गिरीडीह बहुत अच्छा शहर था!
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उस शहर में मत जाओ
जहां तुम्हारा बचपन गुजरा
अब वो वैसा नहीं मिलेगा
जिस घर में तुम किराएदार थे
वहां कोई और होगा
तुम उजबक की तरह
खपरैल वाले उस घर के दरवाज़े पर खड़े होगे और
कोई तुम्हें पहचान नहीं पाएगा!
वह लंबा सा ख़ाली टीला जहां
तुम ने जमकर पतंगबाजी की थी
अब वहाँ अनगिनत घरों की कतारें होंगी
तुम किस -किस को बताओगे कि पैंतीस साल पहले मैं यहाँ रहता था !
वह तालाब पाट दिया गया होगा
जहां तुम नहाए, तैरना सीखा
साथ खेलते बच्चे किसी और शहर को चले गए होंगे और जो होंगे उन्हें कैसे पहचानोगे तुम ?
ज़ाहिर है तुम अपने स्कूल भी जाओगे
संभव है कि वह किसी बड़ी इमारत के पीछे छुप गया होगा !
शहर से चुपचाप गुजर जाओ
यही तुम्हारे हक़ में अच्छा होगा
अपने आंसुओं को रोको
कोई पुराना सहपाठी
न कोई पुराना पेड़ मिलेगा विनय सौरभ !
बड़ा चौक पर दोस्त के पिता की नास्ते की उस छोटी- सी दुकान में तो जाओगे
पर क्या वह मिलेगी ?
कोयले की आग से धुंआती छतें
और समोसे की वह खुशबू कहीं दर्ज़ कर लो
पर उधर मत जाओ
बड़ा चौक अब बहुत बदल गया है
जीवन टॉकीज बंद हो चुका है
जहां तुमने अपने जीवन की पहली फ़िल्म मुकद्दर का सिकंदर देखी
तुम्हें मंदिर से कुछ ख़ास लगाव तो न था
तुम कालीबाड़ी क्यों जाना चाहते हो ?
उस चौक पर अब तृप्ति नाम का कोई रेस्तरां नहीं है
मकतपुर चौक पर सब्जियां आज भी मिलती हैं और रंजीत स्टूडियो कब का बंद हो चुका
डोमा साव के मिठाइयों की दुकान है
पर उसकी नमकीन का स्वाद क्या वैसा ही होगा !
मोती पिक्चर पैलेस के आगे अब चाट के ठेले नहीं लगते
फ़िल्मी गानों की क़िताबें नहीं बिकतीं
अब कोई टिकट ब्लैक नहीं होता
अब वह सिनेमाघर बदहाल और बदरंग हो चुका है , उसे देखकर तकलीफ़ से भर जाओगे जहां स्कूल से भागकर नून शो की कई फ़िल्में देखने की याद बाक़ी है !
पिता के दफ़्तर की याद तो होगी
कचहरी के पास वहां भी जाओगे
पर वह इमारत न मिलेगी !
नाहक ही परेशान हो जाओगे तुम
उस शहर में मत जाना
याद करना कि वह एक बेहतरीन समय था तुम्हारा
जहां दीवारों पर लगने वाले फिल्मी पोस्टरों की तुमने अपनी किताबों कॉपियों पर ज़िल्दें चढ़ाईं
इस तरह से तुम्हें अपनी भाई -बहन भी याद आयेंगे
इस तरह पिता ख़्यालों में आयेंगे
तब शहर के किताब की दुकानें भी याद आयेंगी
रहमान दर्जी की याद आएगी
फुटपाथ पर लगने वाली चप्पल की अनगिनत दुकानें
और बाटा में पहली बार खरीदा गया स्कूल का जूता याद आएगा
स्कूल के दिनों का वह स्वेटर पीछा करेगा जो दिवंगत बहन ने पहली बार तुम्हारे लिए बनाया !
उस शहर में मत जाना
इस तरह से तुम दु:ख के दरिया में डूबोगे
तुम लौटोगे, तुम्हारी पुरानी बातें कौन सुनेगा
अब तो वह माँ भी नहीं रही जो बात- बात में कहती थी:
गिरिडीह बहुत अच्छा शहर था !
18.01.2022
विनय सौरभ, गोड्डा ।