कोरोना का शिक्षा पर प्रभाव/ रुखसाना आज़मी             

21 वी शताब्दी में विश्व के सामने अभी तक की सबसे बड़ी समस्या कोरोना वायरस के रूप में सामने आई है. इस ने सभी देशों को हिला कर रख दिया है. दुनिया के विकासशील देशों के साथ साथ विकसित देश भी इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं.

चीन के वुहान शहर से फैला यह वायरस इतना भयानक रूप से आतंक मचाएगा किसी देश ने नहीं सोचा होगा. विश्व स्वास्थ संगठन डब्ल्यूएचओ ने इस वायरस को महामारी घोषित कर दिया है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार 15 अप्रैल, 2020 तक दुनिया भर में इस महामारी से लगभग 1.34 से ज्यादा लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है. इसमें अमेरिका, इटली, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के लोग की संख्या 50% से भी ज्यादा है. लेकिन यह आंकड़े केवल अप्रैल तक का ही है .देश में लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दी गई है और इन आंकड़ों का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है.

कोरोना ने सामाजिक स्वास्थ्य पर प्रहार किया है। साथ ही अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया है .

इस महामारी को देखते हुए भारत सरकार के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण भारत में लाॅकडाउन किया. पहला लॉकडाउन 24 मार्च से 3 मई 2020 तक लगा. इस 40 दिन की अवधि में सभी विद्यालय, महाविद्यालय,  विश्वविद्यालय एवं अन्य उच्च शिक्षण संस्थान बंद पड़े हैं. इसका सीधा असर अध्यापकों और विद्यार्थियों के जीवन पर पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (युनेस्को) ने एक रिपोर्ट जारी की है. इसके अनुसार कोरोना महामारी से भारत में लगभग 32 करोड़ विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं.     इसमें 15.81 करोड़ लड़कियां और 16.25 करोड़ लड़के शामिल है.

यदि हम वैश्विक स्तर की बात करें तो इस महामारी से दुनिया के 193 देशों के 157 छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है. यह विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले छात्रों का 91.3% है. इस साल भारत में दसवीं 12वीं और अन्य शिक्षा की परीक्षाएं दे रहे विद्यार्थियों के कुछ पेपर काफी दिनों तक नहीं हुए. जिस वजह से सभी छात्रों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था और छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहे. क्योंकि यह विद्यार्थी के जीवन की पहली और दूसरी सीढ़ी है. लेकिन कोरोना वायरस के कारण विद्यार्थियों को कैरियर की चिंता का सामना करना पड़ा. काफी दिनों बाद लंबित पेपर की परीक्षा हुई और परीक्षाफल जारी हुआ.

मगर फिर भी उच्च शिक्षा की परीक्षाएं टाल दी गई है. जिस कारण उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को काफी संकट का सामना करना पड़ रहा है . क्योंकि वह अपने उच्च स्तरीय शिक्षा की परीक्षाएं देकर शिक्षा के क्षेत्र में सक्सेस होना चाहते हैं.

हालांकि प्राइमरी स्कूल की परीक्षाएं जैसे नर्सरी से लेकर आठवीं तक 9वीं से 12वीं तक की सभी छात्रों को बिना पेपर दिए ही शिक्षा विभाग ने पास करने का आदेश दे दिया है. लेकिन अन्य परीक्षाएँ स्थगित हैं.

कोरोना महामारी के का कारण बंद पड़े सभी शैक्षणिक संस्थानों में नए एडमिशन होने की तिथि टाल दी गई है. इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय की सेवा मेन, पी.एचडी एडमिशन एमफिल तथा अन्य तकनीकी शिक्षा भी शामिल है.

कोरोना ने जहां पूरे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है ,तो वहीं इसका छात्रों की शिक्षा व्यवस्था तथा भविष्य पर भी असर पड़ा है, बच्चों के लिए काम कर रही संस्था “”सेव द चिल्ड्रन” संस्था ने एक रिपोर्ट तैयार की है इस रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2020 में दुनिया के दुनिया भर में 1.6 अरब बच्चे स्कूल और यूनिवर्सिटी नहीं जा सके. यह दुनिया के कुल छात्रों का 90 फ़ीसदी हिस्सा है. इसमें लिखा गया है कि मानव इतिहास में पहली बार वैश्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित हुई है. एक चौंकाने वाली बात यह कही है कि 9 से 11 करोड़ बच्चों की गरीबी में ढकेले जाने का खतरा भी बढ़ गया है. साथ ही परिवारों की आर्थिक रूप से मदद करने के लिए छात्रों को पढ़ाई छोड़कर कम उम्र में ही नौकरियां शुरू करनी होगी. इस रिपोर्ट की मानें, तो एक करोड़ छात्र कभी शिक्षा की ओर नहीं लौट पाएंगे तथा मध्यम आय वाले देशों में 2021 के अंत तक शिक्षा बजट में $77 की कमी आएगी.”

