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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कालजयी रचनाओं ‘रश्मिरथी’ / ‘उर्वशी’ / ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’ आदि के मंचन के निमित नाट्य संस्थाओं से आवेदन आमंत्रण हेतु विज्ञापन

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बिहार सरकार

कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार (सांस्कृतिक कार्य. निदेशालय)

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कालजयी रचनाओं ‘रश्मिरथी’ / ‘उर्वशी’ / ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’ आदि के मंचन के निमित नाट्य संस्थाओं से आवेदन आमंत्रण हेतु विज्ञापन

सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कालजयी रचनाओं ‘रश्मिरथी’ / ‘उर्वशी’ ‘परशुराम’ की प्रतिज्ञा आदि के नाट्य मंचन (पद्य/गद्य) के निमित नाट्य संस्थाओं से आवेदन आमंत्रण करती है। इसमें विहार सहित देश के नाट्य समूह आवेदन कर सकते हैं। चुने हुए नाट्य समूहों की प्रस्तुति राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती 23 सितम्बर 2024 के अवसर पर पटना सहित बिहार के अलग-अलग जिलों में की जाएगी।

नियम एवं शर्तें

नाटक की पूर्ण अवधि न्यूनतम 45 मिनट और अधिकतम। घंटे की होनी चाहिए।

आवेदन में नाटक का पूर्ण विवरण, निर्देशक के बारे में, मुख्य पात्र तथा कुल कलाकारों का विवरण का उल्लेख किया जाना आवश्यक है।

नाटक हिंदी भाषा में होना अनिवार्य है।

आवेदक, आवेदन पत्र कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की वेबसाइट https://state.bihar. gov.in/yac से डाउनलोड कर सकते हैं।

आवेदन, विहित प्रपत्र में भर कर सीलबंद लिफाफे में सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, तृतीय तल, कमरा संख्या-221 विकास भवन, पटना-800015 के पते पर भेजना होगा।

आवेदन के साथ दल के द्वारा यदि पूर्व में ‘रश्मिरथी’/’ उर्वशी’ ‘परशुराम’ की प्रतिज्ञा आदि का मंचन किया गया । हो तो उसकी अच्छी गुणवत्ता का वीडियो आवेदन के साथ भेजना आवश्यक होगा।

अपूर्ण एवं अधूरे आवेदन अमान्य होंगे।

आवेदक को एक अलग सीलबंद लिफाफे में नाटक पर होने वाले व्यय की राशि, जिसमें कलाकारों का मानदेय, यात्रा-व्यय, रहने खाने, स्थानीय परिवहन एवं नाटक के मंचन से सम्बंधित व्यय सम्मिलित होगा, आवेदन के साथ संलग्न करना आवश्यक होगा।।

आवेदन की अंतिम तिथि 7 अगस्त 2024 है।

निदेशक,

सांस्कृतिक कार्य

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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