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BNMU सच्चे समाजवादी संत थे भूपेंद्र नारायण मंडल : कुलपति

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*सच्चे समाजवादी संत थे भूपेंद्र नारायण मंडल : कुलपति*

भूपेंद्र नारायण मंडल (1904-1975) एक अग्रणी समाजवादी विचारक एवं अद्वितीय जननेता थे। उनका जीवन सादगी, सच्चाई एवं समता की मिशाल है। हम उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करें, यही हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

यह बात कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण ने कही। वे रविवार को केंद्रीय पुस्तकालय में आयोजित भूपेंद्र नारायण मंडल स्मृति समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे।

*भूपेंद्र बाबू की कथनी एवं करनी में थी समानता*

कुलपति ने कहा कि भूपेंद्र बाबू सच्चे समाजवादी संत थे। उनका मन, वचन एवं कर्म तीनों समाजवाद से ओतप्रोत था। उनकी कथनी एवं करनी में समानता थी। वे आम लोगों के दुख-दर्द को पहचानते थे और हमेशा उसे दूर करने के लिए प्रयासरत रहते थे।

*होगा राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन*

उन्होंने कहा कि भूपेंद्र बाबू के जीवन के अनछूए पहलुओं को उजागर करने की जरूरत है। इसके लिए भूपेंद्र नारायण मंडल से संबंधित शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है और आगे भूपेंद्र नारायण मंडल : जीवन एवं दर्शन विषयक राष्ट्रीय सेमिनार के आयोजन की योजना है।

*विश्वविद्यालय के विकास में एकजुट होकर करें कार्य*

उन्होंने कहा कि हम सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी पूर्वक पालन करेंगे, तो भूपेंद्र बाबू की आत्मा को शांति मिलेगी। इसलिए हम सब विश्वविद्यालय के विकास में एकजुट होकर कार्य करें और भूपेंद्र नारायण मंडल के सपनों को साकार करने में सकारात्मक भूमिका निभाएं।

*वंचित वर्ग को नहीं मिल पा रहा कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ : प्रति कुलपति*

प्रति कुलपति *डाॅ. आभा सिंह* ने कहा कि भूपेंद्र बाबू का स्मृति समारोह आत्ममूल्यांकन का अवसर है। हम सोचें कि हमारा विश्वविद्यालय आज कहां है और हम इस विश्वविद्यालय के लिए क्या कर रहे हैं ?

उन्होंने कहा कि भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है। आम लोगों के उत्थान के लिए हमारे संविधान में कई प्रावधान किए गए हैं और इसके लिए हमारी सरकारें कई योजनाएं भी चला रही हैं। लेकिन दुख की बात है कि आज भी वंचित वर्ग को कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।

*जाति एवं संप्रदाय से ऊपर उठ चुके थे भूपेंद्र नारायण मंडल*

कुलसचिव *डाॅ. मिहिर कुमार ठाकुर* ने कहा कि भूपेंद्र बाबू जाति एवं संप्रदाय से ऊपर उठ चुके थे। उन्होंने जमीनदार परिवार में जन्म लेने के बावजूद फकीरी का जीवन जीया।

*यह धरती धन्य है, जहां भूपेंद्र बाबू ने लिया जन्म*

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला के डॉ. उत्तम सिंह ने कहा कि भूपेंद्र बाबू का पूरे देश में नाम है। यह धरती धन्य है, जहां उन्होंने जन्म लिया है।

विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री ने कहा कि भूपेंद्र बाबू समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलते थे।

स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, पश्चिमी परिसर, सहरसा के डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि भूपेंद्र बाबू अपने राजनीतिक विरोधियों का भी सम्मान करते थे।

विद्वत परिषद् की सदस्या प्रज्ञा प्रसाद ने कहा कि भूपेंद्र बाबू ने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने विश्वविद्यालय को महाविद्यालय की स्थापना के निमित्त हुई पहली बैठक की कार्रवाई की प्रति समर्पित की, जिसमें भूपेंद्र बाबू का भी हस्ताक्षर है।

 

कुलपति के निजी सहायक शंभु नारायण यादव ने कहा कि विश्वविद्यालय में भूपेंद्र बाबू के सपनों के अनुरूप कार्य होना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी *डॉ. सुधांशु शेखर* ने किया। धन्यवाद ज्ञापन केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार ने किया। अंत में दो मिनट का मौन रखकर भूपेंद्र बाबू को श्रद्धांजलि दी गईं।

इस अवसर पर समाजसेवी हरेराम भगत, सीनेटर रंजन कुमार, माधव कुमार, सारंग तनय, सोनू कुमार, किशोर कुमार, नीतीश कुमार, सौरभ कुमार चौहान, राजेश रंजन, अमरेश कुमार अमर, आमोद आनंद, निखिल कुमार, अरमान अली, मधु कुमारी आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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