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परिवार व समाज के सभी निर्णयों में स्त्रियों की भागीदारी जरूरी : डॉ वंदना भारती

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स्त्री-विमर्श स्त्रियों के विचारों की अभिव्यक्ति या उसकी आत्मकथा मात्र नहीं है। इसका लक्ष्य स्त्री को आत्मसंतोष या आनंद देना मात्र नहीं है। स्त्री-विमर्श का लक्ष्य है एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण। यह बात असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, पूर्णियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ (बिहार) डाॅ.बंदना भारती ने कही। वे रविवार को
हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दे रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला के अंतर्गत किया गया।

उन्होंने कहा कि यह दुनिया पुरुषों ने बनाई है, जिसमें की भागीदारी के लिए स्त्रियों को संघर्ष करना पडता है। सामाजिक दृष्टि से स्त्री मुक्ति की बड़ी उपलब्धि है, स्त्री का अपने घर के चौखट से बाहर निकलना।

उन्होंने कहा कि स्त्री-विमर्श स्त्रियों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने का पक्षधर है। यहां यह ध्यान रहे कि निर्णय लेने की स्वतंत्रता से पढ़े लिखे होने का कोई खास संबंध नहीं है। अच्छी खासी पढ़ी- लिखी औरतें और ऊंचे पायदान पर विराजमान औरतों का व्यक्तित्व घर की चारदीवारी के अंदर एक सामान्य स्त्री सा होता है। जबकि खेतों में काम करने वाली या फिर आपके घरों में काम करने वाली स्त्री भी कभी-कभी आपसे ज्यादा स्वतंत्र और स्वयं निर्णायक भूमिका अदा करने वाली हो सकती है।

उन्होंने कहा कि स्त्री- शोषण के अनेक हथकंडे हैं। उनमें से एक है स्त्री के व्यक्तित्व को रिड्यूस करके घर तक ही सीमित कर देना।

उन्होंने कहा कि औरतें मूर्ख नहीं होती हैं। आप हम जिस परिवेश से आते हैं, वहाँ यही धारणा है कि औरतों में दिमाग नाम की कोई चीज नहीं होती है। यही कारण है कि घर के प्रमुख हमेशा पुरुष ही होते हैं। किसी भी कार्य निर्णय लेने की स्वतंत्रता उन्हें ही है। हमें इस धारणा को बदलना है। परिवार एवं समाज के सभी निर्णयों में स्त्रियों की भागीदारी आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि दुनिया में प्रायः हर जगह औरतों को दोयम दर्जे का माना जाता है। भारत में साधारण ग्रामीण परिवार एवं दलित समाज से आने वाली आम स्त्री से लेकर बड़े पदों पर विराजमान और आधुनिक औरतों को भी किसी न किसी प्रकार से हेय माना जाता है। केवल जिंस-पेंट पहने और सिगरेट-शराब पीने से औरतों का शोषण बंद नहीं हो जाता है। अमेरिकी औरतें भी हम भारतीय औरतों की तरह असहाय हैं।

उन्होंने कहा कि स्त्री-विमर्श पर आक्षेप लगाया जाता है कि यह पुरुषों की निंदा करता है। लेकिन सच्चाई यह है कि स्त्री-विमर्श किसी पुरुष के खिलाफ नहीं है। यह शोषण, दमन, उत्पीड़न एवं अन्याय के खिलाफ है। वर्चस्ववादी मानसिकता के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि स्त्री भी स्त्रियों का शोषण करती हैं। कभी रंग के नाम पर कभी कम बोलने पर तो कभी ज्यादा मुखर होने पर यह हमारे समाज का सच है।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि सोमवार को सुबह 11 बजे त्राटककर्म का यौगिक तथा शिक्षाशास्त्रीय महत्त्व: कोविड-19 पेंडेमिक के संदर्भ में विषयक व्याख्यान आयोजित होगा। इसकी वक्ता हैं डॉ कविता भट्ट लेखिका/साहित्यकार, सम्पादिका तथा योग-दर्शन विशेषज्ञ एवं प्राध्यापक हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।