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ICPR स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत संवाद आयोजित। हाइडेगर ने अस्तित्ववाद को दी गहराई : प्रो. मिश्र

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*स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत संवाद आयोजित*
हाइडेगर ने अस्तित्ववाद को दी गहराई : प्रो. मिश्र

जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर (1889-1976) अनीश्वरवादी अस्तित्ववाद के समर्थक थे।

जे. पी. सात्र अस्तित्ववाद की ऊंचाई है, तो हाइडेगर के दर्शन में इसकी गहराई का पता चलता है।

यह बात दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के पूर्व प्रति कुलपति एवं उत्तर भारत दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सभाजीत मिश्र ने कही।

वे मंगलवार को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर) नई दिल्ली के स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत ‘हाइडेगर की दृष्टि में सत्ता एवं मनुष्य’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।

कार्यक्रम का आयोजनदर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया। आयोजन की खास बात यह रही कि पहली बार पाश्चात्य दर्शन के किसी विचारक को केंद्र में रखकर संवाद आयोजित किया गया।

उन्होंने बताया कि हाइडेगर का दर्शन अद्वितीय है, क्योंकि उन्होंने दर्शन को अस्तित्व के मूलभूत प्रश्न पर वापस लाने का प्रयास किया।
उन्होंने तर्क दिया कि संसार और जीवन का अर्थ होने का प्रश्न है और बाकी सब कुछ इस वास्तविक प्रश्न से ध्यान भटकाना है।

हाइडेगर का दर्शन इस विचार पर निर्भर करता है कि विश्व का अस्तित्व मानव अस्तित्व से जुड़ता है।

दुनिया मौजूद है क्योंकि हम वहां हैं, जो अगर हमसे जुड़ा नहीं है, तो अर्थहीन है।

उन्होंने हाइडेगर के हवाले से बताया कि दर्शन का मुख्य उद्देश्य सत्ता का विश्लेषण करना है। दार्शनिक सत्ता के संबंध में प्रश्न करना भूल गया है और दार्शनिक चिंतन इस संबंध में तटस्थ हो गया है।

अतः हमें दार्शनिकों को सत्ता के मूलभूत प्रश्न पर फिर से जगाने की जरूरत है।

*भाषा दार्शनिक चिंतन का माध्यम मात्र है भाषा : प्रो. रमेशचन्द्र सिन्हा*

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष एवं दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि हाइडेगर एक जर्मन दार्शनिक थे।

लेकिन उनका दर्शन पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। यह भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों का भी एक लोकप्रिय विषय है।

उन्होंने कहा कि भाषा दार्शनिक चिंतन का एक माध्यम मात्र है। यदि हममें किसी दर्शन को जानने-समझने की प्रतिबद्धता हो, तो भाषा की कोई बाधा नहीं आती है।

हम किसी दार्शनिक और उसके ग्रंथ की मूल भाषा को नहीं जानने के बावजूद उसके दर्शन एवं उसकी पद्धति को जान-समझ सकते हैं।

*अस्तित्ववादी दार्शनिकों में विशिष्ट हैं हाइडेगर : प्रो. जटाशंकर*

इस अवसर पर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष एवं दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कहा कि हाइडेगर का अस्तित्ववादी दार्शनिकों में विशिष्ट स्थान है। इन्होंने न केवल दर्शनशास्त्र की विभिन्न शाखाओं, वरन् अन्य विषयों को भी प्रभावित किया है।

विशेष टिप्पणीकार के रूप में डॉ. आलोक टंडन ने कहा कि हाइडेगर का मुख्य जोर इस बात पर है कि मनुष्य स्वयं अपनी पतनशील स्थित के लिए जिम्मेदार है।

लेकिन हम देखते हैं कि मनुष्य की स्वतंत्रता का अपहरण सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से भी होता है।

कार्यक्रम में विशेष रूप से टिप्पणी एवं प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन भी किया गया। इसमें विशेष रूप से प्रो. शैलेश कुमार सिंह एवं प्रो. पूर्णेन्दु शेखर ने की प्रश्न उठाए।

अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्ष सह दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। तकनीकी पक्ष शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान ने संभाला।

इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. कुसुम कुमारी, भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्ष प्रो. राजकुमारी सिन्हा, डॉ. राजेश कुमार सिंह, डॉ. हरिनारायण पांडेय, डॉ. आशा मुदगल, डॉ. आलोक कुमार, डॉ. उषा सिन्हा, डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप, डॉ. शंकर कुमार मिश्र, डॉ. रोमी सान्याल, डॉ. अनिता कुमारी, डॉ. शैलेंद्र कुमार डॉ. नीतू सिंह, डॉ. प्रफुल्ल कुमार, डॉ. रासबिहारी शर्मा, डॉ. स्नेहा, डॉ. अनीता गुप्ता, डॉ. अमृता कुमारी, अजीत कुमार, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. विश्वास, डॉ. आशुतोष आनंद, अभिनव श्रीवास्तव, विपिन दुबे, भागवत यादव, बृजेश नामदेव, विजेंद्र त्रिपाठी, दीपक कुमार, अनिल कुमार वर्मा, डॉ. कल्पना सिंह, डॉ. लता कुमारी, डॉ. कुमार रवि, मोहम्मद आदिल, रवीश कुमार, मुन्ना कुमार, नंटुन पासवान, नवनीत कुमार, निधि कुमारी, प्रेम कुमार, पूर्णिमा प्रसून, शिवानी रानी, स्नेह लता कुमारी, रजनीकांत, विवेक कुमार, सत्यजीत पाॅल, राकेश सिंह, जयश्री, जूही कुमारी, डॉली सिंह, उजाला कुमारी, नीरज कुमार सिंह, डॉ. हिमांशु शेखर सिंह, राम साहनी, रूपेश कुमार, गौरव सिंह, सारंग तनय, डेविड यादव, शक्ति सागर, शिखर वैष्णवी, श्याम प्रिया, सीता कुमारी, सुनील कुमार, शक्तिशाली, स्वाति गुप्ता, तमन्ना खान, विनीता, सिद्धेश्वर प्रसाद, विनय कुमार, राजेश कुमार सिंह, सुधाकर कुमार, सुजाता सिंह, डॉ. वंदना, रॉकी राज, आशीष मलिक, कैलाश परिहार, सीमा कुमारी, निरंजन कुमार मंडल, अंजली कुमारी, अभय कुमार गुप्ता, मनोहर कुमार ऋतुराज, निरंजन, दिनेश, उज्जवल कुमार भास्कर आदि उपस्थित थे।

*सुप्रसिद्ध दार्शनिक हैं प्रो. मिश्र*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि प्रो. मिश्र एक सुप्रसिद्ध दार्शनिक हैं, आपकी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति है। आपने 1963 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज से में एम. ए की उपाधि प्राप्त की है। आप 1664 में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक बने और वहां प्राध्यापक एवं अध्यक्ष रहे और प्रति कुलपति के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

आपने तीस से अधिक वर्षों तक उत्तर भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष के रूप में अपनी महनीय सेवा दी है और दो बार अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। कांट का दर्शन, अस्तित्ववाद के मुख्य विचारक, समकालीन पश्चत्य दर्शन एवं समकालीन भारतीय दर्शन आपकी प्रमुख कृतियां हैं। आपको अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।























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