Search
Close this search box.

बहनें/ अरूण नारायण

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

बहनें
———————-अरुण नारायण

हमारी चेतना में
जब दाखिल होती हैं बहनें
हमेशा पराए हो चुके
आत्मीय जगहों की तरह
जो पुराने दिनों को लौटा लाती हैं
और जुदा –जुदा
अवसाद की गाढ़ी परतें
स्मरण मात्र से ही जिनके
तैर जाती है
मन मस्तिष्क पर ।

बहनें हमारी स्मृतियों में
तब दाखिल होती हैं
जब हम होते हैं
निविड़ एकांतिक अवसाद में ।

हमारी हर छोटी ज़रूरतों पर
बारीक नज़र रखती हैं वे
और तिल – तिल कर
घर परिवार में ही
होम कर देती हैं खुद को ।

रक्षाबंधन हो या हो भैया दूज
करती हैं वे
भाई के अक्षत जीवन के लिए व्रत ।

अक्सर भूखे रह कर ही
घर आए अतिथियों का
करती हैं आदर – सत्कार
और तिल – तिल कर
परिवार की मर्यादा में ही
मर खप जाती हैं ।

READ MORE