राम बहादुर जी को पद्म भूषण
संपर्क छात्र जीवन से ही रहा। पुलिस सेवा में भी लगातार बना रहा। सेवानिवृत्ति के बाद भी यथावत है। वे हमेशा से मेरे जैसे लोगों के हीरो रहे हैं। १९७४ के बाद के भारत के इतिहास के हर महत्व पूर्ण मोड़ पर वे निर्णायक भूमिका में दिखायी देते हैं। बिहार छात्र / जेपी आंदोलन के प्रमुख शिल्पी, मीसा जैसे दमन कारी क़ानून के प्रथम बन्दी के साथ ही आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष के बाद, लोक सभा का चुनाव लड़ने के दबाव को नकारते हुए और राज्य सभा की सदस्यता को भी नकारते हुए पत्रकारिता को स्वीकार करना उनके जैसा व्यक्ति ही कर सकता है। पत्रकारिता के साथ राष्ट्र धर्म की साधना उनका आराध्य था।
तीन साल अरुणाचल में हिंदुस्तान समाचार के लिए काम करने के बाद जनसत्ता से प्रभाष जोशी जी के साथ नई शुरुआत। बीच में कुछ वर्ष राजेंद्र माथुर के साथ नव भारत टाइम्स के बाद सेवा निवृत्ति के ५८ वर्ष की आयु तक जन सत्ता के साथ। प्रभाष जी के साथ संबंधों के निभाने की मिशाल तथा साथ ही राष्ट्रवादी सरोकारों के साथ किसी प्रकार के समझौते से इंकार के कारण केवल समाचार संपादक के पद से सेवा निवृत्त हो जाना और प्रधान सम्पादक न बन पाने का कोई रंच मात्र भी पछतावा न होना केवल उन्ही के लिए सम्भव था।
विद्यार्थी परिषद के पुराने साथियों के बांबे अधिवेशन में खुले मंच से तत्कालीन प्रधान मंत्री वाजपेयी जी को अब तक का सबसे निकम्मा प्रधान मंत्री कह देना उन्ही के लिए संभव था। वाजपेयी जी ने उस अधिवेशन में मौजूद गोविंदाचार्य से उसका खुन्दक निकाला।
आडवाणी जी के निकट सलाहकार ग्रुप में होने के बावजूद जैन हवाला डायरी में उनके नाम को भी छापने से परहेज नहीं किया। आडवाणी जी ने उसके बाद उनके प्रति जो विद्वेष बनाया वह जब तक वे सक्रिय थे बनाये रखा।
उनकी पुस्तक मंजिल से ज़्यादा सफ़र और रहबरी के सवाल विश्वनाथ प्रसाद सिंह और चंद्रशेखर जी के राजनैतिक यात्रा वृतांत ही नहीं हैं, वे राम बहादुर जी के भी उस काल खंड में किए गए योगदान के बारे में भी काफ़ी कुछ कहते हैं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जब पूरे देश में वैमनस्यता और सम्बाद हीनता का स्तब्धकारी सन्नाटा था उसे चीरते हुए धुर दक्षिणपंथी से लेकर बाम पंथी विचारों के पूरे देश के महत्वपूर्ण लोगों की चार चार दिनों की सम्बाद गोष्ठी का उनके द्वारा किया गया आयोजन सन्नाटे को चीरने में अत्यधिक महत्वपूर्ण था। वृन्दावन, डुमस(सूरत) और भोड़सी संवादों में मैं पूरे समय रहा।
२०१४ के चुनाव के पहले अपने लेख में मोदी जी के नाम को राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए सबसे पहले आगे बढ़ाया।
तीन चार साल पहले मैं उनके साथ दिल्ली में कुलदीप नैयर के घर जा रहा था। रास्ते में एक कोठी की तरफ़ इसारा कर उन्होंने बताया कि काफ़ी पहले वे वहाँ माधव राव सिंधिया जी के विमान दुर्घटना में निधन के बाद श्रद्धांजलि अर्पित करने अन्दर जा रहे थे तो कई लोंगो के साथ भाजपा संगठन मंत्री नरेंद्र मोदी जी वापस लौट रहे थे। राय साहब को अलग किनारे ले जा कर बताया कि जिसके लिए राय साहब प्रयास कर रहे थे उसके पच्छ में भाजपा हाई कमान ने निर्णय ले लिया है । वह मोदी जी को गुजरात के मुख्य मंत्री के रूप में भेजने का निर्णय था।
२०१५ में उन्हें पद्म श्री दिया गया। वे स्वयं लेने नहीं गए। मंत्रालय के अधिकारी ने बाद में स्वयं उनके यहाँ पहुचा दिया। उन्हें पद्म श्री या पद्मभूषण सम्मान देकर और उनके द्वारा इसे स्वीकार कर उनके प्रतिष्ठा में कोई वृद्धि नहीं हुई है। वे उससे बहुत ऊपर हैं। वास्तव में उन्हें स्वीकार कर उन्होंने इन पुरस्कारों की गरिमा बढ़ाई है।
राम नारायण सिंह
सेवा निवृत्त पुलिस महा निदेशक।
फेसबुक वॉल से साभार।