BNMU ‘पुनरवलोकन’ बनाम ‘पुनरावलोकन’

‘पुनरवलोकन’ बनाम ‘पुनरावलोकन’

विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग की एक प्राध्यापिका ने कुछ समय पूर्व जानना चाहा था कि ‘पुनरवलोकन’और ‘पुनरावलोकन’ में कौन-सा रूप सही है। मैंने पोस्ट पढ़ने की सलाह देकर तत्काल ‘पुनरवलोकन’ को प्रशस्त बताया। पहले स्वास्थ्य संबंधी कठिनाई फिर अन्य व्यस्तताओं के परिणामस्वरूप इसे अब लिख पा रहा हूँ। प्रबुद्ध पाठकों की अधीरता ने इसमें ‘उत्प्रेरक’ का काम किया।
गत वर्ष कराल कोरोना-काल में राँची विश्वविद्यालय का शोध-प्रबंध पढ़ रहा था। शोधार्थी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष तथा ख्यात आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) चौथीराम यादव के आलोचना-साहित्य पर काम किया था। संदर्भ-सूची के शीर्ष पर ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी : समग्र पुनरावलोकन’ ( लोकभारती प्रकाशन; पुनर्संस्करण- 2012) देखकर चौंक गया। व्हाट्सएप एेप पर डॉ. यादव की पुस्तक का आवरण-पृष्ठ मंगवाया गया, ताकि सुनिश्चित किया जा सके। संशय दूर हो गया। आवरण-पृष्ठ पर ‘पुनरावलोकन’ ही मुद्रित था। जिज्ञासा करने पर शोधार्थी ने बताया कि शीर्षकीकरण डॉ. नामवर सिंह के सुझाव पर हुआ था। विश्वास न हुआ।
एक अन्य वयोवृद्ध विद्वान् लेखक हैं- श्री भगवान सिंह। एकानवेवर्षीय (जन्म : 1 जुलाई 1931) श्री सिंह दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. तो हैं ही, कवि, कथाकार, आलोचक, सर्वोपरित: वैदिक साहित्य के खोजी विद्वान् भी हैं। एक दिन सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन से 2011 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘भारतीय परंपरा की खोज’ के पन्ने पलट रहा था। तभी विषय-सूची से लेकर 12वें तथा 19वें क्रम पर मुद्रित लेखों- ‘युगों का पुनरावलोकन’ ( पृष्ठ 157) व ‘पुनरावलोकन’ (पृष्ठ 267) में अनेकत्र ‘पुनरावलोकन’ का आपत्तिजनक प्रयोग देखकर उदास हो गया। प्रस्तुत शब्द-विमर्श इसी का प्रतिफल है।

प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया जाए कि ‘पुनरवलोकन’ का प्रयोग मान्य है, जबकि ‘पुनरावलोकन’ का अमान्य। इसके औचित्य-निरूपण के निमित्त हमें दो-तीन चरणों की शास्त्रीय यात्रा करनी होगी।

सबसे पहले हम ‘पुनरवलोकन’ का संधि-विच्छेद करते हैं- पुनर्+ अवलोकन = पुनरवलोकन । पन् + अर्+ उत्वम्= पुनर संस्कृत का प्रसिद्ध अव्यय है। इसके लिए हिंदी में ‘पुनः’ का प्रयोग होता है। इसे बोलचाल की हिंदी में ‘फिर’ और अंग्रेजी में ‘again’ कहते हैं। दूसरी ओर ‘अव’ (अव्यय/पूर्व प्रत्यय/ उपसर्ग) + लोकृ (लोकृ दर्शने -1/162; अष्टाध्यायी ; आत्मनेपदी : लोकते-लोकेते- लोकन्ते) -> लोक् +ल्युट् (पर प्रत्यय) = अवलोकन (म्) का अर्थ होता है – पुनः देखना, फिर से देखना या दृष्टि डालना। अंग्रेजी में इसे To see again, To look again, Review इत्यादि कहते हैं ।

ध्यातव्य है कि ‘पुनर्’ का ‘र्’, ‘अवलोकन’ के ‘अ’ (एकमात्रिक) के साथ मिलकर ‘पुनरवलोकन’ का निर्माण करता है। कुछ मतिभ्रांत लोग ‘पुनरावलोकन’ का प्रयोग कर बैठते हैं। वे बचपन में पढ़ा-पढ़ाया गया ‘बारहखड़ी’ वाला पाठ भूल जाते हैं।
इस पाठ ने हमें अच्छी तरह अक्षर व शब्द जोड़ना सिखाया था। उदाहरणार्थ –
क्+अ=क, ल्+अ=ल, म्+अ=म= कलम
द्+आ=दा, द्+आ=दा = दादा यदि ‘अवलोकन’ के स्थान पर ‘ आवलोकन’ आया होता तो पुनरावलोकन शब्द अवश्य बनता। फिर उपसर्ग ‘अव’ होता है न कि ‘आव’; जिसका अर्थ दूर, परे, नीचे होता है; जैसे- अवधान, अवगाहन, अवग्रह, अवमानना इत्यादि। इसी आधार पर ‘पुनरागमन’, ‘पुनरुक्ति’ आदि शब्दों की संरचना होती है; यथा – पुनर् + आगमन = पुनरागमन, पुनर्+ उक्ति = पुनरुक्ति।

कठिनाई यह है कि अधिकतर लोग ‘पुन:’ से तो परिचित हैं, किन्तु ‘पुनर्’ से नहीं। यदि ‘पुनः’ से ही ‘पुनरवलोकन’ की व्युत्पत्ति साधी जाए तो ‘पुन:’ को ‘पुनर्’ में बदलना ही होगा। स्वर के आने पर ‘पुन:’ का विसर्ग ‘र्’ और व्यंजन के आने पर ‘रेफ’ में बदल जाता है; जैसे- पुनर्संस्करण, पुनर्भू आदि। लेकिन, यह प्रक्रिया द्रविड़-प्राणायाम की तरह है। इस प्रक्रिया को ‘वकबंधनन्याय’ भी कहा जाता है।
इसप्रकार, सिद्ध हुआ कि ‘पुनरवलोकन’ का ही प्रयोग युक्तिसंगत/ विधिसंगत है, न कि ‘पुनरावलोकन’ का। अतएव, सर्वत्र और सदैव ‘पुनरवलोकन’ का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

# प्रो. (डॉ.) बहादुर मिश्र
27 जुलाई, 2021