प्रणय प्रियम्वद के लिए (जन्मदिन के बहाने)
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मैं करीब 5 वर्ष तक सक्रिय पत्रकारिता में रहा। उस दौरान कई वरिष्ठ सहकर्मियों से स्नेह एवं मार्गदर्शन मिला। प्रणय भाईजी (डॉ. प्रणय प्रियम्वद) उनमें सर्वप्रमुख हैं।
प्रणय भाईजी के बारे में लिखने को कई बातें हैं।
1. सर्वप्रथम मुझे याद आ रहा है कि एक बार खटहरी सायकिल पर मुझे बिठा कर ये जागरण आफिस से अपने भीखनपुर वाले डेरा पर ले गये थे।
2. वे भागलपुर में ‘दैनिक जागरण’ के साप्ताहिक आयोजन ‘जागरण सिटी’ के प्रभारी थे। संपादक जी द्वारा ‘साहित्य-वाहित्य’ (तत्कालीन संपादक के शब्द) छापने के ‘जुर्म’ में प्रायः प्रत्येक सप्ताह डान्ट खाने के बावजूद लगे रहते थे। खुद भी काफी सक्रिय रहते थे और हम लोगों को भी ‘टाक्स’ देते रहते थे।
3. उनके सहयोग से मेरा फीचर प्रमुखता से महिने में 2-3 बार छापता था। इस कारण एक बार एक मित्र ने संपादक जी से एक बेतुकी शिकायत कर दी थी कि मैं प्रणय प्रियम्बद की जाति का हूँ, उनका रिश्तेदार हूँ।
4. खास बात यह कि मैं 10-11 वर्ष पहले सक्रिय पत्रकारिता छोड़ चुका हूँ और प्रणय भाईजी के भागलपुर छोड़े भी दसाधिक वर्ष हो गये। लेकिन हमारे संबंधों की जीवंतता दिन प्रतिदिन बढी ही है।
5. मेरा सौभाग्य है कि भागलपुर के बड़े-बड़े प्रोफेसर एवं साहित्यकार के क्वाटर एवं घर को छोड़कर मेरी ‘कुटिया’ में रूकते हैं। (पुराना कमरा ‘कुटिया’ ही था। नया थोड़ा ठीक-ठाक है।)
6. मुझे यह बताते हुए अपने आपपे शर्म आ रही है कि कमरे में आने के साथ प्रणय भैया सर्वप्रथम मेरे बेड से किताबें हटाते हैं और फिर रूम में झाड़ू देते हैं।
7. प्रणय भाईजी जब भी आते हैं मेरे लिए घर (जमालपुर) से रोटी, सब्जी एवं मिठाईयाँ लाते हैं।
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।
27.05.2017