Save the Children” की सीईओ Enger asing बताती है कि करीब एक करोड़ बच्चे शिक्षा की ओर कभी नहीं लौट पाएंगे .क्योंकि इसका असर गरीब परिवार के बच्चों पर ज्यादा पड़ा है. इन्होंने ने लेनदारों से कम आय वाले देशों के लिए ऋण चुकाने की सीमा को निलंबित करने की आग्रह किया है. इससे शिक्षा बजट में 14 अरब डालर बच सके.

दुनिया ने 2030 तक सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलवाने का प्रण लिया था. कोरोना ने उसे कई सालों पीछे धकेल दिया. जिन बच्चों को शिक्षा मिल पा रही थी कोरोना महामारी संकट के कारण उनसे भी यह छिन जाने का खतरा बन गया.

कोरोना महामारी ने सभी शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया है. भारत में 5 महीने यानी मार्च से अगस्त तक सभी स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय तथा सभी शैक्षणिक संस्थान बंद पड़े हैं. जिसका प्रभाव छात्रों के भविष्य पर पड़ा है.

कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए कुछ लगनशील अध्यापकों ने शिक्षा की परेशानियों को कम करने की कोशिश की है. जैसे एक द्वार बंद होने से सारे द्वार बंद नहीं हो जाते, इस पुरानी कहावत को इन अध्यापकों ने चरितार्थ किया है. अध्यापकों ने छात्रों को पढ़ाने के लिए ऑनलाइन क्लास का बेहतरीन विकल्प निकाला है. जिससे प्रतिदिन हजारों छात्र अपने अध्यापक से अपनी समस्या का समाधान पा कर पढ़ाई कर रहे हैं. ऑनलाइन क्लास आज के डिजिटलीकरण दौर की मांग व जरूरत है. इस बात का महत्व समझते हुए मानव विकास संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की ओर से कहा गया है कि केंद्र सरकार ने भारत पढ़े ऑनलाइन अभियान की शुरुआत की है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि इससे जो छात्र कक्षा में शर्म के कारण प्रश्न नहीं पूछ पाते थे, वे ऑनलाइन के माध्यम के जरिए अपनी समस्या खुल कर पूछ रहे हैं. लाॅकडाउन होने से ऑनलाइन क्लास की महत्ता को छात्र अधिक समझ पाने में सक्षम हुए हैं. जहां ऑनलाइन क्लास और सरकार द्वारा दी जा रही शिक्षा सुविधा से छात्र फायदा उठा रहे हैं.

लेकिन देश में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र भी हैं, जिनके पास फोन जैसे माध्यम यानी स्मार्टफोन नहीं है. भारत की आबादी का एक बड़ा तबका गरीब गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करता है. ऐसे में उनके लिए ऑनलाइन कक्षा और पुस्तकों के ऑनलाइन होने से कोई लाभ नहीं है. क्योंकि इस तकनीकी शिक्षा लेने में  गरीब रेखा के नीचे आने वाले परिवार समर्थ नहीं हैं. ऐसे में इनके लिए ऑनलाइन शिक्षा लेने की बात महज एक सपना ही है.

देश में ऐसे कई परिवार हैं, जो पहले मेहनत मजदूरी करके जीवनयापन कर रहे थे. कोरोना महामारी के कारण काम धंधे बंद हो जाने से जीवनयापन पर असर पड़ा है. इससे कई गरीब परिवार के बच्चे ऑनलाइन क्लास से वंचित हैं.
अत: हम कह सकते हैैं ऑनलाइन शिक्षा भी उच्च तबके तक सीमित है. इस तकनीकी शिक्षा से भारत के गरीबी रेखा के नीचे वाले छात्र अब भी वंचित हैं. कोरोना महामारी से भारत के विकासशील देश के अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था तथा समाज को भी प्रभावित है.

रुखसाना आज़मी                                        गृह विज्ञान विभाग, बीएनएमयू (मधेपुरा)