Search
Close this search box.

BVP डॉ. विजयश्री की स्मृति में शताब्दी वर्ष में भारत की आंतरिक एवं वैश्विक स्थित विषयक व्याख्यानमाला का आयोजन

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

व्याख्यानमाला का आयोजन
—-
जे. डी. वीमेंस कॉलेज, पटना में रविवार को भारत विकास परिषद् के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध दार्शनिक प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा की धर्मपत्नी डॉ. विजयश्री की स्मृति में शताब्दी वर्ष में भारत की आंतरिक एवं वैश्विक स्थित व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति प्रो. अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि देश सामाजिक एवं राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। अलगाववादी ताकतें देश को तोड़ने का षड्यंत्र कर रही हैं। ऐसे में हम सबों को अपना राष्ट्र-धर्म निभाने के लिए आगे आना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इतिहास रटने की चीज नहीं है। इतिहास से प्रेरणा लेने की जरूरत है। हम परंपरा को जीएं, उसका अनुभव करें और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता समाजसेवी-साहित्यकार एवं पूर्व सांसद (राज्यसभा) रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने कहा कि देश का विकास शासक के चाल, चरित्र एवं चेहरा पर निर्भर करता है। अभी देश की आजादी के 75 वर्ष हो गए हैं। आने वाले 25 वर्षों में शासक का जो काम होगा, उसी से शताब्दी वर्ष में भारत की आंतरिक एवं वैश्विक स्थित तय होगी।


उन्होंने कहा कि भूत हिस्ट्री है एवं भविष्य मिस्ट्री है, वर्तमान ही सबसे महत्वपूर्ण है। अतः हमें वर्तमान को संवारने पर ध्यान देना चाहिए।

मुख्य अतिथि आईसीपीआर के पूर्व सदस्य सचिव प्रो. (डॉ.) गोदावरीश मिश्र ने कहा कि साम्राज्यवादी व्याख्याकारों ने भारत के धर्म, दर्शन एवं परंपरा की गलत व्याख्या की और हमारे ग्रंथों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा कि आज हम भारतीय अपनी सभ्यता- संस्कृति को भूल गए हैं। आज के भारतीय वास्तव में भारत में रहने वाले विदेशी की तरह हैं।

मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो. एस. पी. शाही ने कहा कि भारतीय संस्कृति में हम पुरखों का सम्मान करते हैं। पुरखों पर बेवजह सवाल उठाना भारतीय परंपरा नहीं है।

उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में पुण्यात्माओं की स्मृति को संजोकर रखा जाता है। अपने पुरखों को याद करना राष्ट्रीयता का एक आवश्यक कार्य है।

विषय प्रवेश कराते हुए पद्मश्री बिमल जैन ने कहा कि विभिन्न कारणों से हमारा भारत लगातार खंडित होता रहा है। दुर्भाग्यवश हमारे देश से कई भूभाग अलग होते चले गए।

उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में भारत के मुस्लिम बहुल होने की आशंका है। पता नहीं शताब्दी वर्ष में क्या होगा ?

रामकृष्ण आश्रम, मुजफ्फरपुर के सचिव भावात्मानंद जी महाराज ने कहा कि भारत में विविधताओं के बीच भी एकत्व का भाव कायम है। इसी भाव के कारण तमाम झंझावातों के बावजूद बचा हुआ है। भारतीय राष्ट्रवाद विश्व मानवता का पोषक है।

कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर डॉ. वीणा अमृत एवं प्रोफेसर डॉ. वीणा नंदनी मेहता ने किया।


धन्यवाद ज्ञापन आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रमेशचन्द्र सिन्हा ने किया। परिषद् के अध्यक्ष विवेक माथुर, भगवान गुप्ता ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति प्रो. के. सी. सिन्हा, दर्शनशास्त्र विभाग पटना विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एन. पी. तिवारी, वर्तमान अध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार सिंह, प्रधानाचार्य डॉ. अभय कुमार सिंह, दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह, उपाध्यक्ष प्रो. शैलेश कुमार सिंह, महासचिव डॉ. श्यामल किशोर, संयुक्त सचिव प्रो. किस्मत कुमार सिंह, मीडिया प्रभारी डॉ. सुधांशु शेखर, डॉ. मुकेश कुमार चौरसिया, डॉ. नीरज प्रकाश, पवन केजरीवाल, आदि उपस्थित थे।‌‌

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।