*कुलपति ने किया सिंहेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना*
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बीएनएमयू के कुलपति प्रोफेसर डॉ. राजनाथ यादव ने रविवार को सपरिवार सिंहेश्वरनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की और बीएनएमयू के समग्र विकास के लिए बाबा सिंहेश्वरनाथ से आशीर्वाद मांगा। मंदिर के पुजारी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा संपन्न कराया।
कुलपति ने बताया कि उन्होंने बहुत पहले से सिंहेश्वर बाबा की महिमा के बारे में सुना था। इनकी ख्याति देश-विदेश तक फैली हुई है। बाबा सबकी मुरादें पूरी करते हैं और बाबा दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
उन्होंने बताया कि सिंहेश्वर महर्षि श्रृंगी की ध्यान स्थली रही है। यहां का वातावरण काफी पवित्र है। यहां आकर उन्हें काफी उर्जा एवं प्रेरणा मिली।
बीएनएमयू के उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कुलपति विज्ञान के शिक्षक हैं। लेकिन उनकी भारतीय सभ्यता-संस्कृति एवं धर्म-आध्यात्म में गहरी आस्था है। उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधि-विधान के साथ पूजा-आर्चना की और मंदिर के पुजारी पंकज बाबा से मंदिर के पौराणिक महत्व के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त की।
मालूम हो कि ‘वाराह पुराण’ में चर्चा है कि महादेव एक बार हिरण का वेश धारण कर छिप गए। उनकी अनुपस्थिति में असुरों ने काफी उधम मचाया। त्रस्त ब्रह्मा, विष्णु तथा इन्द्र देव उन्हें खोजने निकले। उन लोगों ने महादेव को हीरो के छद्मवेष में पहचान लिया और उनसे वापस चलने की विनती की। लेकिन हिरण रूपी छद्मवेशी महादेव ने देवताओं के साथ चलने में अपनी असमर्थता जताई। फिर देवगण मिलकर हिरण रुपी महादेव को जबरन अपने साथ ले जाने के लिए उनके सिंग को पकड़कर खिंचने लगे। लिहाजा हिरण
के अंग तीन भागों में विभक्त हो गए। श्रृंग अर्थात सिंग
वाला भाग जिस स्थान पर रहा, वही श्रृंगेश्वर या
सिंहेश्वर कहलाया। रामायण काल के दौरान राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया गया था और उस महायज्ञ के प्रसाद (चरु) से उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।