Poem। कविता/ हौसलों की चादर/ गीता जैन

हौसलों की चादर मे लिपट
बेपनाह उम्मीदों से
चलती ज़िन्दगी
अब थक कर पूछती है
कितना सफ़र और बाकि है ?
मैने आसमानों पर
टकटकी लगा कर देखा
कोई आहट सुगबुगाहट
न दिखी।
शायद अभी इम्तिहान बाकि है।
मैने उम्मीदों को थपथपाकर-
बहलाकर चलते रहने का इशारा किया
पर इस वक़्त ज़िन्दगी ने
हौसलों-उम्मीदों से
मुड़ कर न देखा
न मुस्कुराया
मै भी शिथिल क़दमों से
सरकती घिसटती
चली ज़िन्दगी के साथ। -गीता जैन, राजनीति शास्त्र मे एम०ए० पत्रकारिता मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा, बेसिक -एडवांस कोर्स पर्वतारोहण, पारिवारिक जीवन की प्राथमिकता, सामाजिक मूल्यों की संरक्षा करते हुए स्वान्तः सुखाय साहित्य साधना का लक्ष्य।
जागरुक संवेदनशील नागरिक की भांति सामाजिक वातावरण में व्याप्त विसंगतियों की महसूस करती एवम अभिव्यक्त करती हूँ।
परिवर्तन सार्थक व सबल हो इस
विचार में आस्था व विश्वास के लिए मानसिक जागरूकता ज़रूरी है विचारों की सार्थकता के लिए। मानवीय मूल्यों की धरोहर पर विश्वास आवश्यक है। कुछ ऐसे ही मुद्दे उद्वेलित कर कविता का रूप ले लेते है।

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