BNMU *स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत जैविक नारीवाद पर संवाद संपन्न* एक आंदोलन भी है नारीवाद : प्रो. नीलिमा सिन्हा

*स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत जैविक नारीवाद पर संवाद संपन्न*

एक आंदोलन भी है नारीवाद : प्रो. नीलिमा सिन्हा

नारीवाद महज एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन भी है। यह स्त्रियों के लिए स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुता का हिमायती है।

यह बात कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा की पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) नीलिमा सिन्हा ने कही। वे जैविक नारीवाद विषयक संवाद में मुख्य वक्ता थीं। कार्यक्रम का आयोजन दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली के स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि नारीवाद के कई प्रकार हैं, जिनमें जैविक नारीवाद विशिष्ट है। यह मानता है कि स्त्री एवं पुरुष जैविक रूप से अलग अलग-अलग हैं और दोनों में शारीरिक एवं मानसिक विभिन्नताएं हैं। इसलिए हमें स्त्री-पुरुष समानता नहीं, बल्कि सामंजस्य की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि जैविक नारीवाद ऐसे समाज की स्थापना करना चाहता है, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों अपने नैसर्गिक शारीरिक संरचनाओं के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से रहे। दोनों एक-दूसरे का आदर एवं सम्मान करें और परस्पर सहयोगी बनें।

उन्होंने कहा कि जैविक नारीवाद का मानना है कि पितृसत्ता न केवल स्त्रियों के लिए, बल्कि पुरूषों के लिए भी हानिकारक है। इसलिए यह परिवार एवं समाज की संरचना में परिवर्तन चाहता है और इसमें स्त्रियों की सम्मानपूर्ण भागीदारी और उन्हें निर्णय की स्वतंत्रता देने का पक्षधर है।

*भारतीय परंपरा में है नारी का उंचा स्थान : रमेशचंद्र*

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष सह आईसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि सामान्यतः भारतीय परंपरा में नारी को उंचा स्थान दिया गया है, लेकिन कहीं-कहीं नारी के बारे में आपत्तिजनक बातें भी मिलती हैं। हम परंपराओं की अच्छाइयों को आत्मसात करें और बुराइयों को छोड़ दें।

उन्होंने कहा कि आधुनिकता की अंधदौड़ में चारों ओर व्यक्तिवाद बढ़ा है और पारिवार टूटने से विघटन की स्थिति उत्पन्न हुई है। इसके कारण पूरी दुनिया चिंतित है और दुनिया के लोग भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं।

*रेडिकल नारीवाद घातक : जटाशंकर*
मुख्य अतिथि दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कहा कि भारतीय परंपरा में स्त्री एवं पुरुष दोनों को एक-दूसरे का पूरक माना गया है और दोनों के बीच सामंजस्य का आदर्श प्रस्तुत करता है। इसमें परिवार एवं विवाह की प्रतिष्ठा है, जिसमें पुरुष एवं स्त्री दोनों की भागीदारी है। लेकिन रेडिकल नारीवाद परिवार एवं विवाह की सत्ता को नकारता है और पुरुष मात्र का विरोधी है। ऐसी अवधारणा मानव सभ्यता के लिए घातक है।

कार्यक्रम में विशेष रूप से टिप्पणी एवं प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन भी किया गया। इसमें माधव तुर्मेला (लंदन) एवं डॉ. आलोक टंडन (उत्तर प्रदेश) ने सारगर्भित टिप्पणी की और की प्रासंगिकता प्रश्न पुछे।

अतिथियों का स्वागत दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्ष सह दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह और धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। तकनीकी पक्ष शोधार्थी द्वय सौरभ कुमार चौहान एवं सारंग तनय ने संभाला।

