानिक मनोवैज्ञानिक निधि सिंह ने कोविड-19 और युवा के मानसिक स्वास्थ्य पर अपने विचार रखे। उन्होंने बल दिया कि युवा हमारे देश के भविष्य हैं। अतः उनकी महत्ता बहुत अधिक है। कोविड-19 के फैलाव से सबसे अधिक मानसिक रूप से अवसादग्रस्त यदि कोई वर्ग हुआ है, तो वह युवा वर्ग है। उनके सामने भविष्य की चिंताएं हैं। वह आहत हैं। शैक्षणिक संस्थान बंद है और जो नौकरी में थे, वे सड़कों पर आ गए हैं। बेरोजगारी चरम सीमा पर है। युवा आपसे ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, स्ट्रेस डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे रोगों से ग्रस्त है। उनमें क्वालिटी ऑफ लाइफ की काफी कमी देखने में आ रही है। आवश्यकता है कि उनके जीवन को कैसे उम्दा बनाया जा सके। ऐसे में स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों को आगे आने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं के मनोविज्ञान को समझने पर बल दिया।ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक प्रोसेसर डॉ. अनीस अहमद ने जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ पर अपने व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि 60 की उम्र या उससे अधिक उम्र के लिए कोरोनावायरस महाकाल के रूप में उभरकर सामने आया है। कोविड-19 का प्रभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक पड़ रहा है। उनमें याददाश्त की कमजोरी अवसाद निराशा और मृत्यु का भय अत्याधिक पाया जा रहा है। वह सामाजिक स्तर पर भी स्वयं को अलग-थलग पा रहे हैं। इन कारणों से उनका दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है। आवश्यकता है कि समाज के हर व्यक्ति आगे बढ़े और एक दूसरे का सहयोग करे। जहां तक संभव हो स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले और संयम बरतें। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के सहायक प्राध्यापक एवं नैदानिक मनोवैज्ञानिक अमृत कुमार झा ने ग्रामीण स्वास्थ्य और कोविड-19 के मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस को लेकर सबसे अधिक स्वास्थ्य समस्याएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। आम जन को जागरूक करने की आवश्यकता है। सबसे अधिक लापरवाही आज ग्रामीणों द्वारा ही बरती जा रही है। वह मानसिक रूप से अधिक कमजोर होते जा रहे हैं। इसके कारण शारीरिक रोगों की जद में भी आ रहे हैं।उन्होंने कहा कि नेशनल रूरल हेल्थ मिशन को न केवल शारीरिक रोग के निदान पर बल देना चाहिए, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। मनोवैज्ञानिकों को भी इस ओर विशेष रुप से ध्यान देने की आवश्यकता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी डॉ. बरखा अग्रवाल ने कोविड-19 और महिलाओं के मानसिक रोग पर अपने विचार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि करोना महामारी की वजह से सबसे अधिक महिलाएं प्रभावित हैं‌ घरेलू महिलाएं एवं कामकाजी महिलाएं मनोवैज्ञानिक दबाव में जीने को विवश हैं। कॉलेज, स्कूल और कार्यालय बंद होने के कारण उन्हें पति एवं बच्चों के दवाब को ज्यादा झेलना पड़ रहा है। इसने उन्हें अत्याधिक चिरचिरा बना दिया है। कामकाजी महिलाएं वर्क फ्रॉम होम के प्रेशर में रह रही हैं। ऐसी स्थिति में उनमें मानसिक तनाव देखने को मिलने लगा है। वे अनेकों प्रकार के मानसिक रोगों से ग्रस्त होती जा रही हैं।

चर्चा-परिचर्चा के दौरान पैनल एक्सपोर्ट्स इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोरोनावायरस का प्रहार हर व्यक्ति पर चारों ओर से हो रहा है। इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है। भारत सरकार एवं बिहार सरकार को चाहिए कि वह मनोवैज्ञानिकों की अधिक से अधिक सेवाएं लें। लोगों को जागरूक करने पर भी बल दिया जाए।

पैनल डिस्कशन का संचालन एवं मॉडरेशन भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के एकेडमिक डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने किया।

