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कृष्णवट/भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं

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अपने देश में कई पवित्र वृक्षों में एक पवित्र वृक्ष है “कृष्णवट”। यह वृक्ष भारत के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। यह विशेष प्रकार के बरगद वृक्ष के प्रजाति का होता हैं। इसके सभी पत्ते मुड़े हुए और देखने में बड़े चम्मच या कटोरे के आकार का होता हैं। कृष्णवट के पत्तों में दूध, दही, मक्खन, खीर आदि का सेवन किया जा सकता हैं। इस वृक्ष को कृष्णवट और इसके पत्ते को कृष्णदोना, माखन कटोरी और अंग्रेजी में इसे ‘वटरट्री’ कहा जाता है।इस पेड़ की पत्तियों से संबंधित भगवान श्रीकृष्ण की कई पौराणिक कहानियां है। कहानी यह है कि भगवान कृष्ण माखन के बहुत शौकीन थे और वह इसे चुरा भी लेते थे। एक बार जब वह अपनी माँ, यशोदा के हाथों पकड़ा गया, तो उसने इस पेड़ के एक पत्ते में माखन को छिपाने की कोशिश की। तब से, इन पेड़ों की पत्तियों ने इस आकार को बरकरार रखा है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण बचपन में इसी कृष्णवट के पत्ते से खीर और माखन खाये थे। गौ माता को चराते हुये भगवान श्री कृष्ण इसी वृक्ष के नीचे विश्राम करते थे और वंशी बजाते थे, इसलिए इसे ‘बंशीवट’ भी कहा गया। ऐसी मान्यता है कि शबरी कृष्णवट वृक्ष के पत्तों में भगवान श्री राम के लिए बेर इकठ्ठे करके रखती थी। कृष्णवट पर कुछ विदेशी वनस्पतिशास्त्रियों ने शोध भी किया है। सन् 1901 में कैन्डोल ने इसका अध्ययन करने के बाद इसे सामान्य बरगद से अलग एक विशिष्ट जाति का वृक्ष माना और इसे भगवान कृष्ण के नाम पर वैज्ञानिक नाम भी दे दिया “फाइकस कृष्णीसी द कंदोल”। किन्तु भारतीय वनस्पति वैज्ञानिकों का मत है कि कृष्णवट एक अलग जाति का वृक्ष नहीं है। यह बरगद की ही एक प्रजाति है। यह बरगद के पेड़ से छोटा होता है। जानकारों के मुताबिक पश्चिम बंगाल के जंगलों में कहीं कहीं पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान में भी कृष्णवट के कुछ वृक्ष हैं। उत्तराखंड में यह पेड़ वन विभाग द्वारा संरक्षित है। छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण मंदिर में भी यह पेड़ देखा जा सकता है।

मारूति नंदन मिश्र
नयागांव (खगड़िया)

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