*लगभग सौ लोग उपस्थित*
संवाद में लगभग सौ लोगों ने भागीदारी निभाई। इनमें डॉ. गीता मेहता, डॉ. आशा मुदगल, डॉ. वीणा कुमारी, डॉ. अनिल तिवारी, रंजन कुमार, माधव कुमार, गुरुदेव, गौरव मिश्रा, हबीब मुर्शीद, हर्ष सागर, हेमा, हिमालय कुमार, हिमांशु राज, जय नारायण पंडित, कल्याणी, कामेश्वर, कृष्णा कुमारी, प्रतिभा सिंह, लवली झा, लता कुमारी, माया पांड्या, मुन्ना रानी, नंदकिशोर झा, नंदकिशोर सिंह, नसीमा दिलकश, नयन रंजन, निशा प्रयास, पल्लवी राय, प्रतिभा प्रिया, प्रेम शंकर सिंह, रजनीकांत पासवान, रजनीकांत, रंजन यादव, राणा निरंजन, ऋषिकेश कुमार, सोनी झा, सावित्री, संदीप कुमार, सर्वजीत पाल, सत्येंद्र सिंह, शैलेश मिश्रा, सुशांत मिश्रा, शिव कुमार चौरसिया, श्रुति पेरियार, श्याम प्रिया, सुभाष कुमार, सुनील कुमार, स्वाति स्वराज, सुनील कुमार, रिंकू कुमारी, वर्षा किरण, बटुकेश्वर परमार, विनय कुमार, विवेक कुमार, विवेक रंजन, शिवम, मेघा कुमारी, विजय प्रकाश, डॉ. अजय कुमार झा, कुमार विजवान, आरती कुमारी रंजीत कुमार, अजय कुमार, सुप्रिया प्रियदर्शनी, अनुभव द्विवेदी, रागिनी कुमारी, अनिल तिवारी, प्रीति राय, सुनंदा किशोर, डॉ. संतोष कुमार, आशा भारती, डॉ. अजय कुमार झा, सुशील कुमार, अक्षय सिद्धांत, अभिषेक पांडेय, चंचल कुमार, निवारण, दीपक कुमार सिन्हा, डॉ. उदय सिंह, विजय शंकर, स्नेहा कुमारी, गौरव कुमार, सुनील सिंह, मुकेश चौहान, . हिमांशु शेखर सिंह, संदीप कुमार,डॉ. प्रभाष कुमार, रंजीत कुमार, नीरज कुमार, अजीत पांडे , मनोज कुमार राज, अभिषेक गुहा, अघोरी महेश्वरी, अली अहमद, अमृता मिश्रा, अली अहमद, अंकित कुमार, अन्नू सिंह, अशोक, आशुतोष आनंद, बालकृष्ण, भास्कर खान, निरंजन, वीरेंद्र कुमार, चंदन, दीपक, आचार्य जितेंद्र कुमार, दिलखुश कुमार, गौरव मिश्रा आदि थे।

*कौन हैं प्रो. नीलिमा सिन्हा ?*
डॉ. शेखर ने बताया कि प्रो. (डॉ.) नीलिमा सिन्हा का नाम देश के जानेमाने दार्शनिक एवं नारीवादी लेखिका में शूमार हैं। आप के. एस. डी. संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार) की कुलपति एवं प्रति कुलपति और बी. आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर की प्रति कुलपति भी रही हैं। आपने कई पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया है।‌ बहुचर्चित पुस्तक भारतीय ज्ञानमीमांसा के लिए आपको अखिल भारतीय दर्शन परिषद् से पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। विभिन्न पत्रिकाओं में आपके दर्जनों शोध पत्र प्रकाशित हैं। आपने दर्जनों सेमिनार, सम्मेलनों, कार्यशालाओं एवं विशेष व्याख्यान कार्यक्रमों में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में भाग लिया है।

*हो चुके हैं बारह संवाद*
डॉ. शेखर ने बताया कि बीएनएमयू, मधेपुरा में अप्रैल 2022 से स्टडी सर्किल कार्यक्रम की शुरुआत हुई है और अब तक सफलतापूर्वक बारह संवादों का आयोजन किया जा चुका है।

उन्होंने बताया कि पूर्व में संवाद के अंतर्गत सांस्कृतिक स्वराज, गीता का दर्शन, मानवता के लिए योग, भारतीय दर्शन में जीवन-प्रबंधन, प्रौद्योगिकी एवं समाज, समाज- परिवर्तन का दर्शन, गांधीवाद : सिद्धांत एवं प्रयोग, युवाओं के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश, वैदिक दर्शन का मानवतावादी दृष्टिकोण, भारतीय दर्शन में भारतीय क्या है और हाइडेगर की दृष्टि में सत्ता एवं मनुष्य जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो चुकी है। इन संवादों के वक्ता क्रमशः प्रो. रमेशचन्द्र सिन्हा (नई दिल्ली), प्रो. जटाशंकर, (प्रयागराज), प्रो. एन. पी. तिवारी (पटना), प्रो. इंदु पांडेय खंडुरी (गढ़वाल), डॉ. आलोक टंडन (हरदोई), प्रो. पूनम सिंह (पटना), डॉ. मनोज कुमार (वर्धा), माधव तुरूमेला (लंदन), डॉ. गोविन्द शरण उपाध्याय (नेपाल), प्रो. सच्चिदानंद मिश्र (नई दिल्ली), प्रो. सभाजीत मिश्र (गोरखपुर) और जैविक नारीवाद (प्रो. नीलिमा सिन्हा)।