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BNMU बीएनएमयू : 18 स्नातकोत्तर विभागों को मिली स्वीकृति

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बीएनएमयू : 18 स्नातकोत्तर विभागों को मिली स्वीकृति
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बी. एन. मण्डल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में कुल 18 विषयों
में स्नातकोत्तर विभागों की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की गई है। इनमें समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, हिंदी, अंग्रेजी, दर्शनशास्त्र, उर्दू, गणित, संस्कृत, मैथिली, फारसी, सांख्यिकी, भूगर्भशास्त्र, संगीत, पीएमआईआर, ग्रामीण अर्थशास्त्र, प्राचीन इतिहास एवं मानवशास्त्र के नाम शामिल हैं।

अब हो गए हैं 27 स्नातकोत्तर विभाग

स्नातकोत्तर विभाग
उप कुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि विश्वविद्यालय में पूर्व से भौतिकी, रसायनशास्त्र, जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान, गृह विज्ञान, भूगोल एवं वाणिज्य छः विभाग स्वीकृत थे। संप्रति अठारह विभागों की स्वीकृति के साथ अब विश्वविद्यालय में अब 27 स्नातकोत्तर विभाग हो गए हैं।

162 पदों के सृजन को भी मिली स्वीकृति

उन्होंने बताया कि नव स्वीकृत अठारह विभागों के लिए कुल 162 पदों के सृजन की भी स्वीकृति प्रदान की गई है। इनमें शिक्षकों के कुल 126 और शिक्षकेतरकर्मियों के 36 पद शामिल हैं। प्रत्येक विभाग के लिए एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर एवं चार असिस्टेंट प्रोफेसर और एक-एक निम्न वर्गीय लिपिक एवं पुस्तकालय सहायक के पद सृजित किए गए हैं। इसके लिए कुल इक्कीस करोड़ सत्तर लाख एक्यासी हजार अस्सी रुपए मात्र वार्षिक व्ययभार संभावित है।

उन्होंने बताया कि इस संदर्भ में बिहार सरकार के संयुक्त सचिव संजय कुमार ने महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी), बिहार को पत्र प्रेषित किया है और विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. के. पी. रमण एवं कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर को भी उसकी प्रति उपलब्ध कराई है।

कुलपति ने जताई प्रसन्नता

कुलपति प्रो. आर. के. पी. रमण ने बीएनएमयू में 18 स्नातकोत्तर विभागों की स्वीकृति और उसमें पदसृजन पर प्रसन्नता व्यक्त की है और इसके लिए बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव, उर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव एवं शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर के प्रति आभार व्यक्त किया है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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