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हरिवंश : पत्रकारिता का लोकधर्म

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हिन्दी पत्रकारिता में एक प्रतिमान स्थापित करने वाले पत्रकार, शोधप्रज्ञ लेखक और वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी के अवदान पर अवधान के साथ एक कृति आयी है, ‘हरिवंश : पत्रकारिता का लोकधर्म’। पुस्तक की परिकल्पना प्रलेक प्रकाशन (मुंबई) के जितेन्द्र पात्रो की है और इसके संपादक हैं, वरिष्ठ पत्रकार कृपाशंकर चौबे जी, जो महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के जनसंचार विभाग में प्राध्यापक एवं अध्यक्ष हैं। इस पुस्तक के सहयोगी संपादक हैं – रविप्रकाश, डॉ० विनय कुमार सिंह, डॉ० अनुपमा और लोकेश।

यह पुस्तक उस सर्जनात्मक रचनाकार से सम्बद्ध है, जिसके विषय में प्रकाशक पात्रो जी प्रकाशकीय में लिखते हैं, “वह अपने आप में एक संस्थान बन गए! पत्रकारिता में उनका प्रयोग और काम शोध का विषय बन गया, पर स्वभाव से अंतर्मुखी होने की वजह से आत्मप्रचार से बचते रहे।” संपादकीय में कृपाशंकर चौबे जी लिखते हैं,”पत्रकारिता का लोकधर्म कैसे अक्षुण्ण रखा जा सकता है, इसे जिनके लेखन में देखा और समझा जा सकता है, उनमें एक प्रमुख नाम हरिवंश का है।”

पुस्तक की पाठ्य सामग्री चार खंडों में विभाजित है। खंड-1 अवदान/मूल्यांकन खंड है, जिसमें 37 लेखकों के 36 आलेख हैं :- 1.संपादक से संसदीय राजनीति और आगे (अच्युतानंद मिश्र), 2.हरिवंश : एक संघर्षशील संपादक (बलबीर दत्त), 3.क्षेत्रीय पत्रकारिता को एक नयी दिशा दी (रामबहादुर राय), 4.लोकद्रष्टा संपादक (विजयदत्त श्रीधर), 5.पत्रकारिता के ‘ब्रांड नेम’ हरिवंश (सुरेंद्र किशोर), 6.बौद्धिक आन्दोलनकारी (महुआ माजी), 7. मित्र हरिवंश! पत्रकार हरिवंश जी ! (अनुराग चतुर्वेदी), 8. सुन मेरे बंधु रे, सुन मेरे मितवा…(अतुल कुमार), 9.प्रेरणादायी मित्र (परमानन्द पांडेय), 10.कुछ ऐसे हैं हरिवंश (कमलेश मिश्र)11.श्रेष्ठ संपादक, कुशल प्रबंधक (केके गोयनका), 12.अनेक नामचीन संपादक देखे, पर हरिवंश की तरह नहीं (बेनी माधव चटर्जी), 13.पेशे के प्रति प्रतिबद्ध, मानवीयता से सराबोर (एएन सिंह), 14.घुमक्कड़-यात्री (सुरेश शर्मा), 15.डिजिटल युग में कहाँ चूक रहा है प्रिंट मीडिया (प्रो. [डॉ.]प्रमोद कुमार), 16.दूर दृष्टि, कड़ी मेहनत, पक्का इरादा (राजेंद्र तिवारी), 17.प्रकाश पुंज की सजग तलाश करते हरिवंश (प्रो० कृष्ण कुमार सिंह), 18. स्वाभाविक पत्रकार के मायने (ओम प्रकाश मिश्र), 19.प्रधान संपादक से उपसभापति तक का सफर (आशुतोष चतुर्वेदी), 20. एडिटर, मेंटर, गार्जियन (दयामनी बरला), 21.ऐसे हैं हरिवंश जी (अनुज सिन्हा), 22. पत्रकारिता के एक संस्थान (उमाशंकर), 23.सबसे अलग (रवि प्रकाश), 24.उपेक्षितों के दर्द, अभियान का सच्चा सहभागी (महादेव टोप्पो), 25.ऐसा संपादक कहाँ मिलेगा (उमेश चतुर्वेदी), 26.संपादकीय मर्यादा का रक्षक संपादक (रीता, उमेश आनंद), 27.हरिवंश : संपादकों की अंतिम कड़ी (डॉ० लाल बहादुर ओझा), 28. अपने आप में एक संस्था (शैलेंद्र सिंह), 29.एक दूरदर्शी पत्रकार (मृत्युंजय), 30. पत्रकार ही बनना था, पत्रकार बने, पत्रकार ही हैं (डॉ० आरके नीरद), 31.एक पाठक की दृष्टि में (डॉ० विनय कुमार सिंह), 32. गणेश मंत्री के हरिवंश (डॉ. अनुपमा), 33. हर रूप में एक व्यवहार, समान जीवन शैली (अशोक अकेला), 34.उनने कहा था…(डॉ० देवेन्द्र), 35.बलिया में जेपी, चंद्रशेखर की अगली कड़ी हैं हरिवंश (डॉ. अखिलेश कुमार सिन्हा), 36. मीडिया संस्थान से संसद तक (डॉ० नंदिनी सिन्हा)।

