B. P. Mandal। बी. पी. मंडल : सामाजिक न्याय के योद्धा

।। राष्ट्र निर्माण दिवस ।।
(7 अगस्त)

7 अगस्त, 1990 को मंडल आयोग की अनुशंसाओं में से एक को लागू किया गया था। यद्यपि 22 अनुशंसाओं में से अभी केवल दो लागू हो पायीं हैं और 20 को अभी लागू होना है। फिर भी इस दिन को राष्ट्र निर्माण दिवस के रूप में याद कर आगे बढ़ना चाहिए। बेहतर तो यह होगा कि जाति विहीन भारत की बुनियाद रखने की दिशा में और मुल्क को आगे बढ़ाने के लिए काम हो, तभी हम चीन जैसी ताकत का एकजुट जवाब दे पाएंगे। लेकिन जब तक यह नहीं हो रहा, 3743 जातियों में बटी ओबीसी को एक वर्ग में बदलते हुए एक पहचान, एक सामाजिक सोच, समझ और जागृति के साथ राष्ट्र निर्माण हेतु शिक्षा पर पकड़ बनाई जाए। समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अशिक्षा, अंधभक्ति से मुक्ति का सही रास्ता ढूंढा जाए। इस दिशा में मंडल आयोग ने देश की लगभग साठ प्रतिशत बिखरी आबादी को एक सूत्र में बांधने का काम किया है, एक नई दिशा दी है। इस उपलब्धि से आगे का रास्ता बनाया जाए।
मंडल आयोग की कुल 22 अनुशंसाओं में से एक, 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा 1990 में हुई। दूसरी अनुशंसा, केन्द्रीय शिक्षण संस्थाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण, 2007 में लागू की गई। बाकी अनुशंसाएं यथा प्रोन्नति में आरक्षण, प्रौढ़ शिक्षा, शिक्षा व्यवस्था में निम्न तबकों की जरूरत के अनुसार व्यापक सुधार, प्रत्येक जिले में ओबीसी छात्रावास, ग्रामीण भूमिहीनों को जमीन देना, भूमि सुधार, पिछड़ा वर्ग विकास निगमों की स्थापना, केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर ओबीसी के लिए अलग मंत्रालय/विभाग की स्थापना आदि का काम अभी अधूरा है।

सामाजिक न्याय के योद्धा स्व.बी.पी.मंडल

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार के पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष स्व.बी.पी. मंडल का जन्म 25 अगस्त,1918 को बनारस में हुआ था। वे बिहार के आधुनिक इतिहास में पिछड़े वर्ग के और यादव समाज के संभवतः प्रथम क्रन्तिकारी व्यक्तित्व, मुरहो एस्टेट के ज़मींदार होते हुए भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय और कांग्रेस पार्टी में बिहार से स्थापना सदस्यों में एक सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे प्रमुख नेताओं के साथी, 1907 से 1918 तक बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमिटी और ए.आई.सी.सी. के बिहार से निर्वाचित सदस्य, 1911 में गोप जातीय महासभा (बाद में यादव महासभा) की संस्थापक स्व रासबिहारी लाल मंडल के सबसे छोटे पुत्र थे। रासबिहारी बाबू यादवों के लिए जनेऊ धारण आन्दोलन और 1917 में मोंटेग्यु-चेम्सफोर्ड समिति के समक्ष यादवों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए, वायसरॉय चेम्सफोर्ड को परंपरागत सलामी देने की जगह उनसे हाथ मिलते हुए जब यादवों के लिए नए राजनैतिक सुधारों में उचित स्थान और सेना में यादवों के लिए रेजिमेंट की मांग की थी। 1911 में सम्राट जार्ज पंचम के हिंदुस्तान में ताजपोशी के दरबार में प्रतिष्टित जगह से शामिल हो कर वह उन अँगरेज़ अफसरों को भी दंग कर दिए जिनके विरुद्ध वे वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।1917 में कांग्रेस के कलकत्ता विशेष अधिवेशन में वे सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य की मांग की थी। कलकत्ता से छपने वाली हिंदुस्तान का तत्कालीन प्रतिष्टित अंग्रेजी दैनिक अमृत बाज़ार पत्रिका ने रासबिहारी लाल मंडल की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भीकता की प्रशंसा की और अनेक लेख और सम्पादकीय लिखी और दरभंगा महाराज ने उन्हें ‘मिथिला का शेर’ कह कर संबोधित किया था। 27 अप्रैल, 1908 के सम्पादकीय में अमृत बाज़ार पत्रिका ने कलकत्ता उच्च न्यायलय के उस आदेश पर विस्तृत टिप्पणी की थी जिसमें भागलपुर के जिला पदाधिकारी लायल के रासबिहारी बाबू के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार को देखते हुए उनके विरुद्ध सभी मामले को दरभंगा हस्तांतरित कर दिया था। 1918 में बनारस में 51 वर्ष की आयु में जब रासबिहारी बाबू का निधन हुआ तो वही बी.पी.मंडल का जन्म हुआ। रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल थे, जो 1924 में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे तथा 1948 में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे। दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जयप्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में थे और 1937 में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए थे। कहते हैं कि एक समय कलकत्ता में रासबिहारी बाबू से राजनैतिक रूप से जुड़े प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के कारण मधेपुरा विधान सभा से 1952 के प्रथम चुनाव में बी.पी.मंडल काँग्रेस के प्रत्याशी बने और 1952 में बहुत काम उम्र में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए। 1962 में पुनः चुने गए और 1967 में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए। 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशलिस्ट पार्टी में आ चुके थे। बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद 1 फ़रवरी,1968 में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने। इसके लिए उन्होंने सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनवाए। अतः सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाने वाले स्व.बी.पी.मंडल ही थे। बी.पी. मंडल 6 महीने तक सांसद थे और बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी थे। वे राम मनोहर लोहिया जी एवं श्रीमती इंदिरा गाँधी की इच्छा के विरुद्ध बिहार में पहले पिछड़े समाज के मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे। परन्तु विधानसभा में बहुमत के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल अयंगर साहब रांची जाकर बैठ गए और मंडल जी को शपथ दिलाने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बी.पी.मंडल बिहार में बिना किसी सदन के सदस्य बने 6 महीने तक मंत्री रह चुके है। परन्तु बी.पी.मंडल ने राज्यपाल को चुनौती दी और इस परिस्थिति से निकलने के लिए तय किया गया कि सतीश बाबू एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन कर इस्तीफा देंगे, जिससे बी.पी.मंडल के मुख्यमंत्री बनने में राज्यपाल द्वारा खड़ा किया गया अरचन दूर किया जा सके। अब इंदिरा गाँधी और लोहिया जी सभी मंडल जी के व्यक्तित्व से डरते थे और नहीं चाहते थे कि सतीश बाबू इस्तीफा दें। परन्तु सतीश बाबू ने बी.पी.मंडल का ही साथ दिया।

