पुण्यतिथि पर हर्ष वर्धन सिंह राठौर की कलम से….
*शिक्षजगत के दधिचि के रूप में सदैव आदरणीय व्यक्तित्व रहेंगे कीर्ति बाबू*
8 अगस्त 1911 को मधेपुरा के मनहरा सुखासन में जन्मे कीर्ति नारायण मंडल कर्तव्य पथ पर वो लकीर खींच गए जिसने उन्हें महामानव की कड़ी का वो नायक स्वीकार किया जिसपर मधेपुरा की धरती हमेशा इतराती रहेगी। जमींदार परिवार से आने के बाद भी उनकी अलग पहचान स्थापित हुई। कोसी में उच्च शिक्षा ,बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के माहौल बनाने में इनकी भूमिका रही जिसका सुखद परिणाम आज उच्च के विभिन्न क्षेत्रों में मधेपुरा का बढ़ता कदम है।
*टी पी और पी एस कॉलेज उनकी मजबूत इच्छाशक्ति का जीवंत हस्ताक्षर*
कीर्ति बाबू द्वारा आगे चलकर मधेपुरा को उच्च शिक्षा का केंद्र बनाने के लिए कॉलेज स्थापना की पहल शुरू हुई लेकिन पिता जमीन देने को तैयार नहीं थे फिर क्या था राष्ट्रीय छात्रावास में ही भूख हड़ताल शुरू कर दिया फिर मां के पहल पर पिता 52 बीघा जमीन देने को राजी हुए और इस तरह टी पी कॉलेज के स्थापना का रास्ता साफ हुआ।वहीं लड़कियों के पंख को उड़ान देने के लिए बालिका स्कूल जो बाद में आज पार्वती साइंस कॉलेज के रूप में सामने है।इन दोनों कॉलेज की स्थापना मानों अंगराई थी इसके बाद तो कीर्ति बाबू ने शिक्षण संस्थानों के स्थापना की लाइन ही लगा दी ।लगातार समाज के सहयोग व विरोध की धारा में अपने चट्टानी निश्चय के सहारे मधेपुरा,सहरसा, सुपौल, अररिया, कटिहार कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना अलग अलग प्रारूपों में की जो आज शिक्षा के क्षेत्र मे लगातार यहां की इंद्रधनुषी प्रतिभाओं को निखार रहा है।यह कहना गलत न होगा कि कीर्ति बाबू ने ईश्वर की सर्वोत्तम कृति मानव जीवन के कर्तव्य की वह परिभाषा गढ़ी जो जो हर दौर में समाज में एक नजीर के रूप में सम्मानित किया जाएगा।
*समय चक्र में अलग अलग उपमाओं से अलंकृत हुए कीर्ति नारायण मंडल*
कीर्ति बाबू का योगदान इतना बड़ा था कि तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने कोसी का मालवीय,मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय ने कोसी का संत,मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने महान तपस्वी कह कर उनका सम्मान किया था। समाज ने उन्हें एक विचारधारा,महान सपूत,शिक्षा जगत का विश्वकर्मा,विद्या का पुजारी और न जाने क्या क्या उपमा दी । सात मार्च 1997 को इस महामना ने इस दुनिया से विदा ली लेकिन उनका योगदान आज भी उन्हें अमरत्व प्रदान कर रहा है। यकीनन उन्हें कोसी में शिक्षा जगत का विश्वकर्मा कहना गलत न होगा।
मालूम हो कि कीर्ति बाबू द्वारा अपने पिता के नाम पर स्थापित टी पी कॉलेज बीएनएमयू के स्थापना की आधारशिला बनी थी। दरभंगा विश्वविद्यालय में उन पर शोध सुखद संकेत है लेकिन अपने ही क्षेत्र में उनके प्रति वो सम्मान का माहौल नहीं बना जो बनना था वैसे टी पी कॉलेज में विगत कुछ वर्षों से उनके नाम पर आयोजनों की कड़ी सुखद संकेत देते हैं अन्य स्तरों पर भी पहल नितांत आवश्यक है।
*जयंती और पुण्यतिथि पर विवाद का पटाक्षेप सुखद*
कीर्ति बाबू जैसे महामना की जयंती और पुण्यतिथि पर उनके द्वारा स्थापित कॉलेजों में ही कायम विवाद शर्मनाक रही। टी पी कॉलेज और संत अवध कॉलेज में स्थापित प्रतिमा स्थल पर जहां जयंती पुण्यतिथि में मतभेद रहा वहीं पार्वती साइंस कॉलेज में इसका उल्लेख भी नहीं है जिससे हर साल उहापोह की स्थिति में व्यापक स्तर पर आयोजन नहीं हो पाता था। लेकिन विगत कुछ समय में टी पी कॉलेज और वाम युवा संगठन एआईवाईएफ द्वारा हुई पहल से समाधान निकला और वास्तविक तिथि टीपी कॉलेज परिसर में अंकित हुई इससे व्यापक स्तर पर जयंती और पुण्यतिथि का आयोजन अब संभव हो सकेगा कीर्ति बाबू की जयंती विश्वविद्यालय स्तर पर भी जरूर मनें यही उनके पुण्यतिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि होगी।परिस्थितियां जो भी हो लेकिन कीर्ति बाबू का कृतित्व और व्यक्तित्व उन्हें हर दौर का वो सिरमौर स्वीकार करेगा जिसकी चमक समय के साथ और निखरेगी।
हर्ष वर्धन सिंह राठौर
संपादक, युवा सृजन
शोधार्थी, इतिहास BNMU