BNMU प्रजातंत्र एवं मानवाधिकार एक दूसरे के पूरक : डॉ. राजकुमार सिंह

प्रजातंत्र एवं मानवाधिकार एक दूसरे के पूरक : डॉ. राजकुमार सिंह
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प्रजातंत्र एवं मानवाधिकार एक दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। प्रजातांत्रिक शासन में सभी व्यक्ति को एक समान माना जाता है और सबों के मानवाधिकारों का संरक्षण होता है। किसी भी प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की सफलता भी उसके द्वारा मानवाधिकारों के अधिकतम संरक्षण में ही निहित है।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के अध्यक्ष, छात्र कल्याण सह अध्यक्ष, सामाजिक विज्ञान संकाय प्रो. (डॉ.) राजकुमार सिंह ने कही।

वे मंगलवार को प्रजातंत्र एवं मानवाधिकार विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की राष्ट्रीय सेवा योजना, इकाई प्रथम के तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि सामान्यत: प्रजातंत्र बहुमत का शासन है, जिसमें अधिकतम लोगों के हित का आदर्श प्रस्तुत किया गया है। लेकिन मानवाधिकार में बहुमत एवं अल्पमत सभी शामिल हैं। यह सभी मनुष्यों के सम्मानपूर्ण जीवन का हिमायती है। मानव रूप में जन्म लेने के साथ ही हम मानवाधिकार के अधिकारी बन जाते हैं।

उन्होंने कहा कि मानवाधिकार सिर्फ वोट देने का अधिकार तक सीमित नहीं है। इसका संबंध मानवीय अस्तित्व रक्षा के बुनियादी लक्ष्यों को अर्जित करने के साथ है। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक सभी अधिकार शामिल हैं। मानवाधिकारों के बिना मानव का समग्र विकास संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के लिए संघर्ष प्रजातंत्र को मजबूत एवं सशक्त बनाता है। अतः लोकतांत्रिक सरकारों का यह दायित्व है कि वह लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करें।

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वीणा कुमारी ने राष्ट्रभाषा हिन्दी का महत्व विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्शों पर अवलंबित है। यह भारत की एकता एवं अखंडता और विश्व मानवता की भाषा है। यह भाषा सभी भाषाओं को मिलाकर चलती है और सभी को आपस में जोड़ती है।

उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा जन-जन की भाषा है। यह अत्यंत सरल भाषा है, जो सभी के द्वारा आसानी से सीखी-समझी जा सकती है। हिंदी भाषा हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान और गौरव प्रदान करती है।

उन्होंने बताया कि 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को अंग्रेजी के साथ भारत की राजभाषा स्वीकारा किया गया है। लेकिन अभी भी हिंदी को उसका वाजिब हक एवं सम्मान नहीं मिल पाया है। ऐसे में भारत सरकार से अपेक्षा है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने हेतु ठोस कदम उठाए जाएं।

अतिथियों का स्वागत एनएसएस समन्वयक डॉ. अभय कुमार ने किया। संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने राष्ट्रनायक स्वामी विवेकानंद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और महाविद्यालय के संस्थापक महामना कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर पुष्पांजलि किया। अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया।

इस अवसर पर शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, मनीषा भारती, पूजा मेहता, धीरज कुमार, सुनैना कुमारी, खुशबू कुमारी, दिव्या भारती, मारुति, श्याम किशोर, सोनी भारती, सरिता कुमारी, काजल कुमारी, रिंकी कुमारी, एकता कुमारी, जूही कुमारी, मनीषा कुमारी, पल्लवी कुमारी, प्रवेश कुमार, ऐश्वर्या आनंद, अमित कुमार, मुकेश कुमार, मिथिलेश कुमार, कोमल कुमारी, दीपक कुमार, रवि रोशन कुमार, उदय कुमार, राजेश कुमार, सुनीता कुमारी, नूतन कुमारी, पूनम कुमारी, कोमल कुमारी, झूमा कुमारी, जूही कुमारी, प्रेरणा, अंजली कुमारी आदि उपस्थित थे।

*परिचर्चा के विषय निर्धारित*
उन्होंने बताया कि गुरुवार को शिक्षाशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. जावेद अहमद (शिक्षा : अर्थ, उद्देश्य एवं महत्व) तथा मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एम. आई. रहमान (युवाओं की मनोवैज्ञानिक समस्याएं एवं समाधान), शुक्रवार को समाजसेविका प्रीति गोपाल महिला-सशक्तिकरण एवं उद्यमिता तथा क्रीड़ा परिषद् के उप सचिव डॉ. शंकर कुमार मिश्र (एड्स एवं युवाओं की अन्य स्वास्थ्य समस्याएं), शनिवार को केपी कालेज मुरलीगंज के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान (शिक्षा और सामाजिक न्याय), रविवार को निदेशक आईक्यूएसी डॉ. नरेश कुमार (पर्यावरण-संरक्षण) विषय पर व्याख्यान देंगे। सातवें दिन सोमवार को सर्वेक्षण रिपोर्ट की प्रस्तुति होगी और समापन समारोह आयोजित किया जाएगा, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर की गरिमामयी उपस्थिति रहेगी।