आगे की कहानी और दिलचस्प है। उन्ही दिनों बरौनी रिफायनरी में तेल का रिसाव गंगा में हो गया और उसमें आग लग गयी। बिहार विधान सभा में पंडित बिनोदानंद झा ने कहा कि शुद्र मुख्यमंत्री बना है तो गंगा में आग ही लगेगी! साक्ष्य तो इस प्रकरण का बिहार विधानसभा के रिकार्ड में है। बात पहले बिहार विधान सभा की है, जब स्व.बी.पी.मंडल ने आपत्ति की थी कि यादवों के लिए विधान सभा में ‘ग्वाला’ शब्द का प्रयोग किया गया। सभापति सहित कई सदस्यों ने कहा की यह असंसदीय कैसे हो सकता है क्योंकि यह शब्दकोष (Dictionary) में लिखा हुआ है। स्व.मंडल ने कुछ गालियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भी तो शब्दकोष (Dictionary) में है, फिर इन्हें असंसदीय क्यों माना जाता है। सभापति ने स्व मंडल की बात मानते हुए यादवों के लिए ‘ग्वाला’ शब्द के प्रयोग को असंसदीय मान लिया। लेकिन उन दिनों किन जातिवादी हालातों में बाते हो रही थी, इसका अंदाज़ मुश्किल है। 1968 में उपचुनाव जीत कर पुनः लोक सभा सदस्य बने। 1972 में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मधेपुरा लोक सभा से सदस्य बने। 1977 में जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोक सभा टिकट मंडल जी ने ही दिया। 1978 में कर्णाटक के चिकमंगलूर से श्रीमती इंदिरा गाँधी के लोक सभा में आने पर जब उनकी सदस्यता रद्द की जा रही थी, तो मंडल जी ने इसका पुरजोर विरोध किया। 1.1.1979 को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बी पी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिस जबाबदेही को मडंल जी ने बखूबी निभाया। इनके दिए गए रिपोर्ट को लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायलय में ख़ारिज नहीं किया जा सका। खैर, उसके बाद की घटनाएं तो तात्कालिक इतिहास में दर्ज है और जो हममें से बहुतों को अच्छी तरह याद है।

स्व.बी.पी.मंडल जी की मृत्यु 13 अप्रैल,1982 को 63 वर्ष की आयु में हो गयी।

आइये इन अधूरे कार्यों की पूर्ति के लिए, मंडल कमीशन की मंशा, उपयोगिता, सामाजिकता और सौहार्द का ठीक- ठीक अध्ययन करें।

डा रविशंकर कुमार चौधरी, टीएनबी कॉलेज, भागलपुर, बिहार