भारतीय साहित्य में है बिहार का महत्वपूर्ण योगदान : अरविंद पासवान

बिहार गौरवशाली धरती है और बिहार क्रांति की भूमि रही है। बिहारी समाज कभी भी संघर्ष से पीछे हटने वाला समाज नहीं रहा है। संघर्ष एवं सृजन बिहार की मिट्टी की विशेषता है। इस धरती ने संघर्ष एवं सृजन दोनों ही क्षेत्रों में एक विशिष्ट पहचान बनाई है।

यह बात युवा लेखक एवं कभी शाह लेखा विभाग पूर्व मध्य रेलवे में बड़े सहायक वित्तीय सलाहकार अरविंद पासवान ने कही।

वे बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के फेसबुक पर बिहार का समाज और उसकी रचनाशिलता विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि बिहार शुरू से ही साहित्य एवं संस्कृति का संरक्षक एवं सेवक रहा है। भारत में हिंदी साहित्य का इतिहास बिहार के बिना अधूरा है।

उन्होंने कहा कि बिहार के विभूतियों ने एक जनमानस तैयार किया। बिहारी लेखकों की लेखनी से उसके व्यक्तित्व के बारे में ही बहुत कुछ पता चलता है। बिहारी रचनाकारों के व्यक्तिगत जीवन एवं रचनाओं को देखकर यह स्पष्ट है कि वे जनता से जुड़े थे और उनकी बातों को समझते थे।

उन्होंने कहा कि बिहार के सभी जनपद साहित्य एवं कला के क्षेत्र में काफी आगे थे। मगध, वज्जिका एवं अंग यहां के प्रमुख जनपद थे। जनपद काल में बुध हमारी स्मृति में उभरते हैं।

उन्होंने कहा कि यह गौरव की बात है कि हमने बिहार की धरती पर जन्म लिया है। इसी धरती से महावीर जैन और गौतम बुद्ध ने पूरी दुनिया में अहिंसा एवं शांति का संदेश दिया। यहीं चंद्रगुप्त मौर्य एवं गुरु गोविंद सिंह जैसे वीर हुए। यह सिद्धों एवं नाथों की धरती है। 84 में से 36 सिद्ध बिहार के हैं। जो बाहर के थे, वे भी किसी ना किसी तरह से विक्रमशिला या नालंदा से जुड़े थे।

उन्होंने कहा कि बिहार हिंदी साहित्य और बिहार नाम से दो खंडों में एक किताब प्रकाशित है। इसके संपादक आचार्य शिवपूजन सहाय हैं। उन्होंने 1951 में हिंदी साहित्य और बिहार की परिकल्पना की थी। उनके मन में दर्द उठा कि हिंदी साहित्य में बिहार के योगदान को रेखांकित किया जाए। उन्होंने सातवीं शताब्दी से शुरू होकर 18वीं शताब्दी और उसके बाद तक के रचनाकारों के बारे में जानकारी एकत्र की और 200 कवियों- लेखकों को इसमें शामिल किया।

उन्होंने कहा कि गौरव की बात है कि हर्षचरित के रचयिता बाणभट्ट इसी बिहार के कवि हैं। इसी धरती पर महाजनपद काल में भी एक से बढ़कर एक कवि हुए। यही के वात्सायन ने कामसूत्र की रचना की। भारत के बाहर भी जब अनुवाद हुए, तो धूम मची। कामसूत्र केवल काम की बात नहीं है, जीवन का साक्षात्कार भी है।

उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अध्ययन का केंद्र रहा है। ध्यान का केंद्र रहा है। इसलिए बौद्ध साहित्य और सिद्ध साहित्य का व्यापक असर रहा। प्रकृति एवं पालि में काफी रचनाएं हुईं। कह सकते हैं।

उन्होंने कहा कि वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल में संस्कृत साहित्य, उसके बाद जैन-बौद्ध काल में प्राकृत-पाली साहित्य और आधुनिक काल में हिंदी साहित्य में बिहार के रचनाकारों ने महती भूमिका निभाई। आजादी के आंदोलन और संपूर्ण क्रांति आंदोलन में भी बिहारी रचनाकारों की भूमिका अग्रणी रही है।

उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि हम बिहार का समाज और उसकी रचनाशिलता को बहुत कम जानते हैं। हमें खुद को जानना बहुत जरूरी होता है। हम खुद को जानें और खुद को पहचानें, इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है।