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NMM अप्रकाशित पांडुलिपियों का संपादन एवं प्रकाशन जरूरी : डॉ. भवनाथ झा

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*अप्रकाशित पांडुलिपियों का संपादन एवं प्रकाशन जरूरी : डॉ. भवनाथ झा*

हमारे देश भारत में पांडुलिपियों का खजाना है। हमें उस खजाने से ज्ञान की संपदा को बाहर निकालना है। आज भी भारत की कई पांडुलिपियां अप्रकाशित पड़ी हुई हैं। इन अप्रकाशित पांडुलिपियों का संपादन एवं प्रकाशन जरूरी है। यह दायित्व हमारी पीढ़ी के कंधों पर है। यदि हम अपने जीवन में किसी एक अप्रकाशित पांडुलिपि का भी संपादन-प्रकाशन कर दें, तो हमारा जीवन सार्थक माना जाएगा।

यह बात विशेषज्ञ वक्ता डॉ. भवनाथ झा (पटना) ने कही। वे ‘पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*पांडुलिपियों का संरक्षण एवं प्रकाशन हमारा राष्ट्रीय दायित्व*
उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों में भारतीय सभ्यता-संस्कृति, साहित्य-कला, दर्शन-विज्ञान तथा भारत की बहुलवादी विश्वास प्रणालियों का सदियों से उपार्जित ज्ञान है, जिनका मूल्य ऐतिहासिक अभिलेखों से भी अधिक है। पांडुलिपियों में ज्ञान-विज्ञान का संग्रह तो है ही उसके साथ मनीषियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अनुभव का संकलन भी है। अतः पांडुलिपियों का संरक्षण एवं प्रकाशन हमारा राष्ट्रीय दायित्व है।

*प्रशिक्षण, जागरूकता तथा आर्थिक सहायता प्रदान करता है मिशन*

उन्होंने बताया कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संचालित राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन वर्ष 2003 से पांडुलिपियों के संरक्षण की दिशा में व्यवस्थित रूप से कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य देश-विदेश में उपलब्ध भारतीय पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण तथा सूचीकरण मिशन का उद्देश्य देश-विदेश में उपलब्ध भारतीय पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण तथा सूचीकरण कर एक राष्ट्रीय पांडुलिपि सूची तैयार करना है। यह पांडुलिपियों के संरक्षण तथा परिरक्षण के लिए प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करता है और आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है।

*हो चुका है आठ करोड़ पेज का डिजिटलाइजेशन*

उन्होंने बताया कि मिशन विश्‍वविद्यालयों, पुस्‍तकालयों, मंदिरों, मठों, मदरसों, विहारों और निजी संग्रहों में रखी पांडुलिपियों के आंकड़ों का संग्रहण करता है। इसके माध्यम से आठ करोड़ पेज का डिजिटलाइजेशन हो चुका है और अब तक लगभग एक सौ बीस पांडुलिपियों का प्रकाशन किया गया है।

*बीएनएमयू में बिहार का पहला तीस दिवसीय कार्यशाला*

उन्होंने बताया कि मिशन के माध्यम से देश भर में पांडुलिपि-संरक्षण से संबंधित सेमिनारों एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। इसी कड़ी में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में 30 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हो रहा है, जो बिहार का पहला तीस दिवसीय कार्यशाला है। यह इस क्षेत्र के लिए गौरव की बात है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. संगीत कुमार, अरविंद विश्वास, सौरभ कुमार चौहान, त्रिलोकनाथ झा, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, अमोल यादव, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, ब्यूटी कुमारी, अंजली कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, रश्मि कुमारी, मधु कुमारी, लूसी कुमारी आदि उपस्थित थे।

*होगा क्षेत्र भ्रमण*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को कंदाहा सूर्य मंदिर एवं मटेश्वर स्थान का भ्रमण कराया जाएगा। इसमें व्याख्यान देने के लिए कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण, प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह, पूर्व कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी, सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री एवं ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की डॉ. वीणा कुमारी से भी अनुरोध किया गया है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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