ABDP योग आज विश्वव्यापी स्तर पर सिद्ध कर रहा है अपनी महत्ता

योग वास्तव में दर्शनशास्त्र विषय के अंतर्गत सर्वाधिक प्रासंगिक स्वास्थ्य, जीवन-चर्या, अध्यात्म एवं जीवन के विविध पहलुओं पक्षों के सामंजस्य को सुलभ करने में सक्षम है। योग जीवन में सुख शांति एवं संपूर्ण स्वास्थ्य की उपलब्धि को भी सुगम बनाता है। षड् दर्शनों में योग आज अपनी महत्ता को विश्वव्यापी स्तर पर सिद्ध कर रहा है।

यह बात नव नालंदा महाविहार, नालंदा (बिहार) में दर्शन एवं योग विभाग में प्रोफेसर डाॅ. सुशीम दुबे ने कही। वे पाँच दिवसीय अखिल भारतीय दर्शन, परिषद् के 65वें अधिवेशन के आखिरी दिन योग एवं मानव चेतना विभाग में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। अधिवेशन का आयोजन महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के तत्वावधान में ऑनलाइन पद्धति से किया गया।

उन्होंने कहा कि योग के द्वारा भारत ने विश्व को स्वास्थ्य एवं सर्व कल्याण का संदेश दिया है। योग में मानव मात्र के कल्याण का मार्ग संरक्षित एवं सन्निहित है।

उन्होंने कहा कि योग भारत सरकार के आयुष (AYUSH) मंत्रालय में आयुष अर्थात् आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी, योग एवं नेचुरोपैथी एक साथ है। विभिन्न राज्यों में भी आयुष या स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत योग सन्निहित है।

अंत में योग सत्र के संपूर्ति क्षणों में सभी व्यक्तियों के आरोग्य, कल्याण एवं सुख की प्राप्ति के मंत्र के लिए कामना की गई-
“ॐ सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुःखभाग भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।”

मालूम हो कि ‘मानव चेतना एवं योग विभाग’ के अंतर्गत लगभग 44 शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण हुआ। सभी प्रस्तुकर्ताओं को बधाई।

कुछ शोध-पत्रों का विवरण निम्नवत है-

‘योग एवं मानव चेतना’ सत्र में प्रस्तुत प्रमुख शोध-पत्र –

1. अखिलेश यादव (वर्धा)- श्रीमद्भगवद्गीता में योग की अवधारणा 2. राजन (वाराणसी)- योग मीमांसा एवं मानव जीवन : श्रीमद्भगवद्गीता एव पतजखल योगसूत्र क संदर्भ
3. डॉ. सतीश चन्द्र पटेल (महाराजगंज)- गीता में कर्मयोग की अवधारणा
4. रक्षा सिंह बघेल (साँची)- पतंजल योग सत्र में मानिसक दोष एवं उनके निवारण के उपाय
5. नम्रता चौहान (साँची)- प्रणवोपासना एवं मानव चेतना का संबंध
6. चंचल सूर्यवंशी (बंगलरू)- मानव चेतना के दार्शानिक तथा मनोवैज्ञानिक स्वरूप का अध्ययन
7. अरविन्द्द कुमार यादव (साँची)- मानवीय जीवन के दुःखों को कम करने के लिए प्रतिपक्ष भावना का महत्व : योगसूत्र एवं धम्मपद के विशेष संदर्भ में
8. रंजीत सिंह (साँची)- योग-उपिनिषदों में चक्र एवं कुण्डलिनी…
9. डॉ. मधु खन्ना (जोधपुर)- श्री अरविन्द के दर्शन में पूर्ण योग
10. डॉ. नागेन्द्र तिवारी (सुल्तानगंज)- अष्टांग योग की अवधारणा
11. श्री शशिकान्त मणि एवं डॉ. उपेन्द्र बाब खत्री (साँची)- योग के अधिगम से होता है- दुःख के संयोग से वियोग….
12. डॉ. अजंता गहलोत (बीकानेर)- मानव चेतना एव योग दर्शन
13. ममता चौधरी (साँची)- -शाक्ततंत्र की अवधारणा…
14. नीतू विश्वकर्मा (साँची)- मन एवं मानिसक स्वास्थ्य की अवधारणा : योग एवं आयुर्वेद के विशेष संदर्भ में
15. डॉ. नागेन्द्र तिवारी (सुल्तानगंज)- अष्टांग योग की उपयोगिता एवं महत्व