डॉ कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
विषाद मन का, डूबते दिन- सा,
लेखनी असहयोग कर बैठी।
वो मेरी चूनर का सितारा तय था,
उसकी प्रीत परायों से संयोग कर बैठी।
हाथ में मौली -सा जिसका प्यार बाँधा,
वही समय-गति, मेरा उपयोग कर बैठी।
चुप है- झिर्री से आता हुआ उजाला,
सूरज है- विमुख, किरण वियोग कर बैठी।
अँधेरे में छोड़ दिया साथ परछाई-सा
उसकी निष्ठा छल का प्रयोग कर बैठी।
दीपक है मेरा प्यार आँधी से संघर्ष करेगा
समर्पण की चेतना हठयोग कर बैठी।
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