नहीं। मैं निश्चय ही तुम्हें नहीं भूलूंगा।
जब सुबह भरपूर ओस होगी
दूब और रेत पर एक जैसा,
छाया के कतारों के पार जैसे गुलाबी चमक है।
मैं साथ जाना चाहूंगा इन सपनों की धरती से,
उस पार, जहाँ भविष्य की उम्मीद है।
अगर तुम जानना चाहोगे कैसे हुआ ये सब –
कि कैसे अपना मुहल्ला, गांव, शहर सब छोङा,
शायद मुद्दा ही भटक जाएगा।
चले थे उस विचारों को शक्ल देने-
जिसका स्थाई कोई मुखङा नहीं बन पाया
और परवाह भी नहीं रहा —
सम्मोहन और अपमान का
अगर मै कहूं– यह एक जरूरत व अनिवार्यता थी,
रोटी और प्रसिद्धि के लिए..
तो आंशिक सही होगा वह।
नहीं। मैं निश्चिय ही तुम्हें नहीं भूलूंगा।
अगर मेरा हृदय फट नहीं गया।
मुझे नसीब नहीं था, तेरे साथ रह पाना।
मै खुद राज़ी हुआ था। अपने अंदर खालीपन को लाने के लिए।
क्योंकि मैं प्रेम में था
और मेरे पास शब्द नहीं थे,
लच्छेदार व सुन्दरतापूर्वक सजाए हुए।
और अगर किसी पैमाने से,
जिसे मैं नहीं जानता नापा जाएगा कभी,
मेरे वयस्क वर्षों के कङवे आंसुओं को,
तो लबालब भरे मिलोगे तुम।
आशीष माधव
प्राचार्य
सरस्वती विद्या मंदिर (विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान), रोसड़ा, समस्तीपुर, बिहार।
जन्म- 3 सितम्बर, 1988
पिता – श्री बिजय झा
माता – संयुक्ता देवी
शिक्षा-
मैट्रिक – श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय, नयागांव, खगड़िया, बिहार
स्नातक- टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर, बिहार
एम. ए. (भूगोल)- तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार से
बी. एड., पीएचडी में अध्ययनरत
विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं मे आलेख एवं कविताएं प्रकाशित ।
निवासी –
ग्राम- मुरादपुर, पंचायत- माधवपुर, थाना- परबत्ता, जिला – खगड़िया (बिहार)