Gandhi। डाकू कैसे बना गाँधी ?/मारूति नंदन मिश्र नयागांव, परबत्ता, खगड़िया

दूब पर पड़ी ओस की बूंदे सूखी भी नहीं कि घर-घर यह संदेश पहुंच जाता है कि आज की शाम ‘दौलत और ईमान’ से सजनेवाली है। घर से हाफ पैंट में निकला आठ साल का बालक जब रंगमंच पर बालक ‘बिरजू’ की अदाकारी निभाता है, तो अगले दिन से वह समाज की जुबान पर ‘बीजू’ के रूप कुछ इस तरह चढ़ता है कि बाद के दिनों में भी लोग उन्हें विजय झा कम, बीजू अधिक पुकारते हैं। लेकिन “दौलत और ईमान” नाटक में बाल कलाकार बिरजू को हूबहू उतार देनेवाले ‘बीजू’ जब जवानी की दहलीज पर कदम रखता है, तो इसी नाटक में ‘बिरजू डाकू’ की अदाकारी दर्शकों को तमतमाने पर मजबूर कर देता है। इसकी वजह भी थी। मासूम बिरजू का लल्लापन और उसकी मासूमियत ने जिन दर्शकों को वात्सल्य-रस का पान करा चुका हो, वही दर्शक उसे रौद्र रूप में देख कर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने को मजबूर हो जाता है कि आखिर नन्हां बिरजू एक दिन डाकू की तरह आंखें कैसे तरेर सकता है। यही उनकी अदाकारी की जीवंतता का यथार्थ था। यात्रा यहीं नहीं रुकती। बाद के दिनों में वे रंगमंच पर कम, सड़कों पर अधिक देखे जाने लगे। यहां वे न तो बाल बिरजू थे और न ही डाकू बिरजू थे। वे थे तो ‘गाँधी’ यानी ‘बापू’ के रूप में।

वर्ष 1989 में हुए भागलपुर दंगा के बाद कांग्रेसी नेता श्री अजित शर्मा (वर्तमान विधायक) के नेतृत्व में विशाल रैली निकाली गयी थी, इस रैली में गाँधीजी की भूमिका में विजय झा पूरा भागलपुर पद यात्रा किये। इसी रैली में पूर्व विधायक श्री सदानन्द सिंह इनको माल्यार्पण कर कहा कि “आज से तुम गाँधीजी के नाम से जाने जाओगे”। उस दिन से इनका लक्ष्य हो गया कि गाँधीजी के विचारों व आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाना है, जो आज तक जारी है। इस कार्य के लिये जिला स्तर और राज्य स्तर पर कई बार पुरस्कृत भी हुए। इसके बाद कई नाटकों और कार्यक्रमों में गाँधीजी की भूमिका निभाते आ रहे हैं।

करीब छह फीट का छरहरा गोरा-चिट्टा बदन। सिर पर काले-काले बाल। अच्छी-खासी मूंछें। कुल मिलाकर हैंडसम सा किसी फिल्मी हीरो की तरह। जब उनके हाथों में लाठी, आंखों पर चश्मा और शरीर पर सफेद धोती लपेटे हुए रहते हैं, तो लोग यकीन ही नहीं कर पाते कि गाँधीजी नहीं है, लोग अचंभित हो जाते हैं कि गाँधीजी कैसे आ गए?
कुदरत ने इनको ऐसी शक्ल दी है कि गाँधी जी के किरदार में जीवंत नजर आते हैं। उनसे मिल कर मैंने पहला सवाल उनसे यही पूछा कि आखिर बिरजू डाकू क्या एक दिन गाँधी इसलिए बन जाता है कि उन्हें अपनी पहचान इस रूप में स्थापित करनी है। सवाल सुनते ही वे सकपका जाते हैं। कहते हैं नहीं-नहीं…गाँधी, गाँधी हैं और उनके रूप की अदाकारी उसके इतर है। तो फिर बार-बार गाँधी की अदाकारी में खुद को लेकर जाने का क्या उद्देश्य है। वे कहते हैं कि उद्देश्य बिल्कुल साफ है। नये दौर की नयी पीढ़ी गाँधी से दूर हो रहे हैं। मेरा मतलब गाँधी के विचारों से, गाँधी के रास्तों से। दूसरी ओर किताबों से दूरी तो बढ़ी ही है। ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों नहीं अपनी कला का उपयोग ऐसे रूप को लेकर करें, जो नयी पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम के प्रति जोड़े, बस यही सोच ने हमें गाँधी के रूप में सड़कों पर उतरने को मजबूर किया।

दर्शकों ने जिन्हें बाल बिरजू के रूप में सराहा, डाकू बिरजू के रूप में मन में उतारा और गांधी के रूप में स्वीकारा, वह कोई और नहीं, बिहार राज्य के भागलपुर शहर के बरारी मोहल्ले के रहनेवाले विजय कुमार झा हैं। गांधीजी के रूप से चर्चित इस शख्स को आज लोग उन्हें विजय कुमार झा कम, विजय झा गांधी ज्यादा पुकारते हैं। इनका जन्म 20 नवंबर 1969 को हुआ था।
इनके पिताजी का नाम स्व गोकुला नंद झा, और माताजी का नाम स्व रेखा झा है।

विजय ने न सिर्फ रंगमंच को सजाया है, बल्कि विभिन्न अवसरों पर सड़कों पर चल कर नये अर्थों में रंगमंच को बचाया भी है। उनकी भूमिका अदायगी का ही कमाल रहा है कि दर्शक उन्हें तब-तब वही बना दिया, जब-जब उन्होंने अपनी अदाकारी से उन्हें भिगो दिया।

इनका विवाह बांका जिला के बौसी में 18 अप्रैल 1996 को श्रीमती रंजू झा से हुआ। एक पुत्र सन्नी आनंद और एक पुत्री शिल्पी सोनाली है। इन्हें पत्नी से सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों में भरपूर सहयोग मिलता हैं। वर्तमान में पेशे से शहर के एक प्रतिष्ठित होटल में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है। जज्बा संकल्प संस्था, भागलपुर के महासचिव और राय हरिमोहन ठाकुर बहादुर इंटर विद्यालय में शिक्षा समिति के सदस्य भी है।

गाँधीजी के रूप में भागलपुर सहित पूरे बिहार में जाने जाते हैं। पिछले वर्ष गाँधी मैदान पटना में आयोजित कांग्रेस की रैली में गाँधीजी के रूप से मीडिया में चर्चित रहे। गांधीजी की जीवंत भूमिका निभाने एवं सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए इन्हें नेपाल सरकार द्वारा काठमांडू में इंडो नेपाल समरसता अबार्ड से सम्मानित भी किया गया है।

सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, बिहार सरकार के वेबसाइट पर इनकी दो डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म भी चल रही है।

मारूति नंदन मिश्र
नयागांव, परबत्ता, खगड़िया