NNM प्रोफेसर डाॅ. वैद्यनाथ लाभ को मिला केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार

बहुत-बहुत बधाई
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भारत सरकार ने नव नालन्दा महाविहार, नालंदा के माननीय कुलपति प्रोफेसर डाॅ. वैद्यनाथ लाभ को केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान (सम विश्वविद्यालय), संस्कृति मंत्रालय, लेह-लद्दाख के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार दिया है।

प्रोफेसर लाभ सर को बहुत-बहुत बधाई और भारत सरकार को हार्दिक साधुवाद।

सचमुच प्रोफेसर लाभ जैसे व्यक्तित्व को कुछ उपलब्धियाँ मिलती हैं, तो हमें दिल से प्रसन्नता होती है और लगता है कि हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी कोई नया आयाम जुड़ गया है।

प्रोफेसर लाभ की शैक्षणिक उपलब्धियों की विशालता एवं उनके व्यक्तित्व की सम्मोहकता को एक फेसबुक पोस्ट में समेटना आसान नहीं है। इसके बावजूद मैं हार्दिक प्रसन्नता के साथ आप सबों के लिए अपना एक पुराना पोस्ट शेयर कर रहा हूँ…। आप इस पोस्ट को पढ़कर हमें अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देंगे, तो हमें प्रसन्नता होगी।

नोट : पुराने पोस्ट में मैं एक बात जोड़ना जरूरी समझता हूँ-

प्रोफेसर लाभ हमारे आमंत्रण पर लंबी दूरी तय करके 3-5 मार्च, 2021 तक सपत्नीक दर्शन परिषद्, बिहार के 42वें राष्ट्रीय अधिवेशन में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा पधारे। उनके आगमन से हमारे कार्यक्रम की गरिमा बढ़ी और हमारा उत्साहवर्धन भी हुआ।

मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकता हूँ कि प्रोफेसर लाभ उन चंद अतिथियों में एक रहे, जिन्होंने मेरी व्यवस्थागत कमियों को ‘इग्नोर’ किया (प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो!)।

मुझे यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं कि मुझे इस अधिवेशन के दौरान कई आंतरिक एवं बाह्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा और मुझे काफी कड़वे अनुभव हुए।

दरअसल, अधिवेशन के पूर्व और विशेषकर अधिवेशन के दौरान कुछ परिस्थिथियाँ बनीं कि अब तक ‘परिषद्’ में मुझे सबसे अधिक स्नेह एवं संरक्षण देने वाले लोग भी मुझसे ‘नाराज’ हो गए। इससे मैं गहरे अकेलेपन, अवसाद एवं अनास्था में घिर गया था। उस कठिन परिस्थिति में मेरे विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आर. के. पी. रमण, माननीया प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह एवं सम्मानित प्रधानाचार्य प्रोफेसर डाॅ. के. पी. यादव के साथ-साथ मुख्य अतिथि प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ के ईश्वरीय आशीर्वाद ने मुझे संबल दिया। मैं इसके लिए हमेशा प्रोफेसर लाभ का ॠणि रहूँगा।

*लाभ साहेब से मुलाकात*
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लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में आयोजित अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के 63 वें अधिवेशन के अंतिम दिन (23 अक्टूबर 2018 को) प्रोफेसर डाॅ. वैद्यनाथ लाभ साहेब, कुलपति, नव नालंदा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, नालंदा (बिहार) से मुलाकात का सुअवसर प्राप्त हुआ।

*मेरा संकोच*
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दरअसल, लाभ साहेब 22 अक्टूबर को भी सम्मेलन में आए थे। उन्होंने एक संगोष्ठी की अध्यक्षता भी की थी। मैं भी काफी देर तक उस कार्यक्रम में था। लेकिन मैंने सर से कार्यक्रम के बीच में मिलना उचित नहीं समझा।

फिर 23 अक्टूबर को समापन सत्र में लाब साहेब मुख्य अतिथि थे। यहाँ भी मैंने मंच पर उनसे मुलाकात नहीं की। फिर सभी लोग हाई टी पर आ गए। वहाँ मैं सर से मिलने का मौका ढूंढ रहा था। सोच रहा था कि उन्हें अपना परिचय देकर उनसे मिलूँ।

*लाभ साहेब की नजर*
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इसी बीच लाभ साहेब की नजर मेरे ऊपर पड़ गई। मुझे देखते ही सर ने कहा,”सुधांशु कैसे हो ? आपको दो दिनों से खोज रहा था।” मैंने उन्हें प्रणाम किया। कहा, “ठीक हूँ सर। कल भी आपको देखा। लेकिन मुझे मिलने का उपयुक्त अवसर नहीं मिला।” फिर काफी बातचीत हुई। उन्होंने मेरे कैरियर और परिवार आदि की जानकारी ली। कई उपयोग सुझाव दिए। मुझे जरा-सा भी एहसास नहीं हुआ कि मैं एक कुलपति से बातें कर रहा हूँ।

*सुखद आश्चर्य*
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आज लोग छोटा-छोटा पद पाने के बाद अपने करीबी मित्रों को भूला देते हैं। कुछ दिनों पूर्व मेरे अभिन्न मित्र अश्वनी (कोलकाता) ने मुझे बताया था कि उसके साथ रहकर पढ़ाई करने वाले मित्रों के हावभाव भी असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के बाद चेंज हो गए। मेरे एक अन्य मित्र ने बताया कि जो मित्र असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए हैं, वे उनसे बात नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि उनकी तो सोसाइटी ही चेंज हो गई।

लेकिन लाभ साहेब जैसे लोग भी हैं, जो महज चंद मिनटों के परिचय को भी 9 वर्षों बाद भी नहीं भूलते हैं। ऐसे लोगों का मिलना सुखद आश्चर्य है और इस मिलन की अनुभूतियाँ जीवन की अमूल्य निधि।

 

लाभ साहेब से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। करीब 9 वर्ष बाद। इसके बावजूद सर ने मुझे पहचान लिया और उन्होंने काफी स्नेह एवं आशीर्वाद दिया। … और हाँ जब मैं पहली बार सर से मिला था, तो वे महज एक प्रोफेसर थे। लेकिन आज वे कुलपति बन चुके हैं, फिर भी उनकी सहजता, सरलता एवं मृदुलता कायम है।

*पहली मुलाकात*
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मालूम हो कि मैं लाभ साहेब से पहली बार वर्ष 2009 में जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू में मिला था। वहाँ मैं अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के सम्मेलन में गुरूवर प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह सर के साथ गया था। लाभ साहेब बहुत ही आदरपूर्वक प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह सर के साथ मुझे भी अपने आवास पर ले गए थे। खूब आदर-सत्कार किया था।

*उपलब्धियाँ*
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यहाँ यह उल्लेखनीय है कि लाभ साहेब लंबे समय तक ‘इंडियन सोसाइटी फाॅर बुद्धिस्ट स्टडीज’ (आईएसबीएस) के संस्थापक महासचिव रहे हैं और उन्होंने स्वयं यह पद छोड़कर एक मिशाल कायम की है। इन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन किया है, इनमें आईएसबीएस के कई प्रोसिडिंग्स भी शामिल हैं