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ICPR थीमेटिक फिलासोफिकल प्रतियोगिता आयोजित। सभी के लिए कल्याणकारी है गीता : पूर्व कुलपति

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*थीमेटिक फिलासोफिकल प्रतियोगिता आयोजित*

*सभी के लिए कल्याणकारी है गीता : पूर्व कुलपति*

श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन-ग्रंथ भी है। इसमें सहज जीवन जीने की कला बताई गई है।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के पूर्व कुलपति
प्रो. (डॉ.) ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य से संबंधित थीमेटिक फिलासफिकल प्रतियोगिता का उद्घाटन कर रहे थे। यह कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली के सौजन्य से किया गया।

उन्होंने कहा कि गीता पूरी दुनिया के लिए एक कल्याणकारी ग्रंथ है। इसमें तनाव-प्रबंधन, समय-प्रबंधन, जीवन-प्रबंधन आदि के सूत्र मौजूद हैं। इन सूत्रों को जीवन में उतारकर हम आधुनिक जीवन की कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

*निष्काम कर्म का संदेश है गीता*

उन्होंने बताया कि युद्धभूमि में अपने सामने अपने गुरु, भाई और सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन को विषाद हो गया। उसने सोचा कि इन लोग को मारकर राज्य प्राप्त करने का क्या औचित्य है ? ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्म का संदेश दिया और उसके विषाद को दूर कर उसे स्वधर्म के मार्ग पर प्रवृत्त कराया।

उन्होंने कहा कि गीता का संदेश है कि हमारा अधिकार कर्म करने में ही है, उसके फलों में नहीं है। इसलिए हमें कर्मफल की चिंता किए बिना निष्कामभाव से कर्म करना चाहिए। हम कर्म में अशक्त नहीं हों और न ही अकर्मण्य बनें।

*जीवन-दर्शन है गीता*
मुख्य अतिथि दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष
शोभा कांत कुमार ने कहा कि ने कहा कि गीता का प्रत्येक श्लोक (मंत्र) में एक गूढ़ जीवन-दर्शन छुपा हुआ है। हमें इसके गूढ़ार्थ को समझकर अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि गीता किसी खास जाति या धर्म का ग्रंथ नहीं है। इसका संदेश सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक है।

*मनोवैज्ञानिक ग्रंथ है गीता*
कार्यक्रम की अध्यक्षता टी. पी. कॉलेज, मधेपुरा प्रधानाचार्य
प्रो. (डॉ.) कैलाश प्रसाद ने कहा कि भगवद्गीता एक मनोवैज्ञानिक ग्रंथ है। इसमें मानव मन की विभिन्न अवस्थाओं को भलीभांति चित्रित किया गया है। इसके संदेशों पर चलकर हम मानव जीवन की कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

कार्यक्रम का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। अतिथियों का स्वागत मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन अतिथि व्याख्याता डॉ. राकेश कुमार ने किया।

कार्यक्रम के आयोजन में अर्थपाल डॉ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डॉ. गौरव कुमार श्रीवास्तव, विनय कुमार, सारंग तनय, सुमन कुमार आदि ने सहयोग किया

*श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य से संबंधित एक थीम*

प्रतियोगिता में बाल गंगाधर तिलक की पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य से संबंधित एक थीम दिया गया। उस थीम के आलोक में एक-एक अंक के कुल दस प्रश्न पुछे गए। प्रश्न इस प्रकार हैं- किस ग्रंथ को हमारे सभी धर्मग्रंथों में एक तेजस्वी हीरा माना गया है ? (श्रीमद्भगवद्गीता) किस ग्रंथ में समस्त वैदिक धर्म का सार निहित है ? (श्रीमद्भगवद्गीता) श्रीमद्भगवद्गीता के रचयिता कौन है? (वेद व्यास) श्रीमद्भगवद्गीता में कुल कितने श्लोक हैं ? (सात सौ) श्रीमद्भगवद्गीता में कुल कितने अध्याय हैं ? (अठारह) श्रीमद्भगवद्गीता किस महाकाव्य का अंश है ? (महाभारत)
श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा नाम क्या है ? (श्रीमद्भगवद्गीता-उपनिषद्) श्रीमद्भगवद्गीता की रचना किस काल में हुई है ? (स्मृतिकाल) श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य के लेखक कौन हैं ? (बाल गंगाधर तिलक) श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य में किस योग पर जोर है ? (कर्मयोग)।

*सौरभ कुमार चौहान प्रथम*

प्रतियोगिता में सौरभ कुमार चौहान (9 अंक), मुकेश कुमार शर्मा (8 अंक) एवं पवन कुमार (8 अंक) ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किया। प्रतियोगिता में दिव्या भारती, गुरूदेव कुमार, मो. रजी, सुनैना कुमारी, काजल कुमारी, पूजा कुमारी, नासरिन प्रवीण, शहनाज प्रवीण, जूही कुमारी, श्याम किशोर, मनीषा भारती, रिंकी कुमारी, श्वेता कुमारी, खुशबू कुमारी, एकता कुमारी, पल्लवी कुमारी, डिंपी कुमारी, सोनी भारती, सरिता कुमारी, निशा कुमारी, शक्ति सागर, पूजा मेहता, संदीप कुमार, प्रेरणा भारती, सैयद जिउल, अंजलि कुमारी, प्रवेश कुमार एवं मो. हुमायूं रासिद आदि ने भाग लिया।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।