BNMU हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान के बहाने….

हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान के बहाने….
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आज (25 जुलाई, 2019 को) कला भवन, मधेपुरा में आयोजित ‘हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान समारोह’ में भाग लेने का अवसर मिला। इस अवसर पर संचालक साथी ने मुझे भी चंद शब्दों में अपनी बात रखने का अवसर दिया, लेकिन समयाभाव के कारण मैंने कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा।

वैसे मुख्य बात यह है कि मैं बोलने से ज्यादा लिखने में अपने आपको ‘कम्फर्टेब्ल’ महसूस करता हूँ। यह बात दीगर है कि मुझे एल्यूकेशन (स्वतःस्फूर्त भाषण) में पूर्वी क्षेत्र अंतर विश्वविद्यालय युवा महोत्सव-2005 में द्वितीय और राष्ट्रीय युवा महोत्सव-2005 में चतुर्थ स्थान प्राप्त हुआ, लेकिन मुझे बोलने में आज भी संकोच होता है। मैं बड़े-बड़े मंचों की बजाय दर्शक दीर्घा और उससे भी अधिक अपने अध्ययन-लेखन कक्ष में अपने सहज पाता हूँ।

खैर, हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान समारोह के बहाने मैं आप सबों से कुछ बातें ‘शेयर’ करना चाहता हूँ। मेरा बचपन से ही पत्र-पत्रिकाओं से लगाव रहा है। ‘हिन्दुस्तान’ कब से पढ़ना शुरू किया याद नहीं। शायद जब से पढ़ना-लिखना शुरू किया, तभी से। सच कहें, तो ‘हिंदुस्तान’ को पढ़कर ही कुछ-कुछ लिखना सीखा।

दरअसल, मेरे मामा श्री अग्निदेव सिंह जी जब भी भागलपुर से नानी घर आते थे, तो कुछ पत्रिकाएँ और हिन्दुस्तान अखबार के सभी अंक साथ लेते आते थे। मैं एक-एक कर उन्हें पढ़ता था और उपयोगी सामग्रियों को काटकर संग्रहित करता था। आज भी मेरे पास ‘हिन्दुस्तान’ के सैकड़ों संपादकीय लेख और फीचर संग्रहित हैं।

मेरे लिखने की शुरुआत भी हिन्दुस्तान से ही हुई। जब मैं इंटमीडिएट का छात्र था, तभी मैं ‘हिन्दुस्तान’ के ‘लोकवाणी’ स्तंभ में पत्र लिखता था। पत्र छपने पर मुझे बहुत खुशी मिलती थी।

मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि मुझे अपने जीवन का पहला मानदेय भी ‘हिन्दुस्तान’ से ही प्राप्त हुआ था। इसमें छपे मेरे एक छोटे से फीचर लेख के लिए मुझे वर्ष 2002 में एक सौ पचास रुपए का चेक मिला था, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है। चूँकि, उस समय मेरा किसी भी बैंक में कोई भी एकाउंट नहीं था, जिसके कारण चेक जमा कर पैसा नहीं निकाल सका।

फिर, बाद में मैंने अपना पहला एकाउंट अपने टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर स्थित इलाहाबाद बैंक में खुलबाया, जिसके गाररेंटर काॅलेज में जंतु विज्ञान विभाग के शिक्षक डाॅ. फारूक अली सर हैं, जो संप्रति बीएनएमयू के प्रति कुलपति हैं और आज हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान समारोह में भी मंच पर मौजूद रहे।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दुस्तान समूह की मासिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ से भी मेरा गहरा जुड़ाव रहा है। मैंने वर्ष 2003 में ‘कादम्बिनी कल्ब’, लालकोठी, भागलपुर की स्थापना की थी, जिसका उद्घाटन टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर के तत्कालीन प्रधानाचार्य डाॅ. रामप्रकाश चंद्र वर्मा एवं काॅलेज के शिक्षक डाॅ. फारूक अली ने किया था।

मेरा कादम्बिनी के संपादक श्री विष्णु नागर जी से भी आत्मीय पत्राचार था और वर्ष 2006 में मुझे दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल चमड़िया एवं स्वतंत्र मिश्र के साथ उनसे मिलने का भी अवसर मिला था।

सबसे खास बात यह कि कादम्बिनी, मार्च 2004 में मेरी एक छोटी सी कविता ‘जीवन’ छपी थी,
“जीवन है समय, काल, मृत्यु
जीवन है जीना, जानना, होना
जीवन है सुंदर चित्र, मधुर संगीत, उत्सवी नृत्य
जीवन है प्रेम, आनंद, परमात्मा
जीवन है जो है अभी बस यहीं
जीओ हरएक क्षण को
वर्तमान में, एक सौ प्रतिशत
जीवंतता से, परिपूर्णता से, समग्रता से
सहजता से, जीवन का स्वीकार करो।”

उक्त कविता को पढ़कर मुझे गोवा सेंट्रल जेल, गोवा से कैदी भाई संजय यादव ने पत्र लिखा था। (संजय भाई के बारे में कभी विस्तार से लिखूँगा)

अंत में, यह बताने की जरूरत नहीं है कि भागलपुर हिन्दुस्तान से हमारा काफी गहरा रिश्ता है। मेरे कई अग्रज एवं मित्र हिन्दुस्तान से जुड़े रहे हैं। शशि शंकर भैया एवं सुधीर तिवारी भैया अक्सर आॅफिस आते-जाते मुझसे मिलने मेरे पुराने आवास (केशव सिंह लाॅज, लालकोठी) आते थे, जो हिन्दुस्तान प्रेस के बिल्कुल नजदीक है। जब मैं अपने नए आवास (शैल निकेतन, लालकोठी) में आया, तो यहाँ मेरे बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. मतिकांत सिंह भी मेरे साथ रहते थे, जो तब हिन्दुस्तान में ही कार्यरत थे।

शेष फिर कभी।

(अग्रज द्वय डॉ. सरोज कुमार, प्रभारी, हिन्दुस्तान, मधेपुरा एवं श्री संजय कुमार परमार, विश्वविद्यालय संवाददाता) सहित आप सबों का बहुत-बहुत आभार।)

-सुधांशु शेखर, 25 जुलाई, 2019, अपराह्न 10.30