Shiv उमाकान्त

उमाकान्त

‘शिव’ के पर्यायवाची शब्द के रूप में ‘उमाकान्त’ कम लोकप्रिय नहीं है। ‘उमा’ और ‘कान्त’ -इन दो शब्दों से मिलकर बने यौगिक रूप उमाकान्त का अर्थ होता है- उमा( पार्वती) का कान्त (पति)। उमाया: कान्त: उमाकान्त: । इसतरह, विग्रह करने पर यह षष्ठी तत्पुरुष का उदाहरण बनता है। दूसरी ओर उमा का कान्त है जो, अर्थात् वह (शिव)- इस रूप में किया गया विग्रह इसे व्यधिकरण बहुव्रीहि समास का उदाहरण बनाता है। व्यधिकरण बहुव्रीहि वहाँ होता है, जहाँ पदों का अधिकरण भिन्न-भिन्न होता है। उमाया: कान्त: यो सो उमाकान्त: । यहाँ ‘उमा’ का प्रयोग षष्ठी विभक्ति के साथ हुआ है, जबकि ‘कान्त:’ का प्रथमा के साथ। इसतरह, षष्ठी और प्रथमा दो भिन्न अधिकरण हुए। फलस्वरूप, ‘उमाकान्त’ व्यधिकरण बहुव्रीहि का उदाहरण कहलाएगा। ‘उमाकान्त’ के पूर्वार्ध ‘उमा’ पर पहले ही विचार किया जा चुका है।सम्प्रति इसके उत्तरार्ध ‘कान्त’ पर विमर्श करना अभिप्रेत है।
इच्छार्थक/कामनार्थक धातु कन् -> कम् में भूतकालिक प्रत्यय ‘क्त’ के योग से कान्त: रूप बनता है- कमु कान्तौ (1/302) आत्मनेपदी -कामयते (संस्कृत-धातु-काेष:/ सं. युधिष्ठिर मीमांसक:)। इसका अर्थ होता है – प्रेमी या पति अथवा प्रेम करने वाला पति। दूसरी ओर ‘कान्ता’ का अर्थ होगा- प्रेम करने वाली/प्रेयसी पत्नी/बिलवेड वाइफ। कालिदास-कृत ‘मेघदूतम्’ के प्रथम छन्द में प्रयुक्त ‘कान्ता’ पद इसी अर्थ का वाचक है – “कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात् प्रमत्त:”।
इसप्रकार, ‘उमाकान्त’ का अर्थ होगा – उमा को चाहने वाला पति अर्थात् भरपूर प्रेम करने वाला पति, इसे अंग्रेजी में लविंग हसबैंड कहते हैं । कालिदास ने उनके इस रूप को कुमारसम्भवम् के अष्टम सर्ग में मनोयोगपूर्वक दिखाया है –
“स प्रियामुख रसं दिवानिशं हर्षवृद्धिजननं सिसेविषु: ।
दर्शन प्रणयितामदृश्यतामाजगाम विजयानिवेदित: ।।90।।”
अर्थात् प्रिया (उमा) के आनंदवर्धक अधरों का रस अहर्निश पीने के इच्छुक शंकर जी की ऐसी दशा हो गयी कि ‘विजया’ द्वारा यह संदेश पाकर भी कि आपके दर्शनार्थ प्रियजन उपस्थित हुए हैं, वे बैठे रह जाते थे, अर्थात् प्रिय पत्नी उमा को छोड़कर नहीं जाते थे ।
हम जानते हैं कि शिव की पूर्व पत्नी ‘सती’ ही अगले जन्म में उमा/ पार्वती बनकर अवतरित हुई थी। मेना (मैनाक पर्वत) और हिमवान् को क्रमशः माता-पिता बनने का सुयोग प्राप्त हुआ था।

प्रो. बहादुर मिश्र, हिंदी विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार
30 जुलाई 2021