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प्लेजियरिजम टूल फार रीजनल लैंग्वेजेस” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन। डाॅ. रहमान ने की वेबीनार में भागीदारी

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इनफोकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली के तत्वाधान में  “प्लेजियरिजम टूल फार रीजनल लैंग्वेजेस” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। इस वेबीनार में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा  का प्रतिनिधित्व स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डाॅ. एम. आई. रहमान ने किया।
 कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर विकास अरोड़ा ने साहित्यिक चोरी पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने वेबीनार में क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्यिक चोरी रोकने के यंत्रों की आवश्यकता पर जोर दिया। चर्चा-परिचर्चा के दौरान डॉ. रहमान ने बताया के भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय सहित भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में भी यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त साहित्यिक चोरी सॉफ्टवेयर “ऊरकुंड” कार्यरत है। यह स्विजरलैंड की कंपनी है। इसके द्वारा प्राप्त रिजल्ट अत्यधिक विश्वसनीय है। उन्होंने बताया के विदेशी यंत्र होने के कारण इसकी एक कमी यह है कि यह भारत के क्षेत्रीय भाषाओं को समुचित रूप से चेक नहीं कर पाता है। इसके कारण शोध की गुणवत्ता में कहीं ना कहीं कमी रह जाती है। इस संदर्भ में श्री अरोड़ा ने बताया के “सीएफपी”, जिसे इनफोकार्ट इंडिया ने निर्मित किया है, यह सॉफ्टवेयर पूर्णतः भारतीय है। इसके अंतर्गत भारत के सभी क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल किया गया है।इसके द्वारा प्राप्त रिजल्ट अत्यधिक विश्वसनीय भी है। डॉ. रहमान द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया के यह सॉफ्टवेयर मैथिली, पाली एवं अन्य भाषाओं के साहित्य को भी बड़ी आसानी से रीड करता है और सही सही रिपोर्ट देता है। उन्होंने बताया के यूजीसी इस सॉफ्टवेयर को अपनाने की प्रक्रिया कर रहा है।जल्द ही यह भारत के विश्वविद्यालयों में लागू किया जा सकता है। 
श्री अरोड़ा ने यह स्पष्ट किया है कि यदि विश्वविद्यालय अपनी रुचि इस सॉफ्टवेयर में दिखाती है, तो उस विश्वविद्यालय को छह महीने के लिए सीएफपी का ट्रायल वर्जन उपलब्ध कराया जा सकता है। वेबीनार को डॉक्टर रहमान ने संतोषप्रद बताते हुए कहा के गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए इस प्रकार के यंत्रों एवं सॉफ्टवेयर की आवश्यकता है। यदि यूजीसी ऊरकुंड की तरह इस सॉफ्टवेयर को भी उपलब्ध करा देती है, तो भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय शोध के क्षेत्र में और अधिक गुणवत्ता पूर्ण कार्य करने में सक्षम हो जाएगा
डॉ. रहमान ने बताया के वेबीनार में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से साहित्यिक चोरी से संबंधित विशेषज्ञ भाग ले रहे थे। कुल 200 सहभागी इस वेबीनार में जुटे थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।