Search
Close this search box.

BNMU दीक्षांत समारोह की तैयारियां जारी* *सभी समितियों की जिम्मेदारी तय। 18 जुलाई तक जमा होगा आवेदन।

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

*दीक्षांत समारोह की तैयारियां जारी*

*सभी समितियों की जिम्मेदारी तय*
*18 जुलाई तक जमा होगा आवेदन*

दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय का एक महत्वपूर्ण पर्व है। हम सबों को मिलकर इस पर्व को शानदार एवं यादगार बनाना है।

यह बात बीएनएमयू के कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण ने कही। वे शनिवार को दीक्षांत समारोह को लेकर गठित सभी समितियों के संयोजकों एवं सचिवों की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।

कुलपति ने विभिन्न समितियों के सभी सदस्यों को मुस्तैदी से कार्य करने का निदेश दिया। साथ ही संयोजक एवं सचिव को निदेशित किया कि उन्हें प्रत्येक दूसरे दिन आयोजित बैठक में उन्हें प्रगति रिपोर्ट दें।

*विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात*
कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय का चौथा दीक्षांत समारोह आगामी तीन अगस्त को निर्धारित है। इसमें राज्यपाल सह कुलाधिपति फागू चौहान का शुभागमन होगा। यह पूरे विश्वविद्यालय एवं इस क्षेत्र के लिए भी गौरव की बात है।

*होगा शानदार स्वागत*
बैठक में समारोह को लेकर गठित विभिन्न समितियों ने अपना-अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। स्वागत समिति के संयोजक सह डीएसडब्ल्यू डॉ. पवन कुमार ने बताया कि समिति की एक बैठक हो चुकी है। सभी अतिथियों के शानदार स्वागत की व्यवस्था की जाएगी। जगह-जगह तोरणद्वार लगाया जाएगा।

*प्रतिभागियों के लिए दीक्षांत परिधान निर्धारित*
एकेडमिक कास्ट्यूम कमिटि के संयोजक सह अकादमिक निदेशक डॉ. एम. आई. रहमान ने बताया कि समिति के कार्यों की रूपरेखा तय कर ली गई है।

उन्होंने बताया कि अतिथियों एवं प्रतिभागियों के लिए दीक्षांत परिधान निर्धारित है। सभी अतिथियों एवं सभी प्रतिभागियों को पीला मालविया पगड़ी, लाल बॉडर वाला पीला अंगवस्त्रम्, विश्वविद्यालय के मोनोग्राम के साथ विश्वविद्यालय द्वारा निर्गत किया जाएगा। छात्रों को खादी कपड़े में सफेद (उजला) कुर्त्ता एवं पजामा या उजली धोती एवं उजला कुर्त्ता स्वयं बनाना है। छात्राओं के लिए खादी सलवार (उजला) लेमन येलो कुर्ता या खादी की साड़ी लाल बॉडर के साथ, लाल ब्लॉज स्वयं बनवाना है।

*लगेगी मधुबनी पेंटिंग*
कार्यक्रम प्रबंधन समिति के संयोजक सह कुलानुशासक डॉ. विश्वनाथ विवेका ने बताया कि गुरुवार को समिति की बैठक में दीक्षा मंच पर मधुबनी पेंटिंग लगाने सहित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।

*स्नातकोत्तर एवं पीएचडी वालों को मिलेगी उपाधि*
परीक्षा नियंत्रक प्रो. आर. पी. राजेश ने बताया कि शुक्रवार को उनकी अध्यक्षता में परीक्षा विभाग की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई।

उन्होंने बताया कि चतुर्थ दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर सत्र 2016-18 एवं 2017-19, एमडी एवं एमएस. 2020 (i), एमएलआईएस सत्र 2019-20, एमएड 2017-19, 2018-20 एवं 2019-21 तथा 14.12.2019 से अद्यतन पीएच. डी. डिग्री/उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र/उपाधि वितरित की जाएगी।

*18 जुलाई तक होगा आवेदन*
जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि सभी प्रमुख अखबारों में दीक्षांत समारोह से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित कराया जा चुका है। समारोह में भाग लेने को इच्छुक विद्यार्थी विहित आवेदन प्रपत्र समस्त शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की छायाप्रति के साथ संबंधित विभाग/महाविद्यालय से अग्रसारित कराकर 18 जुलाई तक निर्धारित शुल्क अदा करते हुए विश्वविद्यालय शुल्क काउंटर पर जमा करा सकते हैं। एमए, एमएससी एवं एमकॉम हेतु 12 सौ, एमएलआईएस एवं एमएड हेतु 15 सौ, पीएचडी को दो हजार तथा एमएस एवं एमडी हेतु चार हजार शुल्क निर्धारित किया गया है।

इस अवसर पर सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. राजकुमार सिंह, विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. नवीन कुमार, कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री, महाविद्यालय निरीक्षक विज्ञान डॉ. भूपेंद्र प्रसाद सिंह, सीनेटर डॉ. नरेश कुमार, क्रीड़ा विभाग के उपसचिव डॉ. शंकर कुमार मिश्र, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर आदि उपस्थित थे।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।