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Sehat Samvad बुजुर्गों की स्वास्थ्य समस्याएं एवं समाधान विषयक सेहत संवाद कार्यक्रम आयोजित

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बुजुर्ग होना अभिशाप नहीं है : डा. फारूक अली

उम्र बढ़ना एक सहज प्रक्रिया है। हमारी उम्र बढ़नी तय है और हम उसे रोक नहीं सकते हैं। इसलिए उम्र बढ़ने को लेकर बेवजह तनाव नहीं लें, बल्कि इसे सहजता से स्वीकार करें।

यह बात जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति सह बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व प्रति कुलपति प्रो. (डाॅ.) फारूक अली ने कही।

वे सोमवार को बुजुर्गों की स्वास्थ्य समस्याएं एवं समाधान विषयक सेहत संवाद कार्यक्रम का उद्घाटन कर रहे थे। यह आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति, पटना के सौजन्य से संचालित सेहत केंद्र के तत्वावधान में किया गया।
*सोच को बदलना जरूरी*
उन्होंने कहा कि युवावस्था में ऊर्जा उफान पर होती है। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे ऊर्जा का क्षय होता है। बुढ़ापा आते-आते हमारी ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है और हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में बुढ़ापा में बीमारियों का बढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन हम अपनी सोच को बदलकर इससे होने वाली परेशानियों को कम कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि बुजुर्ग अपने आपको सक्रिय रखने का प्रयास करें। अपने अंदर के एकाकीपन से बाहर निकलें और जीवन में सामूहिकता को अपनाएं। साथ ही पीढ़ियों के अंतर को पाटते हुए नई पीढ़ी के साथ अपना तालमेल बनाने का प्रयास करें।
*राष्ट्र की धरोहर हैं बुजुर्ग*
उन्होंने कहा कि बुजुर्ग हमारे समाज एवं राष्ट्र की धरोहर हैं। इनकी सुविधाओं का ख्याल रखना हमारे सरकार, समाज एवं हम सबों की जिम्मेदारी है। हमें यह समझना होगा कि भारत में हम वृद्धाश्रम बनाकर बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते हैं।

*आठ प्रतिशत लोग हैं बुजुर्ग : डा. प्रियदर्शी*

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पंडित मदन मोहन मालवीय हास्पिटल, दिल्ली सरकार, दिल्ली में इमर्जेंसी मेडिकल यूनिट के इंचार्ज डा. एम. एस. प्रियदर्शी ने बताया कि भारत में 60 से अधिक उम्र के लोगों को बुजुर्ग माना जाता है। भारत में कुल आबादी का आठ प्रतिशत बुजुर्ग हैं। यहां लोगों की औसत आयु 70 है। इटली एवं जापान में इससे भी औसत आयु इससे भी अधिक है। इसलिए वहां बुजुर्गों की संख्या भी अधिक हैं। ये बुजुर्ग हमारे लिए बोझ नहीं हैं, बल्कि वे हमारी धरोहर हैं।

उन्होंने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ हमारी ऊर्जा कम होने लगती हैं और हमारे विभिन्न अंगों का क्षय होने लगता है। खासकर दिखना, सुनना एवं चलना कम हो जाता है और यादाश्त भी कम हो जाती हैं।
*सबसे अधिक बीमारी पड़ते हैं बुजुर्ग*
उन्होंने बताया कि बच्चे एवं बुजुर्ग सबसे अधिक बीमारी पड़ते हैं। जब बच्चा छोटा होता है, तो उसे अपने माता−पिता या किसी अन्य बड़े व्यक्ति की देखभाल की जरूरत होती है। ठीक उसी तरह, जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है, तो भी उसकी देखरेख के लिए किसी व्यस्क व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। हम बुजुर्गों से प्यार करें, उनका सम्मान करें और उन्हें किसी न किसी बहाने सक्रिय एवं खुश रखें।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली के पूर्व पीआई एवं पब्लिक हेल्थ इम्पावरमेंट एंड रिसर्च आर्गेनाइजेशन के सीईओ डाॅ. विनीत भार्गव ने कहा कि सेहत संवाद का आयोजन एक सराहनीय कदम है। इससे आम लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ. सुधांशु शेखर ने की।अतिथियों का स्वागत मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने किया। संचालन शोधार्थी सारंग तनय ने किया। तकनीकी पक्ष गौरव कुमार सिंह एवं सौरभ कुमार चौहान ने संभाला। स्वयं प्रिया एवं अन्य ने प्रश्न पुछकर चर्चा को जीवंत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।

इस अवसर पर डॉ. राकेश कुमार, डाॅ. बृजेश कुमार सिंह, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. देबाशीष, राजदीप कुमार, डेविड यादव, डॉ. मणिशंकर, हिमांशु शेखर, नीरज कुमार, चंदन कर्ण, पवन सिंह, डॉ. आरती झा, डॉ. मनोज कुमार, पल्लवी राय, राॅकी राज, गुलफशाह परवीन, नीरज कुमार, राजदीप कुमार, राजेश कुमार पाठक, गणेश, विवेक कुमार, जयश्री आदि उपस्थित थे

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।