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NMM ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं भारतीय लिपियां

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*ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं भारतीय लिपियां*

भारत में प्राचीन काल से ही विभिन्न लिपियों का प्रयोग होता रहा है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से संबंधित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि, सिन्धु-सरस्वती लिपि या हड़प्पा लिपि भी कहते हैं। लेकिन अभी हमें इस लिपि के संबंध में ज्यादा कुछ ज्ञात नहीं है। भारत की ज्ञात लिपियों में ब्राह्मी सबसे प्राचीन है, जिससे प्रायः सभी भारतीय लिपियां विकसित हुई हैं।

यह बात रमेश झा महिला महाविद्यालय, सहरसा में मैथिली के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. कृष्ण मोहन ठाकुर ने कही। वे सोमवार को ‘पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में अपना व्याख्यान दे रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*ब्राह्मी लिपि में हैं अशोक के शिलालेख*
उन्होंने बताया कि प्राचीन ब्राह्मी लिपि का उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाए गए शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते हैं। ब्राह्मी से ही गुप्त लिपि, शारदा लिपि, कुटिल लिपि, नागरी लिपि, देवनागरी लिपि और अन्य दक्षिण एशियाई, दक्षिण-पूर्व एशियाई, तिब्बती तथा कोरियाई लिपि का विकास हुआ है।

*सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली लिपि है देवनागरी*
उन्होंने बताया कि प्राचीन ब्राह्मी से विकसित हुई देवनागरी विश्व की सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली लिपियों में से एक है। देवनागरी में ही संस्कृत, पालि, हिन्दी, मैथिली, मराठी, कोंकणी, सिंधी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, गढ़वाली, बोडो, संथाली, अंगिका, मगही, भोजपुरी आदि भाषाएं लिखी जाती हैं।

*मिथिला में रही है तिरहुता लिपि की अपनी समृद्ध परंपरा*

उन्होंने कहा कि भाषा के भाव को भी सुरक्षित रखने के लिए लिपि का संरक्षण जरूरी है। मिथिला में तिरहुता लिपि की अपनी समृद्ध परंपरा रही है। लेकिन वर्तमान समय में यह लिपि हाशिए पर धकेल दी गई है। अतः आज हमें अपनी लिपि को बचाने के लिए आगे आने की जरूरत है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर ने विशेषज्ञ वक्ता को अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया।

कार्यक्रम में पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. संगीत कुमार, त्रिलोकनाथ झा, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, अमोल यादव, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, अरविंद विश्वास, सौरभ कुमार चौहान, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, रश्मि कुमारी,
मधु कुमारी, लूसी कुमारी, ब्यूटी कुमारी, अंजली कुमारी आदि उपस्थित थे।

*कुलपति भी देंगे व्याख्यान*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला में एक दिन कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण भी व्याख्यान देंगे। इनके अलावा सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री एवं ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की डॉ. वीणा कुमारी से भी व्याख्यान देने के लिए अनुरोध किया गया है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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