Search
Close this search box.

Culture सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य प्राप्ति का पर्व अनंत चतुर्दशी श्रद्धापूर्वक सम्पन्न

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

आज अनंत चतुर्दशी का पर्व श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाया गया। इस दौरान मंदिरों और घरों में लोगों ने पूजा का आयोजन किया। सुबह से ही हाथों में पूजा की थाली लिए लोग पूजन स्थल पर पहुँचने लगे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में पूजा को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर दिखा। लोग सुबह से ही सामूहिक रूप से पूजा में भाग लिया। कलश की स्थापना कर धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर 14 गाठों वाला अनंत सूत्र भगवान विष्णु को अर्पित किया गया। आस्थापूर्वक पूजा संपन्न होने के बाद लोग अनंत सूत्र अपने बांहों में बांधा। धन-धान्य, सुख समृद्धि, आरोग्य प्राप्ति की कामना के लिये की जाने वाली पूजा के बाद लोग डोरा बांधने के पश्चात चौदह दिनों तक निरामिष भोजन करते हैं।डोरा धारण करने व अनंत चतुर्दशी व्रत कथा सुनने का भी विशेष महत्व है। यह पर्व भादो शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने और अनंत सूत्र को बांधने से जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस दिन ही कई जगह गणेश विसर्जन किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों का निर्माण किया था जिनमें भूलोक, भुवलोक, स्वर्गलोक, महलोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल हैं। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि अनंतसूत्र के 14 गांठें 14 लोकों का प्रतीक होती हैं। यह भी मान्यता है कि जो लोग 14 सालों तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखता है, उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। पांडवों ने भी रखा था यह उपवास। जब पांडव जुए में अपना राज्य हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी थी। पांडवों ने अपने वनवास में हर साल इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। कहा जाता है कि सत्‍यवादी राजा हरिशचंद्र को भी इस व्रत के प्रभाव से अपना राज्य वापस मिला था। इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाता है। एक बर्तन में दूध, सुपारी और अनंत सूत्र डालकर क्षीर मंथन होता है। इसके बाद आरती की जाती है। पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांधते हैं-अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥         इस व्रत के प्रभाव से उन्‍नति और सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है। पूजा की समाप्ति के बाद ब्राह्मण को भोजन और प्रसाद ग्रहण किया जाता है।अनंत चतुर्दशी पूजा से जुड़ी हुई पौराणिक कथाएं प्रचलित है: सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया था। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्तदेव का दर्शन कराया।भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

मारूति नंदन मिश्र
नयागांव, खगड़िया

READ MORE

[the_ad id="32069"]

READ MORE