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कविता/जिनका बचपन जिनके कंधे पर है/ डॉ. कर्मानंद आर्य

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जिनका बचपन जिनके कंधे पर होता है
उनकी जवानी उनके कंधे पर कभी नहीं होती

यानी वह किसी और के कंधे पर सवार हो
तय करती है शेष यात्रा

एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड तक
एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक
एक दुनिया से दूसरी दुनिया तक

शेष बची रहती है
शरीर में बचे हुए बचपन की तरह
वह पहाड़ सी
उठ जाती है किसी ऊँची चीज की ही तरह

गगनचुंबी बातें करती है
उड़ती है आसमानों से ऊपर बनकर चील

वह मुर्गे की तरह बांग देती है
जगाती है श्रमशीलों को
देखती है वहां से लौटकर
बचपन के कंधों पर उभरे हुए घाव और मरहम

अमरता कुछ नहीं
एक शब्द मात्र है एक शब्दकोश में

क्योंकि बचपन भी एक शब्द है
जो सब डिक्शनरियों में नहीं मिलता

जिनका बचपन
जिनके कंधे पर कभी नहीं आता
जिसके साथ साथ चलता रहता है
उनका भाग्य विधाता

वे बचपन की कीलों के बारे में क्या जानें
वे सधी दलीलों के बारे में क्या जाने

मेरा बचपन मेरे कंधे पर बीत गया
बचपन था धीरे धीरे रीत गया।

कवि परिचय
======

डॉ. कर्मानंद आर्य
पिता : श्री सहदेव राज
माता : श्रीमती सुगना देवी
पैतृक निवास : ग्राम- छपिया, पोस्ट- गोविंद पारा जनपद, बस्ती (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा : एम. ए. हिंदी, पी-एच. डी. (हिंदी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

यूजीसी-नेट-जेआरएफ

पुस्तक प्रकाशन

1.अयोध्या और मगहर के बीच, कविता संग्रह दीपक अड़ोरा पांडुलिपि प्रकाशन योजना के तहत चयनित एवं प्रकाशित

2. डरी हुई चिड़िया का मुकदमा, कविता संग्रह, मंत्रिमंडल सचिवालय राजभाषा विभाग बिहार सरकार के पांडुलिपि प्रकाशन योजना के अंतर्गत प्रकाशित अस्मिता

3. अस्मितामूलक साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, आलोचनात्मक पुस्तक, द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, नई दिल्ली, वर्धा (महाराष्ट्र) से प्रकाशित

4. बिहार-झारखंड की चुनिंदा दलित कविताएँ, बिहार-झारखंड के दलितों रचनाकारों की कविताओं का सामूहिक कविता संकलन का संचयन-संपादन,बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)

5. मलखान सिंह : संवेदना और शिल्प, संपादित, स्वराज प्रकाशन नई दिल्ली

6. दामोदर मोरे की कविता : संवेदना एवं शिल्प, बोधि प्रकाशन जयपुर (राजस्थान)

7. नैतिकता के लोकरंग में स्त्री (आलोचना), संपादित, नाॅटप्रकाश ई. बुक के रूप प्रकाशित

संकलन
शतदल फेसबुक पर सक्रिय 110 रचनाकारों की कविताओं का सामूहिक संकलन- संपादक- विजेंद्र, प्रकाशक बोधि प्रकाशन जयपुर (राजस्थान) में कविताएं संकलित

पुरस्कार

भारतीय जन लेखक संघ के द्वितीय महासम्मेलन, पटना में कविता एवं आलोचना लेखन के योगदान के लिए सम्मानित

साहित्य परिषद्, गया से आलोक सम्मान पत्र प्राप्त

संप्रति : सहायक प्राध्यापक, भारतीय भाषा केंद्र, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया (बिहार), भारत

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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