पुस्तक का दूसरा खंड है, ‘हरिवंश के आलेखों से एक चयन’, जिसमें हरिवंश जी के 12 चयनित आलेख हैं :- 1.जेपी का गाँव मेरी जन्मभूमि, 2. मेरा गाँव, 3. पलाश और महुआ की धरती पर वसंत की उदासी, 4. धारा के विरुद्ध, 5. हमारी राह अलग है, 6. चुनौतियों के बीच : सफलता से ज्यादा सार्थकता के सपने, 7.असहिष्णुता,भय और हिंसा, 8. संकल्प से ही सृजन, 9. यातना,पीड़ा से पुरुषार्थ तक, 10. भाषाई पत्रकारिता और हिंदी, 11.आंदोलन नहीं, आत्ममंथन करिए, 12. क्षेत्रीय पत्रकारिता की चुनौतियाँ।

खंड-3 साक्षात्कार खंड है, जिसमें पिछले दो दशकों में अलग-अलग विषय पर, अलग-अलग मौकों पर, यात्राओं में, सामान्य बातचीत में, कभी किसी संदर्भ में हरिवंश जी से लब्धप्रतिष्ठ पत्रकार निराला विदेशिया जी की बातचीत का सारांश है।

‘हरिवंश : पत्रकारिता का लोकधर्म’ के चौथे खंड में कुछ महत्त्वपूर्ण पत्र संगृहीत हैं :-
1.नारायण दत्त के चार पत्र, 2.मॉरीशसवासी प्रवासी मित्र राज हीरामन के दो पत्र, 3.नंद चतुर्वेदी के दो पत्र, 4.नक्सली नेता विजय कुमार आर्य का जेल से पत्र, 5.गणेश मंत्री के कुछ पत्र, 6.समाजवादी चिंतक, लेखक अशोक सेकसरिया के दो पत्र, 7.जगदीश बाबू के दो पत्र, 8.धर्मवीर भारती के तीन पत्र, 9.पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से पत्राचार, 10.कृष्ण बिहारी मिश्र का पत्र, 11.शिक्षक का पत्र, विद्यार्थी के नाम, 12.कृष्णनाथ जी के साथ पत्र संवाद।

पुस्तक के अंत में एक परिशिष्ट है, जिसमें संदर्भ सामग्री का उल्लेख है और ‘हरिवंश : एक परिचय’ के अंतर्गत हरिवंश जी के बारे में तथ्यात्मक जानकारी दी गई है।

प्रलेक व्यक्तित्व शृंखला के अंतर्गत प्रलेक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक (प्रथम पेपरबैक संस्करण -2024, मूल्य- ₹ 899, पृष्ठ- 636) पत्रकारों, पत्रकारिता के छात्रों, शोधार्थियों और सामान्य पाठकों के लिए भी पठनीय है। बाजारवाद के दौर में भी मूल्य-केंद्रित पत्रकारिता करने वाले रचनाकार हरिवंश जी से सम्बद्ध एक शोधपरक कृति है, ‘हरिवंश : पत्रकारिता का लोकधर्म’।
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