Sahitya Akadami राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न। माँ एवं मातृभाषा का कोई दूसरा विकल्प नहीं : डॉ. अविचल

*राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न*
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*माँ एवं मातृभाषा का कोई दूसरा विकल्प नहीं : डॉ. अविचल*

स्वतंत्रता संग्राम : मैथिली साहित्य-संस्कृति ओ दर्शन विषय पर चर्चा
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हमारे जीवन में माँ एवं मातृभाषा का स्थान सर्वोपरि है। इन दोनों का कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता है। जिस प्रकार कोई भी स्त्री माँ का स्थान नहीं ले सकती है, उसी तरह कोई भी दूसरी भाषा मातृभाषा का स्थान नहीं ले सकती है।

यह बात साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक एवं एल. बी. एस. एम. ‌महाविद्यालय, जमशेदपुर के प्रधानाचार्य डॉ. अशोक कुमार झा ‘अविचल’ ने कही।

वे शनिवार को स्वतंत्रता संग्राम : मैथिली साहित्य-संस्कृति ओ दर्शन विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा और साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

*भारतीय साहित्यिक परंपरा में मैथिली का विशिष्ट योगदान*
उन्होंने कहा कि गौरवशाली भारतीय साहित्यिक परंपरा में मैथिली का विशिष्ट योगदान है। नवीन भारतीय भाषाओं में मैथिली सर्वाधिक प्राचीन एवं साहित्यिक रूप से सर्वाधिक विकसित भाषा है। मैथिली में ही सबसे पहले व्याकरण, भाषा-विज्ञान, पद्य एवं गद्य साहित्य विकसित हुआ है। मैथिली के ज्योतिरीश्वर एवं विद्यापति से प्रेरित होकर ही बांग्ला, उड़िया आदि का संपूर्ण साहित्य पुष्पित-पल्लवित हुआ है।

उन्होंने कहा कि मैथिली के ‘देसिल वइना सब जन मिट्ठा’ का बीज ही सूर, तुलसी, चंडीदास एवं वैष्णव साहित्य सृजन का आधार बना।

*स्वतंत्रता संग्राम में है मिथिला की महती भूमिका*
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में मिथिला और मैथिली की महती भूमिका है। हमारी मैथिली भाषा में स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित साहित्य का अभाव नहीं है। हमें उसे खोजकर आगे लाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि मिथिला की लोक परंपरा, उपन्यास एवं काव्य परंपरा राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रही है।हमारे संतों एवं साहित्यकारों ने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाई। इस कड़ी में लक्ष्मीनाथ गोसाईं, रंगलाल दास, रामस्वरूप दास आदि द्वारा भजन मंडली के माध्यम से किए गए साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जनजागरण के कार्य काफी महत्वपूर्ण है। साथ ही जनार्दन झा जनसीदन, यदुनाथ झा यदुवर, राघवाचार्य, भवप्रीतानंद ओझा आदि के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है।

*आलेखों की प्रस्तुति*
संगोष्ठी में विषय के विभिन्न आयामों पर आलेखों की प्रस्तुति हुई। पूर्व विभागाध्यक्ष
डॉ. अमोल राय ने मैथिली लोक साहित्य आ स्वतंत्रता संग्राम विषय पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। मैथिली विभागाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र प्रसाद यादव ने स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिलीक उपन्यास और डॉ. अजीत मिश्र ने स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिली काव्य साहित्य पर व्याख्यान दिया।डॉ. रवींद्र कुमार चौधरी ने स्वतंत्रता संग्राम आ मैथिली नाट्य साहित्य विषय पर आलेख प्रस्तुत किया। इस क्रम में उन्होंने शारदानंद झा के नाटक हमरा देशक भागमे का विशेष रूप से उल्लेख किया।

*विशिष्ट आयोजन : उपसचिव*
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के उपसचिव एन. सुरेश बाबू ने कार्यक्रम के आयोजन पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में आयोजित यह संगोष्ठी कई मायनों में विशिष्ट रही। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें शामिल सभी विद्वानों ने लिखित आलेख प्रस्तुत किया। सभी प्रस्तुत आलेखों को अकादमिक की ओर से पंद्रह अगस्त तक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि प्रस्तावित पुस्तक एक ऐतिहासिक दस्तावेज होगी।

कार्यक्रम का संचालन उप कुलसचिव (अकादमिक) डॉ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव ने किया। अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं पाग से स्वागत किया गया। राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

*उपस्थिति*
इस अवसर पर डॉ. ललितेश मिश्र, ले. गुड्डू कुमार, डॉ. जावेद अहमद अंसारी, डॉ. सुमंत राव, डॉ अशोक कुमार, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, रंजन कुमार, डॉ प्रभात रंजन, डाॅ. आशुतोष झा, डॉ जावेद अहमद, राम प्रसाद यादव, डॉ. स्वर्ण मणि, डॉ. रीना कुमारी, निखिल कुमार, सर्वेश कुमार, कपिलदेव यादव, सक्षम कुमार, लोकनाथ मुरारी, शिवम कुमार, राज मयूर चौधरी, नयन रंजन, शिवकुमार, अर्जुन कुमार, विनीत राज, गिरीश नंदन झा, सुमन कुमार, पंकज, डॉ. स्नेहा कुमारी, सुधा कुमारी, डॉ. सदानंद यादव, मनोज कुमार, गोविंद कुमार, डॉ. मिथिलेश कुमार, मो. नदीम अहमद अंसारी, लीना कुमारी आदि उपस्थित थे।