अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर परिचर्चा आयोजित
राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तत्वावधान में विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता उर्दू सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. फिरोज मंसूरी ने बताया कि 18 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी ऐतिहासिक घोषणा को अपनाया गया है। यह ऐतिहासिक घोषणा विश्व भर के देशों को यह सुनिश्चित करने का आवाहन करती है कि समाज के हर अल्पसंख्यक समुदाय को सम्मान, सुरक्षा, समान अधिकार एवं समान अवसर प्राप्त हो। यह दिवस हमें सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और अधिक मजबूत करने की प्रेरणा देता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समन्वयक डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत, आपसी सौहार्द और भाईचारे की भावना, हमारी पहचान है। भारत सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के संकल्प के साथ अल्पसंख्यक समुदायों के सशक्तीकरण हेतु प्रतिबद्ध है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाएं अल्पसंख्यक समुदायों को अवसर और सम्मान के साथ आगे बढ़ाने में सहायक हैं।

मुख्य अतिथि एम. एड. विभागाध्यक्ष डॉ. एस. पी. सिंह भारत सदैव ने दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश दिया है। यहां हमेशा सभी लोग मिल-जुलकर रहते आए हैं। यहां किसी के साथ भी कोई भेदभाव नहीं होता है।

बीएड विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार ने कहा कि लोकतंत्र केवल बहुमत का शासन नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का तंत्र भी है। भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में अल्पसंख्यक अधिकारों का प्रश्न केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक महत्व भी रखता है।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शैलेश यादव ने कहा कि लोकतांत्रिक राज्य का कर्तव्य केवल अधिकारों की घोषणा करना नहीं, बल्कि उनके प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना भी है। इसके लिए आवश्यक है
इस अवसर पर शाहनवाज, सौरभ कुमार चौहान, तहसीन अख्तर आदि उपस्थित थे।














