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BNMU विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर सम्मानित किए गए 20 हिंदीसेवी।

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विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर सम्मानित किए गए 20 हिंदीसेवी

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पटना, 10 जनवरी। इस समय संसार में सबसे तीव्र गति से विस्तृत हो रही भाषा का नाम ‘हिन्दी’ है। आधुनिक हिन्दी जो संसार की सबसे नवीनतम भाषा है, आज संख्या की दृष्टि से विश्व की दूसरी भाषा बन चुकी है। विश्व के १५० से अधिक देशों के २०० से अधिक विश्वविद्यालयों में इसकी पढ़ाई हो रही है। सबा अरब से अधिक लोग हिन्दी पढ़, बोल और लिख सकते हैं। यदि यह चीन की ‘मंदारिन’ की भाँति, भारत की ‘राष्ट्रभाषा’ बना दी गयी होती तो आज, संख्या की दृष्टि से बोली जानेवाली यह विश्व की सबसे बड़ी भाषा होती।

यह बातें बुधवार को, विश्व हिन्दी दिवस पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि हिन्दी एक विशुद्ध वैज्ञानिक और सरस भाषा है। यह अपनी वैज्ञानिकता, माधुर्य और बाज़ार की मांग के कारण पूरे विश्व में बहुत तेज़ी से विस्तृत हो रही है। किंतु पीड़ा और लज्जा का विषय यह है कि यह आज तक वह स्थान प्राप्त नहीं कर पायी, जो इसे भरत के संविधान ने १४ सितम्बर, १९४९ को प्रदान किया था।

समारोह का उद्घाटन करते हुए, उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष एवं पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती है। किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से हम सभी एक है। यह दुःख की बात है कि हम स्वतंत्रता के ७५ वर्ष बीत जाने के बाद भी ‘हिन्दी’ देश की राष्ट्रभाषा नहीं बनायी जा सकी। जबकि स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह एक मत बना था कि भारत को एक सूत्र में जोड़ने के लिए, देश में सर्वाधिक स्थानों पर बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ को ‘राष्ट्रभाषा’ बनायी जाएगी। एक राष्ट्र, एक विधान और एक ध्वज की बातें हो रही हैं, तो एक राष्ट्रभाषा की बात भी होनी चाहिए। विश्व हिन्दी दिवस पर हमें इसी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय, डा मधु वर्मा, पारिजात सौरभ, डा सच्चिदानन्द प्रेमी, डा पूनम आनन्द तथा आनंद किशोर मिश्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर, २० हिन्दी सेवियों को, ‘हिन्दी-रत्न’ अलंकरण से विभूषित किया गया, जिनमें वरिष्ठ कवि बाबूलाल मधुकर, सिद्धेश्वर, डा कालेश्वरी प्रसाद यादव, डा विद्या चौधरी ,, डा रामकृष्ण संज्ञायन, कमलेश पूण्यार्क , विकास कुमार झा, डा श्री राम दूबे, कमला प्रसाद, डा पंकजवासिनी, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’, ज्योति मिश्र, प्रीति सुमन, कुमुद कुमार मिश्र, डा सरिता सिन्हा, उमेश कुमार पाठक ‘रवि’, डा आभा रानी, शक्ति प्रिया, अरविन्द अकेला तथा डा वर्षा रानी के नाम सम्मिलित हैं।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कवयित्री आराधना प्रसाद, आचार्य विजय गुंजन, डा पुष्पा जमुआर, इंदु उपाध्याय, अनिता सिद्धि, शमा कौसर ‘शमा’, डा गीता सहाय, डा मीना कुमारी परिहार, मधुरानी लाल, डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, शुभचंद्र सिन्हा, ई अशोक कुमार, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, शंकर शरण मधुकर, ज्योति कुमारी, रिम्पी ऐश्वर्य, राजप्रिया रानी, राम कृष्ण, डा पंकज कुमार सिंह आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

इस अवसर पर  हिंदी के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य करने वाले 20 साहित्यकारों को सम्मानित करने के क्रम में, तर्पण एवं राइजिंग बिहार के साहित्य संपादक वरिष्ठ साहित्य का सिद्धेश्वर को भी हिंदी रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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