स्थाई कुलपति ही है समाधान!
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तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में तत्कालीन कुलपति प्रो. रामाश्रय यादव का कार्यकाल विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण रहा। उनके प्रयासों से विश्वविद्यालय में कई नए कीर्तिमान रचे गए, जिस पर अलग से बहुत कुछ लिखा जा सकता है।
लेकिन कतिपय कारणों से वे हमेशा विवादों में भी घिरे रहे। खासकर फीस वृद्धि तथा शिक्षकों एवं कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्रवाइयों को लेकर उनका मुख्य विरोध हुआ। इस विरोध में न केवल विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का एक समूह, वरन् बड़े-बड़े राजनेता तथा सिविल सोसायटी के लोग भी शामिल रहे। उनके विरोध में गठित ‘शिक्षा बचाओ नागरिक मंच’ ने चरणबद्ध आंदोलन चलाया था और ‘पैसा दो-डिग्री लो’ पुस्तिका भी निकाली थी।
खैर, विभिन्न कारणों से प्रो. यादव ने अपना कार्यकाल पूरा होने के कुछ दिनों पहले ही इस्तीफा दे दिया और फिर विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलपति के रूप में प्रमंडलीय आयुक्त श्री अशोक चौहान को जिम्मेदारी दी गई।
इस बीच मैंने एक बार प्रमंडलीय आयुक्त सह कुलपति महोदय से उनके कार्यकाल कक्ष में मिलकर उनका एक छोटा-सा साक्षात्कार भी लिया था। उन्होंने क्या-क्या कहा था, वह अभी याद नहीं आ रहा है, लेकिन इतना जरूर है कि उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय में बहुत सारे कार्य ठप पर गए।
ऐसे में लोगों को प्रो. रामाश्रय यादव की कुछ ज्यादा ही याद आने लगी। यहां तक की प्रो. यादव के विरोधी रहे लोग भी उनकी तारीफ करते नजर आए और खासकर सभी लोगों को स्थाई कुलपति की आवश्यकता महसूस होने लगी।
उन्हीं दिनों मैंने एक दिन ‘दैनिक जागरण’ के मंगलवारीय साप्ताहिक फीचर ‘जागरण सीटी’ के लिए प्रो. रामाश्रय यादव के विरोधी गुट के नेता तत्कालीन विधान पार्षद डॉ. शायद प्रसाद सिंह से टेलीफोन पर बातचीत की थी, जो ‘स्थाई कुलपति ही है समाधान : डॉ. शारदा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। उस दौरान प्रायः सभी पक्षों के लोग मांग भी कर रहे थे कि विश्वविद्यालय को जल्द-से-जल्द स्थाई कुलपति मिले।
फिर लोगों की मांगें पूरी हुईं। स्थाई कुलपति प्रो. प्रेमा झा ने योगदान दिया।क्षकुछ लोग कड़क मिजाजी प्रो. रामाश्रय यादव के बाद केवल ‘नामरुप’ के आधार पर ही प्रो. प्रेमा झा को पाकर अपने आपको धन्य महसूस करने लगे। लेकिन प्रो. झा के कारनामे से विश्वविद्यालय में काफी अशांति रही।
आगे कुलपति प्रो. रमाशंकर दुबे तथा प्रतिकुलपति प्रो. अवध किशोर राय के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए, तो आज तक विश्वविद्यालय में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है।
हमारे द्वारा यहां एक विश्वविद्यालय का छोटा-सा विवरण दिया गया है। लेकिन ऐसा ही कमोवेश सभी विश्वविद्यालयों का हाल रहा है। विश्वविद्यालय में पुराने कुलपति जाते हैं- नए कुलपति आते हैं। लेकिन अधिकांश पुरानी समस्याएं बनी रहती हैं और कुछ नई समस्याएं भी जुड़ जाती हैं।
बहरहाल, हम इस अंतहीन सिलसिले को यहीं छोड़ते हुए आशा करते हैं कि स्थाई कुलपति विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक विकास में योगदान देंगे। विश्वविद्यालयों में नए कुलपति की बहाली सिर्फ सत्ता-परिवर्तन या नामरूप- परिवर्तन नहीं, वरन् व्यवस्था-परिवर्तन एवं गुणधर्म- परिवर्तन की दिशा में भी एक कारगर पहल साबित होगी!
बहुत-बहुत धन्यवाद।
-सुधांशु शेखर, मधेपुरा