BNMU समाज-परिवर्तन का दर्शन विषयक संवाद आयोजित। परिवर्तन शाश्वत सत्य है : डॉ. पूनम सिंह।

*परिवर्तन शाश्वत सत्य है : डॉ. पूनम सिंह*

परिवर्तन शाश्वत सत्य है और यह प्रकृति का नियम है। संपूर्ण ब्रह्मांड एवं पूरी प्रकृति परिवर्तनशील है। चारों ओर हरवक्त परिवर्तन हो रहा है और मानव भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं है।

यह बात दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्षा एवं दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा प्रोफेसर डॉ. पूनम सिंह ने कही।

वे गुरुवार को ‘समाज-परिवर्तन का दर्शन’ विषयक ऑनलाइन-ऑफलाइन संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रही थीं।यह आयोजन शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली के स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है और वही समाज का मूल है। पूरा समाज मनुष्य पर ही निर्भर करता है। जैसा मनुष्य होगा, वैसा ही समाज भी होगा।

उन्होंने कहा कि मनुष्य से ही समाज बनता है। समाज-परिवर्तन के लिए मानव-परिवर्तन आवश्यक है। मानव ही परिवर्तन का प्रथम कारक है। पहले मानव‌ में में परिवर्तन होगा, तभी समाज-परिवर्तन होगा।

उन्होंने कहा कि सामाजिक परिवर्तन दो प्रकार से होता है। यह क्रमिक रूप में हो, तो उसे विकास कहते हैं और एकाएक हो, तो वह क्रांति कहलाती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि समाज बहुआयामी है और इसके कई पक्ष हैं। इसमें आर्थिक, राजनीति, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि पक्ष प्रमुख हैं।

उन्होंने कहा कि सामाजिक परिवर्तन के लिए समाज के सभी पक्षों में परिवर्तन जरूरी है। सिर्फ आर्थिक पक्ष में परिवर्तन से समाज-परिवर्तन नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर परिवर्तन से संबंधित दो सिद्धांत हैं- पूंजीवाद सिद्धांत एवं मार्क्सवाद का सिद्धांत। यह दोनों सिद्धांत एकांगी है। इन दोनों सिद्धांतों में आर्थिक पक्ष पर जोर दिया गया है, लेकिन अन्य पक्ष की उपेक्षा हुई है।

मुख्य अतिथि मगध विश्वविद्यालय, बोधगया की पूर्व कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी ने कहा कि समाज एवं राष्ट्र के निर्माण में व्यक्ति आधारभूत तत्व होता है। श्रेष्ठ व्यक्ति से श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ परिवार से श्रेष्ठ समाज और श्रेष्ठ समाज से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्मित होता है।

उन्होंने कहा कि समाज-परिवर्तन में दर्शन की महती भूमिका है। दार्शनिकों की यह जिम्मेदारी है कि वे परिवर्तन को सही दिशा दें।

विशिष्ट अतिथि डॉ. आलोक टंडन ने कहा कि दार्शनिक जगत में समाज-दर्शन को दोयम दर्जे का माना गया है और इसकी उपेक्षा हुई है। हमारी परंपरा में व्यक्ति परिवर्तन के बहुत उदाहरण मिलते हैं, लेकिन समाज-परिवर्तन का ठोस अभिक्रिम नजर नहीं आता है। हमारे यहां समाज परिवर्तन के सामूहिक प्रयास कम हुए हैं।

उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि केवल व्यक्ति के बदलने से समाज नहीं बदलता है। समाज को बदलने के लिए उसके मूल ढांचे में बदलाव जरूरी है।

प्रधानाचार्य डाॅ. कैलाश प्रसाद यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन आयोजन सचिव डाॅ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने किया। श्याम प्रिया, अमरेश कुमार अमर एवं डॉ. प्रियंका सिंह ने प्रश्न पुछे।

इस अवसर पर डॉ. विनोद नंद ठाकुर, डॉ. प्रभाष कुमार, डॉ. अनिल ठाकुर, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, चंदन कर्ण, डॉ. शंभु पासवान, प्रेम कुमार, डॉ. अमरेन्द्र कुमार, डॉ. शिवेंद्र प्रसाद सिंह, अमित कुमार मिथलेश कुमार मंडल विमल कुमार राजेश कुमार राहुल कुमार उदय कुमार प्रवेज कुमार अमित कुमार, दिलीप कुमार, दिलीप कुमार दिल, विनय कुमार विश्वास, डॉ. सविता कुमारी, डॉ. उज्जवल कुमार, कुमारी अर्चना, सारंग तनय, डॉ. अनिल ठाकुर, रूपा सिंह, मिथिलेश कुमार, मुकेश कुमार, पल्लवी राय, पूनम यादव, राजकुमार, प्रिंस यादव, रमेश, रंजन यादव, धनेश्वर खातून, शाहिदा खानम, शोभा कुमारी, सोनू कुमार, गौरव कुमार सिंह, गौतम कुमार, अभिषेक पांडेय, विद्यानंद यादव, विनय कुमार, सोनू कुमार, सपना जायसवाल, रोशन रंजन, श्वेता कुमारी, आदि उपस्थित थे।

डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्किल के तहत कुल बारह संवाद होने हैं। इसमें अप्रैल 2022) में सांस्कृतिक स्वराज (डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा, नई दिल्ली), मई में गीता का दर्शन (प्रो. जटाशंकर, यह प्रयागराज), जून में मानवता के लिए (प्रो. एन. पी. तिवारी), जुलाई में भारतीय दर्शन में जीवन-प्रबंधन (प्रो. इंदु पांडेय खंडुरी) और अगस्त में प्रौद्योगिकी और समाज (डॉ. आलोक टंडन) विषयक संवाद सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है। छठ संवाद गुरुवार को आयोजित हुआ।