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BNMU मानव जीवन में नैतिक मूल्यों का महत्व विषयकव्याख्यान का आयोजन  —– दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा देता है दर्शन : एन. पी. तिवारी

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व्याख्यान का आयोजन

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दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा देता है दर्शन : एन. पी. तिवारी

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भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के शैक्षणिक परिसर अवस्थित

विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग में मंगलवार को मानव जीवन में नैतिक मूल्यों का महत्व विषयक व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसके मुख्य वक्ता दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. नरेश प्रसाद तिवारी ने कहा कि प्रायः सभी मनुष्य सुख चाहते हैं। यदि सभी लोग सिर्फ अपने सुख की ही कामना करने लगेंगे, तो मानव जीवन मुश्किल हो जाएगा। अतः मात्र व्यक्तिगत सुख की प्राप्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। अतः सच्चा दर्शन हमें दूसरों के लिए जीना सिखाता है।

*भारतीय दर्शन में संपूर्ण जगत की चिंता*

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सर्वेभवन्तु सुखिन: के आदर्शों पर आधारित है। इसमें सभी मनुष्यों एवं संपूर्ण चराचर जगत के सुख की कामना की गई है। इसमें समाज एवं राष्ट्र के कल्याणार्थ आपने व्यक्तिगत सुख एवं स्वार्थ के त्याग की शिक्षा दी गई है।

 

उन्होंने कहा कि भारतीय नैतिक मूल्य हमें परोपकार के लिए प्रेरित करते हैं। नैतिक मूल्यों के कारण ही लोग दूसरों के सुख के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों को त्याग देते हैं। माँ अपने बच्चों के लिए त्याग करती हैं। सैनिक अपने देशवासियों की रक्षा हेतु खुद असह्य दुःख झेलते हैं।

*नैतिक मूल्यों पर आधारित है मानव जीवन*

 

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि मानव जीवन मूल्यों पर आधारित है। हम मूल्यों के कारण ही जीवित हैं और मूल्यों पर ही पूरी धरती टिकी है। इन मूल्यों के बगैर मानव-जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि हमारा प्राचीन भारतीय दर्शन नैतिक मूल्यों का खजाना है। इसमें दर्शन, योग, आयुर्वेद, साहित्य, संस्कृति, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि विषयों पर प्रचुर मात्रा में ज्ञान भरा पड़ा है। हमें भारतीय ग्रंथों में उपलब्ध ज्ञान पर विशेष शोध की आवश्यकता है। युवाओं को हमारी समृद्ध संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। हम ऐसा कर सकेंगे, तो पुनः दुनिया में हमारे ज्ञान-विज्ञान की विजय पताका फहरेगी और हम पुनः विश्वगुरु बनकर उभरेंगे।

उन्होंने कहा कि आज पश्चिमी जगत में भौतिकवाद का प्रकोप भारत से अधिक है। वहां परिवार एवं समाज टूट रहा है और लोग निराशा एवं हताशा में जीने को मजबूर हैं। ऐसे में दुनिया के सभी देशों के लोग भौतिकवाद से त्राण पाने के लिए और शांति की खोज में भारत की ओर आता रहा है। अतः हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपनी नैतिक विरासत को संरक्षित एवं संवर्धित करें और उसे अपने दुनिया के सामने लाएं।

*अंतरात्मा की आवाज को सुनें*

इस अवसर पर मुख्य अतिथि मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. आर. के. मल्लिक ने कहा कि नैतिक मूल्य समय एवं स्थान के हिसाब से बदलते रहते हैं। लेकिन ये मानव जीवन के लिए हमेशा प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को हमेशा अपने जीवन में नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए और अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनकर ही काम करना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि निदेशक (आईक्यूएसी) प्रो. नरेश कुमार ने कहा कि मानवीय मूल्य ही हमें पशुओं से अलग करते हैं। यदि मानव जीवन में नैतिक मूल्य नहीं होगा, तो मनुष्य पशु हो जाएगा।

सम्मानित अतिथि हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा ने कहा कि हमें जीवन में सकारात्मक होना चाहिए। बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों को जीवन में अपनाना चाहिए।

समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. राणा सुनील सिंह ने कहा कि नैतिकता जीवन एवं जगत के सभी आयामों से जुड़ा है। हमारे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी क्षेत्रों में नैतिकता की जरूरत है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने की। विभागाध्यक्ष ने बताया कि दर्शनशास्त्र विभाग शैक्षणिक रूप से काफी सक्रिय रहा है। आगे इसके समग्र शैक्षणिक उन्नयन हेतु हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

 

इसके पूर्व अतिथियों को अंगवस्त्रम् एवं डायरी भेंटकर सम्मानित किया गया।संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर विनय कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन अतिथि व्याख्याता डॉ. कुमार ऋषभ ने किया।

इस अवसर पर एम. एड. विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एस. पी. सिंह, बी. एड. विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. योगेश पांडेय, डॉ. मोनिका, डॉ. अजय कुमार, ले. गुड्डु कुमार, डॉ. शशांक मिश्र, डॉ. पूजा गुप्ता, डॉ. मोहित गुप्ता, डॉ. राजकुमार, सुपेन्द्र कुमार सुमन आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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