उन्होंने कहा कि आज प्रभावी औषधियों एवं वैक्सीन के अभाव में इस रोग की चिकित्सा संभव नहीं हो पा रही है। इस रोग का इलाज केवल सोशल डिस्टेंसिंग ही माना जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो इस महामारी की रोकथाम लॉकडाउन के द्वारा ही संभव है। उन्होंने बताया कि कोरोना एवं लाॅकडाउन का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है। लोगों के अंदर चिंता, भय, अवसाद, पैनिक अटैक, पछतावा, अपच, अनिद्रा आदि मनोवैज्ञानिक रोगों के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे हैं। उनमें गुस्सा, चिड़चिड़ापन अत्यधिक आने लगा है। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति जो अपने परिवार से काफी दूर हैं, वे अत्यधिक मनोविकारों से ग्रसित होने लगे हैं। लोग खाली रहने के कारण अपना अधिकतम समय मोबाइल या लैपटॉप पर दे रहे हैं। इसके कारण वे देर रात तक सो नहीं पाते हैं। जिस तरह से बच्चे किशोर एवं व्यस्क अपने-अपने मोबाइल के स्क्रीन से चिपके रहते हैं, उनमें कंप्यूटर वर्जन सिंड्रोम होने की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं।

उन्होंने कहा कि लाॅकडाउन में रोजगार और आय के स्रोत कम हो गए हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को पौष्टिक आहार भी नहीं मिल पा रहा है। इससे उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो रही है। लोगों की सोचने-समझने की क्षमता में कमी आ रही है। उन्होंने कहा कि स्कूल और विश्वविद्यालय बंद होने की वजह से विद्यार्थियों के सामने भविष्य का भय उभरकर सामने आने लगा है। अतः सभी अभिभावकों को सचेत रहने की आवश्यकता है। हमें अपने मन को शांत रखना है और आपसी प्रेम बनाए रखना है। कोरोना की समाप्ति फिलहाल संभव नहीं है। हमें इसी के बीच और इसी के साथ रहना है, अतः सावधानी जरूरी है।

इस अवसर प्रो. ( डॉ.) के. के. साहू, वनस्पति विज्ञान विभाग, एलएनएमयू, दरभंगा, प्रो. (डॉ.) सोहनराज तातेड़, पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान, प्रो. (डॉ.) नरेन्द्र श्रीवास्तव, जंतु विज्ञान विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा, डाॅ. विजय कुमार, अध्यक्ष, गाँधी विचार विभाग, टीएमबीयू, भागलपुर, डाॅ. जवाहर पासवान, सिंडीकेट सदस्य, बीएनएमयू, मधेपुरा, डाॅ. शेफालिका शेखर, हिंदी विभाग, बीएनएमभी काॅलेज, मधेपुरा आदि का भी व्याख्यान हुआ।

कार्यक्रम का उद्घाटन दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर बीएन ओझा एवं बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉक्टर धनजय द्विवेदी ने संयुक्त रूप से किया। प्रधानाचार्य  डाॅ. के. पी. यादव ने स्वागत भाषण दिया। जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने कार्यक्रम का संचालन किया।धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. अभय कुमार, समन्वयक, एनएसएस, मधेपुरा ने किया।

खुशबू शुक्ला ने वंदना प्रस्तुत किया। शशिप्रभा जायसवाल, कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रांगण रंगमंच, मधेपुरा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। सिंहेश्वर की तनुजा ने भी एक गीत प्रस्तुत किया। अंत में डाॅ. राहुल मनहर, असिस्टेंट प्रोफेसर, एलएनएमयू, दरभंगा द्वारा गिटार वादन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

इस अवसर पर एमएड विभागाध्यक्ष डॉ. बुद्धप्रिय, डाॅ. संजय कुमार परमार, डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. बी. एन. यादव, डाॅ. उदयकृष्ण, डाॅ. स्वर्णमणि, रंजन यादव, सारंग तनय, माधव कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, अमरेश कुमार अमर, डेविड यादव, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे।